मुस्लिमों से कोई विरोध नहीं, वे हमारे सगे भाई : त्रिलोकीनाथ पांडेय
रामलला के सखा त्रिलोकीनाथ पांडेय से बातचीत मंदिर निर्माण के लिए संभावित शासकीय न्यास और रामजन्मभूमि न्यास में कोई विरोधाभास नहीं।
अयोध्या [रमाशरण अवस्थी]। रामजन्मभूमि की मुक्ति के लिए 491 वर्ष से चल रहे संघर्ष के पटाक्षेप में रामलला के सखा त्रिलोकीनाथ पांडेय की अहम भूमिका रही है। सुप्रीमकोर्ट ने रामलला के सखा के ही वाद को ध्यान में रख कर फैसला सुनाया। जाहिर है कि रामलला के हक में फैसला आने के बाद सर्वाधिक रोमांचित पांडेय हैं। उत्तरप्रदेश के ही बलिया जिला के दया छपरा गांव में जन्मे पांडेय 1964 में ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संपर्क में आए। यह जुड़ाव इतना प्रगाढ़ था कि उन्होंने हाईस्कूल के बाद पढ़ाई छोड़कर स्वयं को संघ के लिए समर्पित किया। हालांकि घर वालों के दबाव पर उन्होंने कुछ वर्ष के बाद पुन: पढ़ाई की ओर ध्यान दिया पर नियति ने उनके लिए राष्ट्र कार्य ही मुकर्रर कर रखा था। 1975 में वे जब बीएड कर रहे थे, तभी आपातकाल लग गया।
आपातकाल के विरोध में उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी। उस समय वे बलिया में प्रचारक थे और संघ के अन्य प्रचारकों की तरह आपातकाल के विरोध में उन्होंने भी जान लड़ा दी। 1984 में विहिप ने जब मंदिर आंदोलन शुरू किया, तब वे संघ की संस्कृति रक्षा योजना के प्रांतीय प्रभारी के तौर पर आजमगढ़ को केंद्र बना कर सक्रिय थे। कालांतर में संस्कृति रक्षा योजना का विहिप में विलय हुआ, तो पांडेय भी विहिप की शोभा बढ़ाने लगे। मई 1992 में उन्हें रामजन्मभूमि मामले की अदालत में पैरवी के लिए आजमगढ़ से अयोध्या बुला लिया गया। उन्होंने इस भूमिका का बखूबी निर्वहन किया। रामजन्मभूमि की मुक्ति के लिए रामलला के सखा की हैसियत से सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति देवकीनंदन अग्रवाल ने 1989 में ही वाद दाखिल कर दिया था। 1996 में उनकी मृत्यु के बाद यह जिम्मेदारी बीएचयू के सेवानिवृत्त प्रोफेसर ठाकुर प्रसाद वर्मा ने संभाली 2008 में उनके बाद रामलला के सखा का दायित्व त्रिलोकीनाथ पांडेय ने संभाला। प्रसिद्धि-प्रचार से दूर दायित्व निर्वहन में लगे रहने वाले पांडेय की प्रतिबद्धता रंग ला चुकी है। सुप्रीम फैसले के बाद उपजी परिस्थितियों के बारे में वे क्या सोचते हैं, इस बारे में जागरण ने उनसे विस्तार से बात की। पेश है, इस वार्ता के प्रमुख अंश-
सवाल : फैसला रामलला के हक में आया है, अब मंदिर निर्माण को लेकर आपकी क्या तैयारी है?
जवाब : सुप्रीमकोर्ट ने भारत सरकार को मंदिर निर्माण के लिए शासकीय न्यास बनाने का आदेश दिया है, हमें उस दिशा में पहल का इंतजार है।
सवाल : मंदिर निर्माण के लिए शासकीय न्यास के गठन के आदेश के बाद आपकी अथवा विहिप के संयोजन में संचालित रामजन्मभूमि न्यास की क्या भूमिका रह गई है?
जवाब : संभावित शासकीय न्यास एवं रामजन्मभूमि न्यास में कोई विरोधाभास नहीं है पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि 1985 में ही गठित रामजन्मभूमि न्यास रामलला के मंदिर के स्वप्न का संवाहक बना हुआ है।
सवाल : आज रामजन्मभूमि पर दुनिया के भव्यतम मंदिर निर्माण की बात हो रही है और आसमान छूती उम्मीदों के आगे उस मंदिर का मानचित्र कुछ छोटा प्रतीत होने लगा है, जिसे रामजन्मभूमि न्यास ने प्रस्तावित कर रखा है। इस बारे में आपकी क्या राय है?
जवाब : रामजन्मभूमि न्यास की ओर से प्रस्तावित मंदिर की भव्यता पर संदेह करना उचित नहीं है। मुख्य मंदिर की बात करें, तो यह भव्यता का पर्याय सोमनाथ के मंदिर से भी कुछ बड़ा बैठेगा। मंदिर को भव्यता देने के अनेकानेक रास्ते हैं। 67.77 एकड़ परिसर में अन्य अनेकानेक प्रखंड बनाकर रामलला के संपूर्ण मंदिर परिसर को भव्यतम स्वरूप दिया जा सकता है।
सवाल : कोर्ट ने मस्जिद के लिए पांच एकड़ भूमि दिए जाने का आदेश दिया है। इस आदेश को किस रूप में देखते हैं?
जवाब : हमें मस्जिद से कोई विरोध नहीं। हमें बाबर के नाम से विरोध है, वह क्रूर-आक्रांता हमारी अस्मिता को रौंदने आया था। रामजन्मभूमि पर बनी मस्जिद वस्तुत: बाबर का विजय स्तंभ थी। वह कोई आस्था का केंद्र नहीं थी। इसलिए मुस्लिम स्वयं को बाबरी मस्जिद से न जोड़ें और बाबर के नाम की मस्जिद को छोड़कर हम किसी भी अन्य मस्जिद का स्वागत करते हैं। सच्चाई तो यह है कि मुस्लिमों से मेरा कोई विरोध नहीं, वे हमारे सगे भाई हैं। यह सच्चाई राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी स्वीकार करता है। द्वितीय संघ प्रमुख गुरु गोलवलकर भी मुस्लिमों को अनभिज्ञ ङ्क्षहदू बताकर उन्हें अपना सगा भाई मानते थे।
सवाल : अनभिज्ञ हिंदू, क्या है?
जवाब : ऐसा हिंदू, जो पीढिय़ों पहले धर्मांतरित होकर अपने सांस्कृतिक मूल से वंचित हो गया।
सवाल : मंदिर निर्माण कब शुरू होगा और कब तक पूरा होने की उम्मीद है?
जवाब : कोर्ट ने तीन माह के भीतर मंदिर निर्माण के लिए शासकीय न्यास के गठन की बात कही है। ऐसे में आगामी रामनवमी तक मंदिर का शिलान्यास होने की उम्मीद है और निर्माण में जो वक्त लगने का अनुमान , उस हिसाब से हम चाहेंगे कि 2025 की विजयदशमी के अवसर पर जब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की सौवीं वर्षगांठ मनाई जा रही हो, तब मंदिर का लोकार्पण हो।