UP Politics: आजादी का अमृत महोत्सव पर छोड़िए जिद का डंडा और थाम लीजिए तिरंगा झंडा
UP Political News भगवा वालों ने प्रोफाइल फाेटो की जगह तिरंगा लगाया तो होड़ में पंजे वालों ने अपने सियासी पूर्वज के साथ तिरंगे की फोटो लगा ली। साइकिल वालों के एक बयानवीर माननीय जिद का डंडा पकड़े हैं कि इसे हर घर पर फहराने के लिए बाध्य न करें।
Satta Ke Galiyare Se : लखनऊ [जितेंद्र शर्मा]। आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) मनाया जा रहा है। यह किसी दल का आयोजन नहीं, लेकिन सरकारी तंत्र जिन हाथों में है, वही तो मेजबानी करेंगे। मगर, राजनीति जो कराए, सो कम है। आह्वान हर घर तिरंगा (Har ghar Tiranga Abhiyan) फहराने का हुआ है, न कि किसी पार्टी का झंडा फहराने का।
फिर भी कुछ दल इसमें भी मीन-मेख निकालने में जुट गए। भगवा खेमे वालों ने इंटरनेट मीडिया के प्रोफाइल फाेटो की जगह तिरंगा लगाया तो होड़ में डूबे पंजे वालों ने अपने सियासी पूर्वज के साथ तिरंगे की फोटो लगा ली। साइकिल वाले दल के एक बयानवीर माननीय जिद का डंडा पकड़े हैं कि इसे हर घर पर फहराने के लिए बाध्य न करें। अरे भाई, तिरंगा हर घर फहराएगा तो इसमें कहां किसी पार्टी का नाम और फोटो लगना है। आप भी घर-घर जाइए। जनता से संपर्क कीजिए और तिरंगे के साथ अपनी पार्टी का झंडा भी उन्हें थमा आइए।
खीरा सिर ते काटिकै, मलियत लोन लगाय... : अब कोई आंख मूंदे रहे तो बात अलग है, वरना कौन त्यागने लायक है और कौन साथ रखने लायक, यह सभी समझते हैं। भगवा बल के बूते लाल-पीले हुए नेताजी यह भी भूल गए कि महिलाओं से बात करने का तरीका क्या होता है। अपनी धौंस में यह भी ख्याल न रखा कि उनकी रंगबाजी का कलरफुल वीडियो भी बन रहा था।
अब भागे-भागे फिर रहे हैं। उनका जो हाेना है, होगा ही, लेकिन पार्टी को इस घटना से जरूर सबक ले लेना चाहिए। मुंह से जहर उगलकर किरकिरी कराने वालों को बिना सोचे पलभर में त्याग दिया जाए तो शायद दूसरों की अक्ल पहले ही ठिकाने आ जाए। यह अनीति भी नहीं है, क्योंकि ऐसे बदजुबान लोगों के लिए रहीम जी बहुत पहले ही लिख गए- 'खीरा सिर ते काटिकै, मलियत लोन लगाय, रहिमन करुए मुखन को, चहिअत इहै सजाय।' अब देखना है पार्टी का त्याग और प्रेम।
बंद मुट्ठी लाख की...: एक आंदोलन की बयार क्या चली, हरे गमछे वाले नेताजी खेत-खलिहान छोड़ दिल्ली बार्डर पर जा बैठे। हुंकार के सहारे उनके हौसले यूं आसमान पर पहुंच गए, जैसे कि अब राजनीति में उनके सितारे चमकने वाले ही हैं। नेताजी अपनी बात पर टिके रहे और मुट्ठी भींचे रहे। फिर जब चुनाव हुआ तो हाथ खाली रहा। यही नहीं, अपने आप को प्रदेश की राजनीति का 'किंगमेकर' मान बैठे नेताजी को संगठन वालों ने ही नेता मानने से इन्कार कर दिया और संगठन के दो टुकड़े हो गए।
खैर, फिर हिम्मत जुटाई है, लेकिन अब हुंकार बिल्कुल सोच-समझकर छोड़ी है। बोले हैं कि 2024 के बाद सरकार के खिलाफ आंदोलन करेंगे। दरअसल, वह चुनाव परिणाम भांप रहे हैं। अभी जंग में कूदे और फिर भगवा परचम लहराया तो फिर जनता ताकत भांप लेगी। ऐसे में चुनाव तक मुट्ठी भींचे रहो। कहते हैं न- बंद मुट्टी लाख की, खुल गई तो खाक की।
पहलवान के जोड़ीदार भी 'सूरमा' : यह समझदारी है कि सक्षम और सफल व्यक्ति की संगति की जाए। कुछ तो उसके काम करने के तौर-तरीके सिखाएंगे और कुछ उसके सहारे आपका झंडा भी बुलंद होता जाएगा। अपने प्रदेश का ऐसा ही एक दल है, जिसने 2014 में एक प्रचंड लहर को भांपा और तब से उसके साथ बहते हुए आगे बढ़ते जा रहा है। हाल ही दल को राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा मिल गया है।
सफलता पर खुशियां मनाया जाना स्वाभाविक भी है, लेकिन समझदारी यह भी है कि सफलता के पीछे के कारणों को भी गौर से देखा-समझा जाए। इन बढ़ते कदमों में कुछ सहारा एक बड़ी पार्टी की बैसाखी का भी है। बेहतर हो कि अपनी खुद की ताकत भी इतनी जुटा ली जाए कि भविष्य में यदि कोई राजनीतिक उलटफेर हो जाए तो किसी दूसरी मजबूत बैसाखी की जरूरत न पड़े। इस उत्साह का इस्तेमाल अतिरिक्त ऊर्जा के रूप में ही करें।