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Valentine Week-Rose Day : पन्नों में छिपे फूलों ने खोली यादों की किताब

लोगों ने ऐसी ही कुछ खूबसूरत यादों को साझा किया।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Fri, 07 Feb 2020 12:52 PM (IST)Updated: Fri, 07 Feb 2020 11:08 PM (IST)
Valentine Week-Rose Day : पन्नों में छिपे फूलों ने खोली यादों की किताब
Valentine Week-Rose Day : पन्नों में छिपे फूलों ने खोली यादों की किताब

लखनऊ, जेेेेेेएनएन। अबके हम बिछड़ें तो शायद कभी ख्वाबों में मिलें, जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें। फूल खिला था तो तोहफा था, किताबों की आगोश में आया तो याद बन गया। किताब के पन्नों का लिहाफ ओढ़े ये सूखे हुए फूल मीठी नींद में सोए रहते हैं, जिनके सपनों में माजी की खुशमिजाज यादों का अक्स बनता-बिगड़ता रहता है। ये सूखे हुए फूल जज्‍‍‍‍बात से लबरेज उन लम्हों के गवाह होते हैं, जब तोहफा बनकर ये एक हाथ से दूसरे हाथ तक आए थे। जो इन यादों को हमेशा ताजा रखना चाहते हैं वे इन फूलों को किताबों के सुपुर्द करके महफूज कर लेते हैं। अहमद फराज की गजल का यह शेर उन्हीं लम्हों की कहानी कहता है। 

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छठी क्लास में मिला था पहला गुलाब

फैशन डिजाइनर एलिस जेवियर कहती हैं, पहली बार मुझे वेलेंटाइन डे का मतलब तब मालूम हुआ जब मैं छठी क्लास में पढ़ रही थी। मम्मी-पापा मेरे पास आए और उन्होंने मुझे गुलाब का फूल देते हुए वेलेंटाइन डे के बारे में बताया। उस दिन पता चला कि वेलेंटाइन डे फेस्टिवल ऑफ लव है। जिसे हम उनके साथ मनाते हैं जिनसे हम प्यार करते हैं। वह फूल आज भी डायरी में संभालकर रखा है। मां-बाप से ज्यादा तो कोई और प्यार करने वाला हो ही नहीं सकता इसलिए मैं तो इसे केवल अपने पेरेंट्स के साथ ही मनाती हूं। इस बार भी मैंने अपने पेरेंट्स को सात दिनों के सारे तोहफे एक बॉक्स में रखकर गिफ्ट किए हैं।

पहली बार पति फिर बच्चों ने फूल दिए

अवध गर्ल्‍स डिग्री कॉलेज की प्रिंसिपल उपमा चतुर्वेदी कहती हैं, हमारे जमाने में वेलेंटाइन डे तो मनाया ही नहीं जाता था। मगर जब 1990 में मेरी शादी हुई तब पहली बार पति ने मुझे वेलेंटाइन डे पर पहला गुलाब का फूल गिफ्ट किया था। वह मेरे लिए बेहद कीमती उपहार था जिसे काफी दिनों तक मैंने संभालकर रखा। बाद में बच्चों ने भी मुझे रोज डे पर गुलाब देना शुरू किया और अब तो हर दिन के अनुसार मुझे बच्चे उपहार देते हैं। इसके अलावा कॉलेज में भी बच्चे गुलाब का फूल गिफ्ट करते हैं।

सिर्फ फूल नहीं भावनाओं का गुलदस्ता मिला

डॉ विभा अग्‍न‍िहोत्री बतातीं हैं, मेरी शादी को करीब 33 साल हो गए हैं। हमारे समय में वेलेंटाइन मनाने का ऐसा कोई कॉन्सेप्ट नहीं था। मुझे वह दिन आज भी याद है जब 1986 में मेरी मंगनी हुई। उसके बाद मेरा जन्मदिन पड़ा, तो मेरे पति ने मुझे पहली बार एक गुलाब का फूल और गिफ्ट दिया। उस जमाने में यह एक बोल्ड स्टेप था क्योंकि तब वेलेंटाइन मनाने को लोग गलत मानते थे। मगर आज लोगों की सोच बदल गई है। अब तो बच्चे अपने पेरेंट्स के साथ इसे मनाते हैं। भावनाओं में लिपटा पतिदेव का वह पहला फूल आज भी यादों का हिस्सा बनकर मेरी डायरी में कैद है। 


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