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    जब उल्टे पांव भाग खड़ी हुई थी अंग्रेजों की सेना, पलट दिया था क्रांतिकारियों ने विदेशी हुकूमत का पासा

    By JagranEdited By:
    Updated: Sun, 12 Aug 2018 12:25 PM (IST)

    चिनहट युद्ध में क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को दी थी करारी शिकस्त। कठौता झील के पास डेरा डाले वीर जवानों ने किया था हमला।

    जब उल्टे पांव भाग खड़ी हुई थी अंग्रेजों की सेना, पलट दिया था क्रांतिकारियों ने विदेशी हुकूमत का पासा

    लखनऊ[मुहम्मद हैदर]। अवध के चीफ कमिश्नर हेनरी लॉरेंस ने 30 जून 1857 को करीब 600 सिपाहियों के साथ चिनहट की तरफ कूच किया। जून की गर्मी से बेहाल अंग्रेजों को इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि क्रांतिकारियों की तादात छह हजार नहीं, बल्कि 15 हजार के करीब है। अंग्रेजों और क्रांतिकारियों के बीच युद्ध शुरू हुआ। क्रांतिकारियों व किसानों के हुजूम के सामने अंग्रेजी सेना टिक नहीं सकी और अंग्रेज उल्टे पांव भाग खड़े हुए। तब क्रांतिकारियों ने भारी संख्या में अंग्रेजी सेना का गोला-बारूद, तोपें और बंदूकें अपने कब्जे में कर लिया।

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    चिनहट युद्ध से दो दिन पहले 28 जून 1857 को जब हेनरी लॉरेंस चीफ को यह खबर मिली कि मौलवी अहमद उल्लाह शाह के साथ एक टुकड़ी उनकी और बढ़ रही है और बाराबंकी के नवाबगंज पहुंच चुकी है तो हेनरी लारेंस ने कैप्टन एच फोब्स को उन्हें रोकने के लिए भेजा। कैप्टन के नेतृत्व में करीब 100 सिख घुड़सवार व 500 पैदल सिपाहियों की एक टुकड़ी इन क्रांतिकारियों की तलाश में चिनहट पहुंची। दिनभर जंगलों की खाक छानने के बाद टुकड़ी शाम को रेजीडेंसी लौट आई। उधर इसी शाम मौलवी अहमद उल्लाह शाह व उनके अन्य साथियों ने चिनहट में कठौता झील के पास डेरा डाल दिया। तलाश में डेरा डाल कर बैठे थे कठौता झील के पास। खाली हाथ लौटी अंग्रेजी टुकड़ी से विचार विमर्श के बाद हेनरी लारेंस ने लखनऊ सरहद पर उनसे युद्ध की योजना बनाई। दो दिन बाद अंग्रेजी फौज अपने आधुनिक हथियार से लैस लोहे वाले पुल (डालीगंज) से निकलकर कुकरैल के रास्ते चिनहट पहुंची। लेकिन मौलवी को इसकी भनक लग गई। उन्होंने अंग्रेजों को रास्ते में ही रोकने की रणनीति बनाई। अंग्रेजी सेना के इस्माइलगंज से निकलकर चिनहट पहुंचते ही क्रांतिकारियों ने उनपर दोनों ओर से हमला कर दिया। इस भीषण युद्ध में 182 भारतीय नागरिकों के साथ 118 अंग्रेज सैनिक व 54 यूरोपियन नागरिकों की जाने गई थीं। चार जुलाई को रेजीडेंसी में हुए हमले के दौरान बुरी तरह घायल हेनरी लॉरेंस ने भी दम तोड़ दिया। पलट दिया था अंग्रेजी हुकूमत का पासा:

    चिनहट युद्ध के बाद अंग्रेजों का पासा पूरी तरह से पलट चुका था। पहले चिनहट के इस्माइलगंज में और फिर कुकरैल के पास जबरदस्त भिड़ंत में अंग्रेजों को मुंह की खानी पड़ी। बुरी तरह हारने के बाद वह शहर की ओर भाग निकले। हेनरी लारेंस रेजीडेंसी पहुंच गया और उसने आदेश दिया कि विद्रोहियों के हमले से डालीगंज पुल को बचाया जाए। अंग्रेजों ने तोपों और बंदूकों के सहारे पुल के पास क्रांतिकारियों को रोकने के लिए तीसरी बार भरपूर प्रयास किया, लेकिन क्रांतिकारियों ने इतनी फुर्ती से हमला किया कि गोमती नदी पार कर गोला-बारुद की बौछार रेजीडेंसी तक पहुंचने लगी। इसके बाद दो जुलाई को निरीक्षण करने के बाद लॉरेंस अपने कक्ष में लौटे और बिस्तर पर बैठे ही थे, कि अचानक एक गोला उनके कमरे में गिरा। धमाके के साथ कमरा धूल-धुएं से भर गया। कैप्टन विल्सन ने हेनरी की आवाज दी। कई आवाज देने के बाद हेनरी ने बहुत धीमी व कमजोर आवाज में कहा..मैं मर रहा हूं।

    बिरजिस कद्र को गद्दी पर बैठाकर लिया बदला:

    चिनहट युद्ध में अंग्रेजी सेना को भारी नुकसान उठाया पड़ा था। चिनहट में अंग्रेजी सेना की हार से क्रांतिकारियों के हौसले मजबूत थे। तब हर किसी को लगने लगा था कि बस अब अंग्रेजों के गिने चुने दिन ही बाकी है। उधर लखनऊ को आजाद करने के बाद उन्होंने एक पंचायत का गठन किया। इसके सरगना सुल्तानपुर के रिसालदार बरकत अहमद थे। जबकि, उमराव सिंह, जयपाल सिंह, रघुनाथ सिंह, शहाबुद्दीन और घमंडी सिंह इसके प्रमुख सदस्य। पंचायत ने सात जुलाई 1857 को बिरजिस कद्र को उस गद्दी पर दोबारा बैठा दिया, जिसपर उनके वालिद नवाब वाजिद अली शाह को 15 महीने पहले अंग्रेजों ने धोखे से हटाया था। समाप्त हो गया था अंग्रेजी शासन:

    अंग्रेजी शासन खत्म होने के कगार पर पहुंच चुका था। 29 जून तक अवध के शहरों (लखनऊ छोड़कर) में अंग्रेजों का प्रतिनिधित्व कहीं नहीं रह गया था। तालुकेदारों ने समझ लिया था कि अब अंग्रेजी शासन समाप्त हो गया है और वे मनमानी पर आमादा हो गए हैं। हेनरी लारेंस को सूचना मिली कि विद्रोही चिनहट में एकत्र होकर लखनऊ पर आक्रमण करने आ रहे हैं। सर लारेंस आगे बढ़कर उनका मुकाबला करने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन कुछ सहयोगियों के दबाव में उन्हें इस मुकाबले के लिए लखनऊ से बाहर निकलना पड़ा।

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