ये हैं गोमती के गुनहगार..
सरकारी महकमों का लाइफ लाइन के प्रति रहा बेपरवाह रवैया
लखनऊ [रूमा सिन्हा]। शहर की लाइफ लाइन गोमती सीवेज मुक्त हो.. शहरियों के इस सपने को सरकारी विभागों ने अपनी तिजोरी भरने का माध्यम बना लिया। आज गोमती की हकीकत सबके सामने है। अरबों खर्च किए जाने के बाद भी गोमती में पानी कम और सीवेज ज्यादा है। दम तोड़ती नदी को उधार के पानी से जीवित रखने के असफल प्रयास जारी है। दरअसल शहर की लाइफ लाइन गोमती की इस स्थिति के लिए कोई एक नहीं बल्कि कई सरकारी महकमें जिम्मेदार हैं।
जी हां, बीते कुछ दशकों में गोमती के साथ हुए मजाक पर अगर नजर डालें तो तस्वीर खुद-ब-खुद साफ हो जाएगी। टाउन एंड कंट्री प्लानिंग डिपार्टमेंट जिसका काम नियोजित शहर के लिए मास्टर प्लान तैयार करना है। इस विभाग ने उत्तर प्रदेश की राजधानी का विकास कैसे हो इस पर कोई तवज्जो ही नहीं दी। नतीजा यह है कि शहर अनियोजित ढंग से फैलता गया। सीवेज निस्तारण कैसे और कहां होगा। इसका कोई ध्यान ही नहीं रखा गया। यही नहीं इतनी बड़ी आबादी को जलापूर्ति कैसे की जाएगी इसका भी कोई प्रबंध नहीं किया। ब्रिटिश काल में बनाया गया ऐशबाग जलकल आज एक सदी के बाद भी जलापूर्ति की रीढ़ बना हुआ है। यही नहीं, गोमती नगर बसाने के लिए सलेज फार्म जहां शहर का सीवेज जाता था उसे पाट दिया।
लखनऊ विकास प्राधिकरण व आवास विकास विभाग ने रही सही कसर पूरी कर दी। कालोनिया बसाते गए, लेकिन सीवेज का डिस्पोजल कहां होगा इस पर कोई ध्यान ही नहीं दिया। जहां लाइन डाली भी उसका अंतिम निस्तारण ही सुनिश्चित नहीं किया गया। इसके अलावा सोसाइटी द्वारा बसाई गई कालोनियों में तो सीवर लाइनें थी ही नहीं। सोक पिट बनाकर सीवेज निस्तारित कर दिया, जिससे भूजल में नाइट्रेट की समस्या पैदा हो गई।
नगर निगम व जलकल विभाग ने और भी बड़ा पाप किया। गोमती में गिरने वाले बरसाती नालों को सीवर निस्तारण का माध्यम बना दिया। यह तब हुआ जबकि अंग्रेजों ने गोमती के दोनों ओर उस वक्त ही सीवर लाइन बना दी थी, जिसकी मदद से शहर का जलमल गोमती नगर में बने सलेज फार्म में पहुंचता था। देखरेख के अभाव में पुरानी लाइन ध्वस्त होने लगीं। इस सिस्टम को दुरुस्त रखने के बजाय नालों में सीवर खोल दिए गए। यहीं से गोमती नदी की उल्टी गिनती शुरू हो गई और वह नदी से नाला बनने लगी।
जल निगम ने एक सपना दिखाया कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) बनाकर शहर के सीवेज को उसमें ट्रीट किया जाएगा। इससे गोमती सीवेज मुक्त होने के साथ-साथ सजला हो जाएगी। वर्ष 2011 में पांच सौ करोड़ से अधिक धनराशि खर्च कर भरवारा में एशिया का सबसे बड़ा एसटीपी बनाया गया। यही नहीं सीवेज लाइन डालने के लिए पूरे शहर को उथल-पुथल कर दिया। आज सात साल हो गए हैं, लेकिन गोमती सीवेज मुक्त नहीं हो सकी है।
सिंचाई विभाग जो नदियों का सरकारी कस्टोडियन होता है उसने गोमती की बिगड़ी तस्वीर को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया। बीएचयू के नदी विशेषज्ञ प्रो.यूके चौधरी की मानें तो नदी संस्कृति को बगैर समझे जिम्मेदार महकमों ने उसके साथ जो प्रयोग दर प्रयोग किए उसने तो मानों गोमती का दम ही घोंट दिया। रही सही कसर दोनों तरफ दीवार व रिवर फ्रंट बनाकर पूरी कर दी। अब न तो नदी किनारे हरियाली है और न हीं नदी का भूजल स्त्रोतों से कोई रिश्ता ही रह गया है।
पर्यावरण विभाग और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तो नदी की बर्बादी पर मौन ही नहीं साधे रहे, मानकों को दरकिनार कर रिवर फ्रंट डेवलपमेंट योजना को हरी झंडी तक दे दी।
जीवनदायिनी 24 सहायक नदियों से भी टूटा रिश्ता
गोमती का दुर्भाग्य यह है कि सहायक नदियों से भी उसका रिश्ता टूट गया है जो उसे जीवन दे सकती थीं। सेटेलाइट तस्वीरों के अनुसार तोऊन, झुकना, भैसी, छआ, कठिना, पिरई, सरायन, गौन, बेहता, कुकरैल, रेठ, कल्यानी, अगूंरिया, अकरद्दी, पीली, कादू नाला, लोनी व सई गोमती की 24 सहायक नदियां हैं। यह सभी नदियां अतिक्रमण का शिकार हैं। यदि इन नदियों की जमीन को अतिक्रमण मुक्त किया जाए तो इनका प्रवाह वापस लौट सकता है।