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टीवी-मोबाइल के ओवरडोज से बढ़ रहे मानसिक रोग, बचने के लिए ऐसे करें ई-फास्टिंग

सोशल मीडिया, स्मार्टफोन और टीवी पर ज्यादा समय बिताने से बढ़ रहे मानसिक रोग। विशेषज्ञों ने कहा, खाली समय इन पर बिताने के बजाय कुछ रचनात्मक काम करें।

By JagranEdited By: Updated: Tue, 22 May 2018 04:19 PM (IST)
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टीवी-मोबाइल के ओवरडोज से बढ़ रहे मानसिक रोग, बचने के लिए ऐसे करें ई-फास्टिंग

लखनऊ[अमूल्य रस्तोगी]। दखलअंदाजी जब आदतन हो तो लत बन जाती है और लत आपको रोगियों की कतार में लाकर खड़ा कर देती है। इलेक्ट्रॉनिक्स की दुनिया अगर आपकी असल दुनिया को प्रभावित करने लगे तो एहतियात बरतने की जरूरत है। टीवी और मोबाइल की ओवरडोज से बचने के लिए ई-फास्टिंग करें, क्योंकि कुछ मिनट बिताने से शुरू हुई आदत अब दिन का ज्यादातर समय खा रही है जो लोगों को बीमार कर रही है। कई शोध इसकी अधिकता से नुकसान के बारे में बताते हैं तो कई अध्ययन इससे बचाव के तरीकों पर किए गए हैं। शहर में वचरुअल दुनिया (काल्पनिक दुनिया) के हालात और ई-फास्टिंग (इलेक्ट्रॉनिक्स फास्टिंग) के जरूरत के बारे में दैनिक जागरण आपको बता रहा है। केस-1

मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. अलीम ने अपने एक केस के बारे में बताया कि हाल ही में एक छोटे बच्चे का केस सामने आया है। उसमें ऑटिज्म के लक्षण दिखते थे। साथ ही बोलने में भी परेशानी होती थी। पता चला कि माता-पिता दोनों के व्यस्त रहने से बच्चा दिन में 10 से 12 घटे टीवी पर कार्टून देखता था, जिसका गहरा असर उसके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ा। बात करने पर जवाब देने में उसे असहजता होती थी। साथ ही वह जो कुछ कहता था तो काटरून के किरदारों की तरह ही बोलता था। तीन महीने चले इलाज के बाद अब उसकी हालत में सुधार आ रहा है।

केस-2

इंदिरा नगर में रहने वाले एक डॉक्टर साहब का ग्यारहवीं में पढ़ने वाला बेटा फोन यूज करने के बाद में हिस्ट्री डिलीट कर देता था। इस दौरान डॉक्टर साहब ने बेटे के हाथ पर कटे का निशान देखा और अखबार में ब्लू व्हेल के बारे में पढ़ा तो उनकी चिंता और बढ़ गई। उन्होंने बेटे को मानसिक रोग चिकित्सक को दिखाया। काउंसिलिंग के दौरान पता चला कि वह फोन पर ऑनलाइन गेम और अश्लील चीजें देखकर हिस्ट्री डिलीट कर देता था। इससे उसकी पढ़ाई व अन्य चीजें प्रभावित हो रही थीं। मानसिक रोग विशेषज्ञ ने काउंसिलिंग के बाद माता-पिता को भी बच्चे के साथ ज्यादा समय गुजारने की सलाह दी। केस-3

गोमती नगर में रहने वाले एक दंपती का जीवन सामान्य चल रहा था। पति प्राइवेट जॉब में हैं। पति के ऑफिस और बच्चों के स्कूल जाने के बाद महिला खाली समय वाट्सएप पर बिताने लगी। धीरे-धीरे वाट्सएप के तमाम तरह के ग्रुपों में जुड़ती गई। दिनचर्या का एक बड़ा समय फोन पर गुजरने लगा। सुबह आख खुलते ही स्मार्टफोन चेक करने लगती और रात के एक-दो बजे तक चैटिंग में व्यस्त रहने की आदत पड़ गई। रोजमर्रा के काम प्रभावित हुए तो परिवार में झगड़े बढ़ने लगे। डॉक्टर से परामर्श के बाद महिला परिवार के साथ ज्यादा समय बिताने लगी।

इंटरनेट की आदत वाले सबसे ज्यादा लोग भारत में

लंदन स्थित सर्वे करने वाली संस्था एटी कियरने ग्लोबल की रिसर्च के मुताबिक, इंटरनेट की लत वाले सबसे ज्यादा लोग भारत में हैं। देश के करीब 5 प्रतिशत लोग हमेशा ऑनलाइन रहते हैं। यह किसी भी अन्य देश और वैश्रि्वक औसत की तुलना से अधिक है।

अलग-अलग उम्र में पड़ने वाली लत

- बच्चे: काटरून व गेमिंग

- टीनएजर्स: डेटिंग साइट्स, सोशल मीडिया, चैटिंग ग्रुप्स

- प्रोफेशनल : अलग-अलग वर्गो के साथ वाट्सएप ग्रुप डेटा वॉर ने बढ़ाई समस्या

टेलीकॉम सेक्टर में जियो आने के बाद से सभी कंपनियों के बीच उपभोक्ता को ज्यादा इंटरनेट डेटा देने की होड़ शुरू हो गई। कम पैसों में मिल रहे ज्यादा डेटा ने लोगों को इंटरनेट खुलकर इस्तेमाल करने की ऐसी आजादी दी जो पहले कभी नहीं मिली थी। सोशल मीडिया एक्सपर्ट अनूप कुमार मिश्र ने बताया कि मेट्रो शहरों की अपेक्षा छोटे शहरों और गाव के लोगों ने इसका भरपूर इस्तेमाल किया। सर्वे और इंटरनेट पर औसत समय बिताने की बात करें तो प्रति व्यक्ति इंटरनेट व सोशल मीडिया के इस्तेमाल में छोटे शहरों व कस्बों में इस्तेमाल कई गुना बढ़ा है। खुद भी कर सकते हैं जाच

बरजर्ेंस फेसबुक एडिक्शन स्केल से यह मालूम किया जा सकता है कि आपको भी यह लत है या नहीं। इसके लिए गूगल पर इसे सर्च करें और इसमें पूछे गए मात्र छह सवालों का जवाब देकर लत का पता किया जा सकता है। स्क्रीन का नशा सबसे बुरा

अमेरिका के मीडिया सायकोलॉजी रिसर्च सेंटर के मुताबिक स्क्त्रीन की लत नशे की लत से खराब मानी गई है। स्क्त्रीन के सामने ज्यादा समय बिताने से अनियमित नींद, बोलने में दिक्कत और असामाजिक व्यवहार जैसी कई दिक्कतें आती हैं। खासकर बच्चों पर इसका गहरा असर देखने को मिलता है। मोबाइल बढ़ा रहा डर

मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल लोगों में फोमो और नोमो नाम के डर बढ़ा रहा है। बिना मोबाइल हमारी जिंदगी कैसी होगी इस डर को नोमो (नो मोबाइल शब्द का शॉर्ट फॉर्म) नाम से जाना जाता है। मोबाइल पास न होने पर लोगों को लगता है कि कोई जरूरी कॉल या मैसेज न छूट जाए। इसे फोमो (छूट जाने का डर) कहते हैं।

इस तरह से करें ई-फास्टिंग

- काम के घटों के बाद मोबाइल डू नॉट डिस्टर्ब पर लगाएं या स्विच ऑफ करें। शुरुआत में इससे थोड़ी उलझन होगी जो तीन-चार बार करने पर कम होती चली जाएगी।

- बच्चों को कुछ समय के लिए ही टीवी इंटरनेट का इस्तेमाल करने दें। बाकी समय उनके साथ गुजारें।

- तय समय के लिए ही इसका इस्तेमाल करें क्योंकि जो कंटेंट मिलता है वह और देखने के लिए जिज्ञासा बढ़ाता है।

- बचे हुए समय में ऐसे काम तलाशें जो टीवी और इंटरनेट जितने ही मनोरंजक हों।' खाली समय में परिवार वालों या दोस्तों से बात करें।

- टहलने, घूमने, किताब पढ़ने और रचनात्मक कामों में अपना समय लगाएं।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

- केजीएमयू साइकिएट्री विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ मनु अग्रवाल बताते हैं कि ई-फास्टिंग पश्चिमी देशों में कई जगह शुरू किया गया है। इसमें ऐसी जगहें बनाई जाती हैं, जहा नेटवर्क नहीं होता, जिससे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण काम नहीं करते। जब लोगों ने ऐसी जगह समय बिताया तो उन्हें लगा कि कार्य क्षमता बढ़ गई है। अपनी जिंदगी में हम भी मोबाइल और टीवी से दूरी रखकर यह बदलाव ला सकते हैं। इसके लिए अपने समय को सही जगह लगाना चाहिए।

- मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. अलीम सिद्दीकी का कहना है कि जब भी हम समय बिताने के लिए मोबाइल और टीवी जैसे साधनों का सहारा लेते हैं तो यह एकतरफा कम्यूनिकेशन होता है। इसमें जो दिख रहा होता है दिमाग उसे स्वीकार करता है और यह बदलाव हमारे व्यवहार में शामिल हो जाता है जबकि हम जब परिवार या दोस्तों से बात करते हैं तो उनकी बातों को समझकर प्रतिक्रिया देते हैं। जो मानसिक स्वास्थ्य के लिए ज्यादा अच्छा है। - सोशल मीडिया एक्सपर्ट अनूप कुमार मिश्र के मुताबिक, तकनीक के इस दौर में मोबाइल हमारे लिए एक अपरिहार्य जरूरत बन गई है। इससे हमें कई सहूलियतें मिली हैं। लेकिन इन तमाम ख़ूबियों के बावजूद आज लोग सोशल मीडिया के खराब पहलू से ज्यादा प्रभावित हैं। इसे दिमाग के लिए जंक फूड कहा जाने लगा। लिहाजा दुनिया भर में मनोविशेषज्ञ इसे दिन में एक घटे से ज्यादा प्रयोग न करने की सलाह दे रहे हैं।

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