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लखनऊ की किन्नर मोह‍िनी ने तोड़ी परंपरा की बेड़‍ियां, आत्मनिर्भर होने को लीक से हटकर अपनाया यह कारोबार

किन्नर मोहिनी ने बताया की लैंगिक भेदभाव के कारण कोई जल्दी न तो नौकरी देता है और न ही बैंक स्वरोजगार के लिए लोन देना चाहती है। उन्होंने कहा कि अन्य किन्नर भी स्वरोजगार अपनाकर आत्मनिर्भर बन सकते हैं।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sun, 21 Feb 2021 06:30 AM (IST)Updated: Sun, 21 Feb 2021 10:42 AM (IST)
वंचित समूह के लिए मुर्गी पालन बना रोजगार का साधन।

लखनऊ, जेएनएन। किन्नर मोहिनी ने आत्मनिर्भर होने के लिए स्वयं व्यवसाय करने का फैसला लिया। केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (सीआइएसएच) विकसित सहभागिता संस्था के सहयोग से मलिहाबाद में मुर्गी पालन व्यवसाय चुना। मोहिनी ही नहीं कई और लोग भी इस व्यवसाय से जुड़कर आत्मनिर्भर हो रहे हैं। मलिहाबाद के आम के बागों में मुर्गीपालन को व्यावसायिक बनाने के लिए संस्थान द्वारा फार्मर्स फर्स्ट प्रोजेक्ट के अंतर्गत भूमिहीन एवं छोटी जोत वाले किसानों ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा विकसित की गई किस्में कारी निर्भीक, कारी देवेंद्र, कारी शील और कड़कनाथ को पालना शुरू किया।

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किन्नरों को अधिकतर अपने ही परिवार से विस्थापित होना पड़ता है। इनके साथ सामाजिक दुर्व्यवहार और अत्याचार भी होता है। पहली बार 2011 भारतीय जनगणना में ट्रांसजेंडर आबादी की गणना की गई जिसमें साढ़े चार लाख की आबादी बताई गई है। लेकिन अनुमान के मुताबिक संख्या 20 लाख के करीब है। किन्नर आज भी आधुनिकता के इस युग में परंपरागत पेशा कर जीवन यापन कर रहे हैं। संस्थान के फार्मर फर्स्ट परियोजना द्वारा आम के बगीचों में चलाये जा रहे मुर्गी पालन से प्रेरित होकर माल, मलिहाबाद प्रखंड की किन्नर 35 वर्ष की मोहिनी ने परंपरा से हटकर मुर्गी पालन व्यवसाय शुरू किया, जो अन्य किन्नरों के लिए भी एक मिसाल है।

उन्होंने फार्मर फर्स्ट परियोजना से जुड़कर कड़कनाथ पोल्ट्री फार्म खोलने का मन बनाया। सहभागिता स्वयं सहायता समूह, मलिहाबाद से इसके बारे में प्रशिक्षण लिया। जिसमें कम लागत में बाड़ा बनाना, दाना बनाना तथा बीमारियों से बचाने का उपाय बताया गया। मुर्गों की बिरादरी का शेर कहे जाने वाले कड़कनाथ के 500 चूजे क्रय कर व्यवसाय शुरू किया। किन्नर मोहिनी ने बताया की लैंगिक भेदभाव के कारण कोई जल्दी न तो नौकरी देता है और न ही बैंक स्वरोजगार के लिए लोन देना चाहती है। जिसकी वजह से घर-घर जाकर बधाई देकर जो बख्शीस मिलती है उसी से जीवन यापन करना पड़ता है।

उन्होंने कहा कि अन्य किन्नर भी स्वरोजगार अपनाकर आत्मनिर्भर बन सकते हैं। सीआइएसएच के निदेशक डॉ. शैलेन्द्र राजन ने बताया कि आम बागवानों की आय बढ़ाने हेतु मलिहाबाद प्रखंड के तीन गांव में फार्मर फर्स्ट परियोजना चलाई जा रही है। इसमें बागवानों को मुर्गी की नस्ल जैसे कैरी निर्भीक, कैरी देवेन्द्र, शील, कड़कनाथ इत्यादि दी गईं। ब्रायलर मुर्गो की तुलना में प्रति मुर्गों की कीमत 1000 रूपये से अधिक मिलती है। फार्मर फर्स्ट परियोजना के अंतर्गत छोटे एवं सीमांत किसान, महिलाओं, बंजारों एवं किन्नरों को जोड़कर स्वरोजगार के लिए प्रेरित करके आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया जा रहा है।


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