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पीड़ित महिला ने खुलकर बयां किया दर्द 'बहुत हुई बदनामी, अब तो बस इंसाफ चाहिए'

मजबूरी में मैंने फिर ससुर से हलाला के बाद शौहर से निकाह किया। छह साल तक साथ रहे। इस बीच भी कोई औलाद नहीं हुई।

By Ashish MishraEdited By: Published: Thu, 19 Jul 2018 09:56 AM (IST)Updated: Thu, 19 Jul 2018 01:57 PM (IST)
पीड़ित महिला ने खुलकर बयां किया दर्द 'बहुत हुई बदनामी, अब तो बस इंसाफ चाहिए'
पीड़ित महिला ने खुलकर बयां किया दर्द 'बहुत हुई बदनामी, अब तो बस इंसाफ चाहिए'

बरेली [अतीक खान]। शादी का पहला साल सुकून से गुजरा। लेकिन, इसके कुछ दिन बाद ही औलाद (बच्चे) न होने पर कलह शुरू हो गई। एक ऐसा मनहूस दिन आया जब शौहर ने मारपीट की। फिर तो रोज के झगड़े, मारपीट, तानों से जिंदगी नर्क बन गई। नशे के इंजेक्शन लगाए जाने लगे। शादी के तीसरे साल 2011 में मुझे तीन तलाक देकर घर से निकाल दिया गया। यह दर्द बयां किया ससुर से जबरन निकाह हलाला कराने का आरोप लगाने वाली पीड़ित महिला ने। कहा कि 'बहुत हुई बदनामी, अब तो बस इंसाफ चाहिए।

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दैनिक जागरण से बातचीत में उन्होंने बताया कि उन्होंने ससुर से निकाह करने को इंकार किया तो नशे का इंजेक्शन देकर उसी हालत में बदायूं के किसी मौलाना को बुलाकर ससुर से मेरा निकाह कराया गया। इस जुल्म तक मैं टूट चुकी थी। मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था। मजबूरी में मैंने फिर ससुर से हलाला के बाद शौहर से निकाह किया। छह साल तक साथ रहे। इस बीच भी कोई औलाद नहीं हुई। शौहर, ससुराल वालों के जुल्म जारी रहे। वर्ष 2017 में उसने फिर तलाक दे दिया। तीन दिन घर में कैद रखा। मेरी मां मुहल्ले की कुछ औरतों के साथ लेने आईं तब तीसरी बार रखने के लिए देवर के साथ हलाला की शर्त रख दी गई।

निदा मिलीं तो दर्ज हुआ मुकदमा
दोबारा तलाक के बाद मैं मुकदमा कराने के लिए चार महीने भटकती रही। पुलिस ने नहीं सुनी। मुझे किसी ने बताया कि निदा खान तलाकशुदा औरतों की मदद करती हैं। मैं उनके पास पहुंची। वह थाने लेकर गईं। मुकदमा दर्ज कराया। रिश्तेदारों ने मना किया कि ससुर के साथ हलाला का जिक्र न करना। बदनामी होगी।

रसूले पाक की शरीयत पर कायम
मुझसे तलाक, हलाला का सुबूत मांगा जा रहा है। मेरे पूर्व शौहर कहते कि मैंने तलाक नहीं दिया। इस सूरत में अगर मैं शौहर के साथ रहने लगूं, तो यह सबसे बड़ा गुनाह होगा। तलाक के बाद बीवी शौहर पर हराम हो जाती है। कौन उलमा इस गुनाह की जिम्मेदारी लेंगे। मैं शरीयत पर कायम हूं, इसलिए मैंने कबूला कि मेरा तलाक हुआ है। इस्लाम ने औरत को यह हक दिया है। शरीयत के खिलाफ नहीं हूं बल्कि इसकी आड़ में जो गलत हुआ उसके खिलाफ मुंह खोला है।

भाई-रिश्तेदारों ने फेरा मुंह
मेरे दो भाई नाराज हैं। रिश्तेदारों ने मुंह फेर लिया। सिर्फ बहन का सहारा है। घर से निकलते ही ताने मिलते हैं कि शरीयत को बदनाम कर दिया। कोई मेरा दर्द नहीं समझता कि मैं कैसे जी रही हूं?

सात रुपये में तुरपाई
मैं सिले हुए कपड़ों की तुरपाई करती हूं। एक सूट के सात रुपये मिलते हैं। राशन कार्ड बना था। उससे अनाज मिल जाता। इस बार राशन भी नहीं लाई। कर्ज लेकर मुकदमा लड़ रही हूं। क्या खाऊंगी? कैसे न्याय का खर्च उठाऊंगी? इस घुटन में जीना मुश्किल है। पर अब मैं हार नहीं मानूंगी। इंसाफ लेकर रहूंगी।  

बोली हलाला पीड़ित, अपनी ही नजरों में गिरी हूं मैैं
कुछ मत पूछिए! तीन साल पुरानी हलाला की याद आने पर रूह कांप जाती है। इस जलालत से तो मरना अच्छा था। तब तो एक बार ही मरती, लेकिन अब रोजाना हर पल मरना पड़ता है। अल्लाह! किसी को ऐसा दिन न दिखाए कि हलाला करने को मजबूर होना पड़े। हलाला की शिकार एक पीड़ित तथा बागपत के एक गांव निवासी दो बच्चों की मां का यह दर्द है। पीड़ित बताती है कि अय्याशी को शौहर दूसरी महिला के पास जाता। जो कमाता उस महिला पर लुटा देता। विरोध करने पर मारपीट करता।

एक दिन एक झटके में तीन तलाक कहकर घर से निकाल दिया। इसके बाद मायके में तीन माह इद्दत की। कुछ समय बाद शौहर के रिश्तेदार फिर से तलाक देने वाले शौहर के साथ गृहस्थी बसाने का दबाव बनाने लगे। बिरादरी और रिश्तेदारों ने राबिया के अम्मी-अब्बा को मना लिया। अम्मी-अब्बा ने रिश्ते का वास्ता दिया। अब सोचिए कि इस हालात में वह क्या करती? मौलवी साहब ने हलाला की सलाह दी।

इसके तहत शौहर के बहनोई से राबिया का निकाह किया गया। बस! आगे मत पूछिए। जलालत की इंतहा हो गई। फिर उन्होंने तलाक दिया और फिर पुराने शौहर से निकाह किया। यह ठीक है कि पुराने शौहर के पास रह रहीं हैं, लेकिन जिंदगी बोझ बन गई है, क्योंकि खुद की नजरों में गिरी-गिरी सी महसूस करती हूं। पीड़ित ने तीन तलाक व हलाला पर रोक लगाने के सरकार के प्रयास की सरहाना की।

फतवे पर उठे तूफान के बाद उलमा खामोश

दरगाह आला हजरत से निदा खान के खिलाफ फतवा जारी होने के बाद विवादों का तूफान खड़ा हो गया है। फतवे के जवाब में निदा लगातार मुखर होकर बयान दे रही हैैं लेकिन, उलमा खामोश हो गए हैैं। रणनीति के तहत इस मसले पर होने वाली प्रेस कांफ्रेंस को भी टाल दिया गया। 

ऐसे शुरू हुआ विवाद 
शहर इमाम ने शहर काजी की तरफ से फतवा जारी किया था। यह कहते हुए कि निदा खान ने कानून-ए-शरीयत की मुखालफत की है। उन्हें इस्लाम से खारिज किया जाता है। तौबा की शर्त के साथ तमाम तरह की पाबंदियां भी लगाई थीं। मसलन उनसे मिलना-जुलना, साथ में खाना-पीना और यहां तक कि मौत के बाद जनाजे में भी शिरकत नहीं की जा सकती। निदा ने फतवा जारी होने के बाद फौरन ही कह दिया था कि वह तौबा नहीं मांगेंगी। उल्टे फतवा देने वाले उलमा से ही तौबा की मांग कर डाली थी। 

पहले जवाब की बात, फिर चुप्पी 
सोमवार को फतवा जारी होने के बाद जब मंगलवार को मामला तूल पकड़ा तो तय हुआ कि इसका जवाब बुधवार को दरगाह आला हजरत पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करके दिया जाएगा। मीडियाकर्मियों को दोपहर एक बजे का वक्त भी बता दिया गया था। प्रेस कॉन्फ्रेंस शहर इमाम मुफ्ती खुर्शीद आलम को करनी थी। हालांकि, बाद में पूछा गया तब उन्होंने कहा कि किसी जरूरी काम में उलझ जाने की वजह से वह प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं करेंगे।

विवाद की नहीं थी उम्मीद 
दरअसल, फतवे के बाद विवाद इतना ज्यादा तूल पकड़ जाएगा, इसकी उम्मीद नहीं की गई थी। शायद यही वजह है कि आगे इस मामले में विचार के बाद जवाब देने का फैसला हुआ है। कुछ उलमा से 'जागरण' ने राय जानने की कोशिश की तो उन्होंने फिलहाल बोलने से इन्कार कर दिया। हां, इससे पहले जब शहर काजी की तरफ से शहर इमाम ने फतवा जारी किया गया था, तब उलमा उसके पक्ष में खासे मुखर रहे। 

निदा बात पर अडिग 
दूसरी तरफ निदा खान ने फतवे को लेकर तीखी प्रतिक्रिया देने का सिलसिला जारी रखा है। तीसरे दिन भी बातचीत में दोहराया कि फतवे को किसी कीमत पर कुबूल नहीं किया जाएगा।


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