मैं स्कूटर्स इंडिया नाम तो सुना ही होगा..43 साल तक सेवा देने वाले कंपनी की कहानी
1972 में नवाबों के शहर लखनऊ आने के बाद पड़ा स्कूटर्स इंडिया नाम। जन्मदाता फर्डिनेंडो इन्नोसेंटी के प्रयासों से 1922 में वजूद में आयी कंपनी।
लखनऊ(पुलक त्रिपाठी)। लम्ब्रेटा, विजय डीलक्स और विजय सुपर जैसे स्कूटर देने वाली कंपनी स्कूटर्स इंडिया लिमिटेड के कर्मचारी एक बार फिर आदोलित हैं। वजह, 16 मार्च को कंपनी की वेबसाइट पर इसकी 93 .74 फीसदी हिस्सेदारी बेचने के लिए अपलोड किया गया आमंत्रण है। यहा वर्षो से संविदा पर काम कर रहे कर्मचारी अपने भविष्य को लेकर भयभीत हैं तो वषरें से लखनऊ शहर की पहचान से जुड़ी कंपनी भी भविष्य के प्रति आशकित है। दैनिक जागरण आपको मैं स्कूटर्स इंडिया की स्थापना से लेकर उसकी लोकप्रियता की कहानी उसी की जुबानी बता रहा है। स्कूटर्स इंडिया से पहले पड़ा इन्नोसेंटी नाम
मेरा नाम स्कूटर्स इंडिया 1972 में नवाबों के शहर लखनऊ आने के बाद पड़ा। पहले लोग मुझे इन्नोसेंटी के नाम से जानते थे। मैं इटली के खूबसूरत शहर मिलान के नजदीक लैम्ब्रो नदी के पास लैम्ब्रेट में थी। मेरे जन्मदाता फर्डिनेंडो इन्नोसेंटी थे जिनके प्रयासों से मैं 1922 में वजूद में आयी और उन्होंने मुझे अपना नाम इन्नोसेंटी दिया। मेरी बेटी लम्ब्रेटा का नाम लैम्ब्रेट शहर के नाम पर पड़ा। लम्ब्रेटा दुनियाभर में मशहूर हुई। लम्ब्रेटा मुझसे पहले भारत में आ गई थी।
दरअसल, आजादी के बाद भारत में निजी वाहनों का चलन बढ़ा। तब इस देश में आम लोगों के पास इतना पैसा नहीं था कि वह छोटी कार भी आसानी से खरीद सकें। यह माग लम्ब्रेटा स्कूटर ने पूरी की। 50 के दशक में मुंबई स्थित एपीआइ (ऑटो प्रोडक्ट्स इंडिया) ने लम्ब्रेटा को यहा असेंबल करना शुरू किया। भारत में लम्ब्रेटा मेरे यहा आने के पहले ही मध्यवर्ग के घर-घर की पहचान बन गई थी। यही वजह रही कि सत्तर के दशक में जब इटली में घरेलू सहायकों (कर्मचारियों) ने आदोलन शुरू किया और आर्थिक तंगी का दौर शुरू हुआ तो भारतीयों ने मझ्रे अपनाने में खास दिलचस्पी दिखाई। 1972 में मिला स्कूटर्स इंडिया लिमिटेड की पहचान
1971 की बात है। तब उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा और भारत में प्रधानमंत्री इंदिरा गाधी का शासन था। मुझे मुंबई लम्ब्रेटा के घर (एपीआइ) जाना था, लेकिन बहुगुणा जी ने प्रधानमंत्री से मुझे लखनऊ में नया नाम देकर बसाने की सिफारिश की। साल भर बाद यानी 1972 में भारत ने इटली से मेरी प्लाट व मशीनरी, डाक्यूमेंट और ट्रेडमार्क खरीद लिये और यहा मुझे नया नाम दिया गया- स्कूटर्स इंडिया लिमिटेड। मुझे आबाद करने के लिए शहर की आबादी से करीब 16 किलोमीटर दूर कानपुर रोड के पास 147.49 एकड़ जमीन देखी गई और आठ अप्रैल 1973 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाधी ने मेरे नये आवास का शिलान्यास किया। यहा मुझे खासतौर पर तिपहिया विक्रम लैम्ब्रो बनाने के लिए लाया गया था लेकिन शुरुआत स्कूटर से हुई। साल भर बाद ही मेरी यूनिट ने काम करना शुरू कर दिया और इसके अगले साल से घरेलू उपभोक्ताओं के नाम से विजय डीलक्स और एक्सपोर्ट के लिए लम्ब्रेटा नाम से ही कॉमर्शियल उत्पादन शुरू हो गया। उत्पादन के साथ ही वह स्वर्णिम दौर शुरू हुआ जिसने देश भर में टू व्हीलर के क्षेत्र में मुझे नई पहचान दी।
विजय डीलक्स था क्रिकेटरों और नायकों की पहली पसंद
अस्सी के दशक में एक समय ऐसा आया जब साल में मैंने साल भर में 35000 विजय डीलक्स और विजय सुपर स्कूटर तैयार किए। विजय डीलक्स का एकछत्र राज था। आज की पीढ़ी उस दौर के गौरव का अनुमान इसी बात से लगा सकती है कि 1983 में जब कपिल देव की कप्तानी में भारतीय क्त्रिकेट टीम ने पहली बार विश्व कप जीता तो तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा ने सभी खिलाड़ियों को एक-एक विजय डीलक्स स्कूटर भेंट किया। अगर आप पुरानी फिल्मों के शौकीन हैं तो कई फिल्मों में विजय डीलक्स और विजय सुपर की ग्लैमरस इंट्री देखी होगी। ये स्कूटर नायकों की पहली पसंद था। दोनों स्कूटर फिल्मी शूटिंग में शामिल होते थे। आलम यह था कि एक अन्य बड़ी कंपनी के लंबे समय से चल रहे एकाधिकार पर विजय सुपर व विजय डीलक्स ने विराम लगाने का काम किया। बीएचईएल के ऑटोमैटिक गियर बॉक्स बनाकर बड़ा मुनाफा कमाया। समय गुजरता गया मगर वक्त के साथ नाम पर धूल जमती चली गई। मेरे चाहने वाले करते थे महीनों इंतजार
यह बैलगाड़ी का जमाना था जब भारत की सड़कों पर स्कूटर उतारा गया। वह दौर भी रहा जब मेरे स्कूटर की डिमाड के अनुरूप सप्लाई नहीं हो पाती थी। लोग महीनों इंतजार करते थे, कभी कभी तो सालों तक। नब्बे का दशक शुरू होने तक विजय डीलक्स और सुपर ढलान पर आने लगे। अब बाजार में कई विकल्प आ गए थे। मेरे स्कूटरों का उत्पादन सालाना 4500 तक गिर गया। दूसरे स्कूटर ब्राड और मोपेड ने भी जगह बनाई। नब्बे के दशक से बाइक ने लोगों ने लुभाना शुरू कर दिया और इसी दौर में यानी दशक के अंतिम वषों में मेरे स्कूटरों का उत्पादन बंद हो गया। हा, इन स्कूटरों के फैन क्लब हैं जो समय-समय पर होने वाली रैलियों में नजर आते हैं। हालाकि, विक्रम टेंपो ने अब भी मेरा नाम जिंदा रखा है। डीजल ईंधन का दौर हो या सीएनजी संचालित बीएस 4 मॉडल, मैंने समय के साथ कदमताल किया। इलेक्टिक ईंधन के दौर से भी कदमताल करने को तैयार हूं लेकिन भविष्य पर किसका बस है। . पर मेरे कर्मचारी 16 मार्च से डरे हुए हैं जब से मेरा मालिकाना हक बदलने के लिए वेबसाइट पर सूचना अपलोड हुई है। मुडो भी इनसे लगाव हो गया है। इसीलिए, कर्मचारियों के साथ मैं भी भविष्य को लेकर आशकित हूं। मैं हर दौर से कदमताल करने को तैयार हूं।
बदला टू व्हीलर से थ्री व्हीलर का सफर
स्कूटर्स इंडिया के सेवानिवृत्त कर्मचारी ओपी सिंह कहते हैं कि साल 1995 के दौरान टू व्हीलर के गिरते क्रेज व बाइक का बढ़ता ट्रेंड स्कूटर्स इंडिया के लिए चुनौती बनता जा रहा था। इस कारण कंपनी व वर्कर्स की सहमति से थ्री व्हीलर वाहन की शुरुआत पर मुहर लगी। अपग्रेडेशन के तहत कंपनी को कई थ्री-व्हीलर प्रोजेक्ट मिले जिसमें कंपनी ने खुद को अन्य थ्री व्हीलर्स की तुलना में खरा साबित कर दिखाया। यही कारण रहा कि टू व्हीलर के बाद थ्री व्हीलर में भी स्कूटर्स इंडिया अन्य कंपनियों को मात देती रही।
विनिवेश के प्रस्ताव ने लगाया ग्रहण
स्कूटर्स इंडिया ऑफिसर्स एसोसिएशन के महामंत्री नवनीत शुक्ल का कहना है कि कंपनी द्वारा बैलगाड़ी के जमाने में देश की सड़कों पर स्कूटर उतारा गया। केंद्र सरकार की विनिवेश की नीति ने स्कूटर इंडिया के कर्मचारियों के भविष्य पर ग्रहण लगाने का काम किया है। विनिवेश के तहत देश की कई कंपनियों को सूची में शामिल किया है। अब स्कूटर्स इंडिया पर भी ग्रहण लग गया है। कंपनी आतरिक स्थिति काफी मजबूत है, विनिवेश नीति व अन्य कारणों के चलते कंपनी की बिक्री की बात सामने आई है।
प्रबंधतंत्र के कारण आई बिक्री की स्थिति
कंपनी में 43 वषों तक सेवा देने वाले स्कूटर्स इंडिया लिमिटेड इंप्लाइज यूनियन के भूतपूर्व महामंत्री व मौजूदा अध्यक्ष केके पाडेय ने स्कूटर्स इंडिया के बीमार होने का कारण खुद प्रबंधतंत्र को ठहराया है।