Move to Jagran APP

कारग‍िल व‍िजय द‍िवस : आठ साल की उम्र में 'फौजी' बन गया था अपना सुनील Lucknow News

कारगिल युद्ध में शहीद होने वाला शहर का पहला बेटा था राइफलमैन सुनील जंग शहादत पर नेताओं ने किए थे कई वायदे

By Anurag GuptaEdited By: Published: Mon, 22 Jul 2019 11:42 AM (IST)Updated: Mon, 22 Jul 2019 06:18 PM (IST)
कारग‍िल व‍िजय द‍िवस : आठ साल की उम्र में 'फौजी' बन गया था अपना सुनील Lucknow News
कारग‍िल व‍िजय द‍िवस : आठ साल की उम्र में 'फौजी' बन गया था अपना सुनील Lucknow News

लखनऊ, जेएनएन। वैसे तो कारगिल युद्ध मई 1999 के पहले सप्ताह से शुरू होकर 26 जुलाई तक चला। इस युद्ध में लखनऊ के कई जांबाजों ने शहादत भी दी। लेकिन इन सभी जांबाजों में सुनील जंग सबसे कम उम्र का जवान था। दो बहनों का इकलौता भाई सुनील जंग की शहादत पर कई बड़े नेताओं ने तोपखाना बाजार का रुख किया। इन नेताओं ने बड़े-बड़े वायदे किए। लेकिन उनको पूरा आज तक नहीं किया गया। 

loksabha election banner

सुनील जंग इंफेंट्री गोरखा राइफल्स का जवान था। दरअसल, राइफलमैन सुनील जंग महत तो महज आठ साल की उम्र में ही फौजी बन गया था। सुनील के स्कूल में फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। उस प्रतियोगिता में सुनील के साथी रंग बिरंगी आकर्षक वेशभूषा धारण करके आए थे। जबकि सुनील अपने पिता और दादा की तरह फौज की वर्दी पहनने की जिद कर रहा था।

मां बीना महत ने सुनील को फौजी ड्रेस दिलाई। सुनील का मन इससे भी नहीं भरा। सुनील फौजी ड्रेस के साथ एक बंदूक के लिए भी मांग करने लगा। मां ने प्लास्टिक की बंदूक दिलाई। इसके बाद प्रतियोगिता के दिन सुनील एक के बाद एक कई देशभक्ति गीतों पर अपना शानदार प्रदर्शन करता रहा। वहां जब सुनील ने कहा कि  मैं अपने खून का एक-एक कतरा देश की रक्षा के लिए बहा दूंगा। यह सुन लोग रोमांचित हो गए थे। 

यही आठ साल का सुनील जब 16 साल का हुआ तो एक दिन घरवालों को बिना बताए ही सेना में भर्ती हो गया। घर आकर सुनील ने बताया कि मां मैं भी पापा और दादा की तरह सेना में भर्ती हो गया हूं। मुझे उनकी ही 11 गोरखा राइफल्स रेजीमेंट में तैनाती मिली है। अब मेरा बचपन का वर्दी पहनने का सपना पूरा हो गया। मां बीना महत बताती हैं कि कारगिल में जाने से पहले सुनील घर आया था। कुछ ही दिन रुका था कि यूनिट से बुलावा आ गया। बोला था कि मां अगली बार लंबी छुट्टी लेकर आऊंगा। 

राइफलमैन सुनील जंग को 10 मई 1999 को उसकी 1/11 गोरखा राइफल्स की एक टुकड़ी के साथ कारगिल सेक्टर पहुंचने के आदेश हुए। सूचना इतनी ही मिली थी कि कुछ घुसपैठिए भारतीय सीमा के भीतर गुपचुप तरीके से प्रवेश कर गए हैं। तीन दिनों तक राइफलमैन सुनील जंग दुश्मनों का डटकर मुकाबला करता रहा। वह लगातार अपनी टुकड़ी के साथ आगे बढ़ रहा था कि 15 मई को एक भीषण गोलीबारी में कुछ गोलियां उनके सीने में जा लगीं। इस पर भी सुनील के हाथ से बंदूक नहीं छूटी और वह लगातार दुश्मनों पर प्रहार करता रहा। तब ही ऊंचाई पर बैठे दुश्मन की एक गोली सुनील के चेहरे पर लगी और सिर के पिछले हिस्से से बाहर निकल गई। सुनील वहीं पर शहीद हो गया। 

घर से मिली थी वीरता की दीक्षा

सुनील के दादा मेजर नकुल जंग ब्रिटिश दौर में गोरखा राइफल्स में शामिल हुए थे। जबकि पिता नर नारायण जंग महत भी सेना की गोरखा टुकड़ी में थे। पिता नर नारायण जंग के बाद बेटा सुनील भी उनके रास्ते पर चल पड़ा था। सुनील को घर में ही अपने जांबाज दादा और पिता से सेना में शामिल होने की प्रेरणा मिली। 

लेकिन वायदे करके भूले 

सुनील जंग की शहादत के बाद उस समय के कई बड़े नेता उनके घर आए। इन नेताओं में साहिब सिंह वर्मा सहित कई नाम शामिल हैं। इन नेताओं ने सुनील जंग के नाम पर कैंट में ही एक स्टेडियम बनाने, बहनों को नौकरी दिलाने और उनकी प्रतिमा लगवाने का आश्वासन दिया था। कारगिल युद्ध को 20 साल होने वाले हैं। लेकिन आज तक नेताओं के वायदे पूरे नहीं हुए।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.