उत्तर प्रदेश में 'प्रोजेक्ट टाइगर' के बाद अब 'प्रोजेक्ट लेपर्ड', पांच जगह बनेंगे लेपर्ड रेस्क्यू सेंटर
प्रदेश सरकार के इस प्रोजेक्ट के तहत प्रदेश में पांच स्थानों पर लेपर्ड रेस्क्यू सेंटर बनाए जाएंगे। इनमें से चार केंद्र मेरठ पीलीभीत चित्रकूट व इटावा में बनेंगे।
लखनऊ [शोभित श्रीवास्तव]। उत्तर प्रदेश में 'प्रोजेक्ट टाइगर' के बाद अब प्रदेश में 'प्रोजेक्ट लेपर्ड' शुरू होने जा रहा है। तेंदुओं की बढ़ती संख्या और बस्तियों में लोगों के साथ उनके बढ़ते संघर्ष को देखते हुए यह प्रोजेक्ट पहली बार शुरू किया जा रहा है।
प्रदेश सरकार के इस प्रोजेक्ट के तहत प्रदेश में पांच स्थानों पर लेपर्ड रेस्क्यू सेंटर बनाए जाएंगे। इनमें से चार केंद्र मेरठ, पीलीभीत, चित्रकूट व इटावा में बनेंगे, जबकि पांचवां रेस्क्यू सेंटर महराजगंज या गोरखपुर में से किसी एक जगह बनाया जाएगा।
प्रदेश में तेंदुए की मौजूदगी काफी जगह पर है। आसान शिकार के लिए अक्सर जंगलों से सटे रिहायशी इलाके में आ जाते हैं। पिछले वर्ष प्रदेश के दो दर्जन से अधिक जिलों के रिहायशी इलाकों में तेंदुआ देखा गया। इनमें से कई जगह तेंदुआ-मानव संघर्ष भी हुआ। बिजनौर में तो पिछले दो माह में आधा दर्जन से अधिक लोग तेंदुए के हमले में मारे गए। रिहायशी इलाकों में आने से तेंदुए के लिए भी खतरा बढ़ जाता है।
जब कभी तेंदुआ पकड़ा जाता है तो उन्हें रखने की समस्या आ जाती है। अभी प्रदेश में एक भी लेपर्ड रेस्क्यू सेंटर न होने से उन्हें चिडिय़ाघर में ही रखा जाता है लेकिन, लखनऊ व कानपुर दोनों ही चिडिय़ाघर पहले से फुल चल रहे हैं।
इस समस्या को देखते हुए अब प्रदेश में प्रोजेक्ट लेपर्ड शुरू किया जा रहा है। इससे तेंदुओं के संरक्षण के लिए बेहतर ढंग से काम हो सकेगा। प्रदेश के पांच स्थानों को इस तरह से चुना गया है ताकि प्रदेश में जहां भी यह पकड़े जाएं वहां पास के रेस्क्यू सेंटर में इन्हें पहुंचाया जा सके। पहला रेस्क्यू सेंटर इटावा के लायन सफारी में खोला जाएगा। सेंट्रल जू अथॉरिटी से इसे इजाजत भी मिल चुकी है।
पश्चिम यूपी में मेरठ, तराई में पीलीभीत और बुंदेलखंड के चित्रकूट में एक-एक रेस्क्यू सेंटर खोला जाएगा। पूर्वांचल में महराजगंज या फिर गोरखपुर में से एक स्थान में रेस्क्यू सेंटर खोला जाएगा। प्रत्येक सेंटर पांच-पांच करोड़ रुपये की लागत से तैयार किए जाएंगे।
600 से अधिक हैं तेंदुए
प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्यजीव सुनील पाण्डेय ने बताया कि प्रदेश में तेंदुओं की अंतिम गिनती 2018 में हुई थी, उस समय 415 तेंदुए मिले थे। वर्तमान में इनकी संख्या करीब 600 से अधिक होगी। जिस तरह से प्रोजेक्ट टाइगर से बाघों की रक्षा की गई है उसी तरह प्रोजेक्ट लेपर्ड से तेंदुओं का संरक्षण किया जाएगा।
जंगलों से सटे रिहायशी इलाकों के लोगों को तेंदुए के प्रति जागरूक किया जाएगा। रेस्क्यू सेंटर बनने के बाद रिहायशी इलाकों में मिलने वाले तेंदुओं को यहां रखा जाएगा। कुछ समय रखने व सेहतमंद होने के बाद इन्हें वापस जंगल में छोड़ दिया जाएगा।