दसवीं मुहर्रम आज, नहीं निकलेगा जुलूस, मौलानाओं ने की घरों में मातम करने की अपील
लखनऊ में मजलिसों में हजरत इमाम हुसैन अलेहिस्लाम की शहादत पेश किया गया आंसुओं का पुरसा।
लखनऊ, जेएनएन। आशूर को जलते खैमों में। न जाने क्या-क्या छूट गया। कर्बला के 72 शहीदों के गम में नौवीं मुहर्रम शनिवार को पुराने शहर का माहौला पूरी तरह गमगीन हो गया। इमाम के चाहने वालों ने मातम कर शहजादी का को पुरसा पेश किया। घरों में गूंजती या हुसैन की सदाओं के बीच महिलाओं ने पूरी रात मातम कर कर्बला के शहीदों का गम मनाया।
इमाम-ए-जुमा मौलाना सैयद कल्बे जवाद ने चौक स्थित इमामबाड़ा गुफरानमआब में ऑनलाइन हो रही अशरे की नवीं मजलिस को खिताब किया। मौलाना ने कहा कि हजरत मुहम्मद साहब (स.) के दौर में बहुत से लोग विलायत का दावा करने वाले पैदा हुए लेकिन जब अमल का समय आया तो हजरत इमाम अली अलेहिस्सलाम के अलावा कोई दिखाई नहीं पड़ा। हजरत इमाम अली के बाद उनके दोनों बेटों ने इस्लाम की बका के लिए अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी। मौलाना ने 10वीं मुहर्रम पर सभी से अपील की है कि कोरोना संकमण की पाबंदी हम सबकी भलाई के लिए है। ऐसे में भीड़ न लगाए और घरों में ही मातम करें। चौक स्थित इमामबाड़ा आगाबाकर में मौलाना मीसम जैदी ने मजलिस को खिताब किया। मौलाना ने कहा कि अगर कोई शख्स मारफते आले मुहम्मद (अ.स.) हासिल करना चाहता है तो उसके लिए बेहतरीन जरिया कुरआन-ए-पाक है। इंसान को सच्चे इस्लाम का मनाने वाला बनना है तो कुरान को पढ़ता जाए और अहलेबैत को समझता जाए। कर्बला के मैदान में जब हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम जा रहे थे तो देखा की मासूम बच्ची शहजादी जनाबे सकीना (स.अ.) पैरों से लिपटी है और कह रही हैं कि आप मैदान में न जाएं जो भी जंग के मैदान गया वापस नहीं आया। विक्टोरिया स्ट्रीट स्थित मदरसा नाजमिया में वरिष्ठ धर्मगुरु मौलाना हमीदुल हसन ने मजलिस को खिताब कर कर्बला के पैगाम को आम किया। इसी तरह ऑनलाइन हो रही मजलिसों में मौलाना आगा रूही ने इमामबाड़ा अफजल महल और मौलाना हबीब हैदर ने मकबरा सआदत अली खां में अशरे की नवीं मजलिस को खिताब कर इमाम की शहादत बयां की। अकबरी गेट स्थित इमामबाड़ा जन्नत मआब सैयद तकी साहब में भी मजलिस हुई। उधर इमाम ईदगाह मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने ऑनलाइन जलसे के दौरान सरकार की कोरोना गाइडलाइन का पालन करने और घरों में रहें और किसी प्रकार की भीड़ एकत्र न होने दें। पाटानाला मस्जिद सुबहानिया में कारी मुहम्मद सिद्दीक साहब ने जलसे को ऑनलाइन खिताब किया।
नहीं निकलेगा आशूर का जुलूस
रविवार को यौम-ए-आशूर मनाया जाएगा। लेकिन इसबार कोरोना संक्रमण की वजह से आशूर का जुलूस नहीं निकलेगा। यह जुलूस विक्टोरिया स्ट्रीट स्थित नाजिम साहब के इमामबाड़े से निकलता था। जो अपने निर्धारित मार्ग होता हुआ कर्बला तालकटोरा जाता था। जुलूस में शहर की करीब 200 मातमी अंजुमन नौहाख्वानी व सीनाजनी करती हुई अपने अलम मुबारक के साथ चलती थी। जुलूस में अंजुमनों के संग हजारों अजादार इमाम के गम में आंसू बहाते चलते थे। पर इसबार सरकार की गाइडलाइन का पालन कर शिया समुदाय ने जुलूस को स्थगित कर दिया। शनिवार को भी शब-ए-आशूर का जुलूस भी कोविड 19 के चलते नहीं निकाला गया। हर साल 10वीं मुहर्रम के दिन पुराने शहर में जगह-जगह लगी सबीलों पर फाका शिकनी का इंतजाम रहता था। मसूर की दाल और चावल पर नज्र दिलाई जाती थी, इसके बाद कर्बला से वापस लौटते समय अजादार नज्र चखते थे। पर इसबार सामुहिक फाका शिकनी का इंतजाम नहीं होगा। कोरोना के चलते घरों में ही नज्र होगी।