नजर से बचाने के लिए साड़ियों को लगता है काला टीका, बॉलीवुड एक्ट्रेस पर चंदेरी का जादू
कारीगरी कमाल: नजर से बचाने के लिए कारीगर साड़ी बनाते समय हर मीटर पर लगाते काला टीका। ललित कला अकादमी, अलीगंज में मृगनयनी मप्र प्रदर्शनी 31 तक।
लखनऊ [दुर्गा शर्मा]। मध्यप्रदेश के अशोक नगर जिले का चंदेरी ऐतिहासिक गांव है। पुरानी इमारतों का गढ़ होने के साथ ही यह गांव कशीदाकारी का समृद्धशाली इतिहास भी समेटे है। यहां हर घर में बुनकर अपने फन में माहिर है। धागों में खूबसूरती बुनकर चंदेरी साड़ी तैयार करना कई का पुश्तैनी काम है। वैदिक काल से जुड़ीं और कभी राज घरानों तक सीमित रहीं ये साडिय़ां आज हर स्त्री की सुंदरता में चार चांद लगा रही हैं।
चंदेरी में प्योर सिल्क, कॉटन और सिल्क कॉटन फैब्रिक्स तैयार किए जाते हैं। इन पर कशीदाकारी कर खूबसूरत लुक दिया जाता है। बाहरी नजर से बचाने के लिए कारीगर साड़ी बनाते समय हर मीटर पर काला टीका लगाता है। आम जन से लेकर बॉलीवुड और विदेशों तक चंदेरी साडिय़ों के कद्रदानों की कमी नहीं है। ललित कला अकादमी, अलीगंज में मृगनयनी मप्र प्रदर्शनी में चंदेरी के साथ ही अन्य साडिय़ों की विस्तृत शंृखला खास है। कई राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कारीगर साडिय़ों के रूप में अपनी कला लेकर आए हैं। 31 अक्टूबर तक पूर्वाह्न 11 से आठ बजे तक प्रदर्शनी लगी रहेगी।
कारीगरों की मेहनत को सलाम
- जहीन कुरैशी अपने परिवार के पांचवीं पीढ़ी के चंदेरी कारीगर हैं। 2007 में राज्य स्तरीय पुरस्कार (मप्र) और 2011 में श्रेष्ठ बुनकर अवार्ड (दिल्ली) मिला। इनके द्वारा गुजरात की जरी, आंध्र प्रदेश का कॉटन और मप्र के रेशम से तैयार 'आबे रवा' (साड़ी को दिया गया नाम) की विदेशों तक खूब पसंद किया गया।
- मोहम्मद यूनुस को 2009 में राज्य स्तरीय पुरस्कार (मप्र) मिला। अभिनेत्री करीना कपूर के पहनने के बाद दीया बूटा काम वाली काले रंग की चंदेरी साड़ी को 'करीना साड़ी' नाम दिया। गंगा जमुनी बॉर्डर (एक ही साड़ी में दो रंग के बॉर्डर) भी विदेशों तक लेकर गए।
- विजय शिशुपाल कोली की तैयार लौंग डिजाइन साड़ी को अभिनेत्री श्रद्धा कपूर ने फिल्म स्त्री में पहना।
- मोहम्मद अबरार को 2007 में पूर्व राष्ट्रीय एपीजे अब्दुल कलाम ने पुरस्कृत किया था। साथ ही तीन राज्य स्तरीय पुरस्कार भी मिल चुके हैं। इनके द्वारा तैयार पीले रंग की 'लक्ष्मी बाई चंदेरी साड़ी' दुबई, आस्ट्रेलिया और कनाड़ा समेत तमाम जगहों पर खूब पसंद की गई।
एक लाख 89 हजार की साड़ी
प्रदर्शनी में सोने चांदी के काम वाली खास चंदेरी साड़ी है। इसकी कीमत एक लाख 89 हजार है। लाल रंग की इस साड़ी पर जरी से मीना का काम किया गया है। वहीं मसलिन कॉटन की 'दो चश्मीÓ साड़ी भी खास है।
यह भी है प्रदर्शनी में
1930 के दशक की रेशम, किनार, मसलिन, कॉटन, देवी अहिल्या बाई होल्कर नगरी की महेश्वरी साडिय़ां। मप्र का विशेष बाग प्रिंट जिसे 12 जड़ी बूटियों से प्रिंट किया गया है। शिफॉन, मलबरी, क्रप और कोसा एवंइंडिगो प्रिंट की साड़ियां आदि। साथ ही पंच धातु और बेल मेटल की मूर्तियां आदि।
स्वर्णिम इतिहास
भारतीय इतिहास में चंदेरी के बुनकरों का उल्लेख 1305 में अलाउद्दीन खिलजी के आगमन के समय से ही परिलक्षित होता है। इस दौरान करीब 20 हजार बुनकर मौलाना मजिबुद्दीन उलुफ के अनुयायियों के रूप में बंगाल के लखनोती (ढाका) से विस्थापित होकर चंदेरी आए थे। 17 वीं शताब्दी तक कपड़ा व्यवसाय में चंदेरी के सूती कपड़ों की प्रतिस्पर्धा ढाका के उत्कृष्ट मलमल के कपड़े से रही। फिर 300 काउंट वाले सूती कपड़े की एक किस्म ईजाद हुई। यह कपड़ा एक स्थानीय जड़ 'कोलिकंडा' से तैयार धागों से बनाया गया था।
समय के साथ आता गया बदलाव
1930 में जापानी सिल्क के आगमन के साथ ही सूती साड़ी का स्थान विशुद्ध रेशमी साड़ी ने ले लिया। 1940 तक चंदेरी साड़ी सिर्फ सफेद रंग की होती थी क्योंकि पहले से डाई किया हुआ धागा प्रयोग में नहीं लाया जाता था। बाद में रंगीन चंदेरी साडिय़ां भी चलन में आ गईं। तकनीकी विकास के साथ-साथ गहरे रंगों की रेशमी साडिय़ों का उत्पादन भी होने लगा।
बॉलीवुड में चंदेरी का चलन
फिल्म पाकीजा में 'इन्हीं लोगों ने ले लीना दुपट्टा मेरा...' गीत में मीना कुमारी ने चंदेरी दुपट्टा पहना था। आमिर खान और करीना कपूर भी चंदेरी पहुंचे थे। करीना कपूर ने चंदेरी साड़ी पहनी और ये फैशन बन गई। शूटिंग के लिए अभिनेत्री अनुष्का शर्मा भी एक महीने तक चंदेरी गांव में रहीं। उन्हें यह कला इतनी पसंद आई कि उन्होंने अलग-अलग कारीगरों से दस साड़ियां खरीदीं। अनुष्का से मुलाकात के बाद कारीगरों ने नये डिजाइन की बूटी तैयार की, जिसका नाम सुई-धागा बूटी रख दिया। इससे बनी साड़ी को भी यही नाम दिया गया। ऑफ व्हाइट कलर की साड़ी में कारीगरों ने गोल्डन कलर की बूटी उकेरी है। फिल्म स्त्री में भी श्रद्धा कपूर ने चंदेरी साड़ी पहनी है।
क्या कहते हैं प्रदर्शनी के क्षेत्रीय प्रबंधक ?
मृगनयनी मप्र प्रदर्शनी के क्षेत्रीय प्रबंधक/प्रभारी एमएल शर्मा के मुताबिक, चंदेरी को सहेजने के लिए मप्र सरकार ने करोड़ों की लागत से 'चंदेरी हैंडलूम पार्कश् बनाया है। प्रतिस्पर्धा के दौर में इन्हें वाजिब दामों पर उपलब्ध कराने के लिए साल में दो बार प्रदर्शनी लगती है। हैंडलूम मार्क असली चंदेरी साडिय़ों की पहचान है। लोगों को इस बारे में भी जागरूक करते हैं।