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UP News: अब डाक्टरों ने जेनरिक की जगह ब्रांडेड दवाएं लिखी तो होगी कार्रवाई, डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक के निर्देश पर आदेश जारी

Uttar Pradesh Latest News यूपी के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग ने सभी सरकारी अस्पतालों को निर्देश दिए हैं कि अस्पतालों में उपलब्ध दवाओं की सूची को प्रदर्शित करें। किसी भी कीमत पर डाक्टर मरीजों को बाहर से दवाएं नहीं लिखेंगे।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Wed, 29 Jun 2022 12:13 AM (IST)Updated: Wed, 29 Jun 2022 04:06 PM (IST)
Uttar Pradesh Latest News: यूपी में अब डाक्टरों ने जेनरिक की जगह ब्रांडेड दवाएं लिखी तो कार्रवाई होगी।

लखनऊ [राज्य ब्यूरो]। उत्तर प्रदेश में अब डाक्टर मरीजों को किसी भी कीमत पर ब्रांडेड दवाएं नहीं बल्कि जेनरिक दवाएं ही लिख सकेंगे। चिकित्सा व स्वास्थ्य विभाग ने सभी डाक्टरों के लिए स्पष्ट निर्देश जारी किए हैं कि वह दवाओं के ब्रांड का नाम नहीं बल्कि उसके साल्ट का नाम लिखेंगे। अगर कोई डाक्टर ब्रांडेड दवा लिखते पकड़ा गया तो कार्रवाई होगी।

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उत्तर प्रदेश सरकार ने यह निर्णय दैनिक जागरण द्वारा चलाए गए अभियान 'दम तोड़ते सस्ती दवा के केंद्र' के बाद उठाया है। मंगलावार को उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने डाक्टरों द्वारा जेनरिक दवाएं न लिखकर ब्रांडेड दवाएं लिखने को गंभीरता से लेते हुए जेनरिक दवाएं ही लिखने के सख्त निर्देश चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को दिए। शाम को अपर मुख्य सचिव, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अमित मोहन प्रसाद की ओर से शासनादेस जारी कर दिया गया।

चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी शासनादेश में सभी सरकारी अस्पतालों को निर्देश दिए गए हैं कि वह अस्पतालों में उपलब्ध दवाओं की सूची को प्रदर्शित करें। किसी भी कीमत पर डाक्टर मरीजों को बाहर से दवाएं नहीं लिखेंगे। जन औषधि केंद्रों का बेहतर ढंग से संचालन बेहतर ढंग से किया जाएगा।

अगर अस्पताल में कोई दवा उपलब्ध नहीं है और डाक्टर मरीज को बाहर से दवा लिख रहा है तो वह दवा के ब्रांड का नाम लिखने की बजाए साल्ट का नाम लिखेगा। ताकि मरीज सरकारी अस्पताल के जन औषधि केंद्र से जेनरिक दवा खरीद सके। इसे सख्ती से लागू किया जाएगा। आदेश का पालन न करने वाले डाक्टरों पर कार्रवाई होगी।

बता दें कि दैनिक जागरण ने बीते 22 जून को दैनिक जागरण ने पेज नंबर दो पर 'डाक्टरों व दवा कंपनियों की सांठगांठ से जन औषधि केंद्र हो गए बीमार' शीर्षक से खबर प्रकाशित कर अभियान शुरू किया था। इसके बाद जन औषधि केंद्रों की बदहाल हालत और अस्पतालों में फल-फूल रहे डाक्टरों व दवा कंपनियों के धंधे को एक के बाद एक लगातार उजागर किया गया। सस्ती जेनरिक दवाएं न लिखकर कमीशन के चक्कर में महंगी ब्रांडेड दवाएं लिख रहे डाक्टरों पर आखिरकार शिकंजा कस दिया गया।


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