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Memories of Vilayat Jafri: बहुत याद आएगा आवाज और रोशनी से खेलता जादूगर

देश में दूरदर्शन की शुरुआत के साथ ही दूरर्शन के लिए लेखन करने वाले 1952 से रंगमंच से जुड़े देश में लाइट एंड साउंड प्रोग्राम की शुरुआत करने वाले थे वीजन 1919। ड्रामा और पेशकश की जिंदगी में आई इस क्रांति को विलायत जाफरी साहब ने सफल कर दिखाया।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Tue, 06 Oct 2020 06:00 AM (IST)Updated: Tue, 06 Oct 2020 06:00 AM (IST)
Memories of Vilayat Jafri: बहुत याद आएगा आवाज और रोशनी से खेलता जादूगर
दूरर्शन के लिए लेखन करने वाले विलायत जाफरी का जीवन के कुछ यादगार लम्हों पर एक रिपोर्ट।

लखनऊ [दुर्गा शर्मा]। बात 1969 की है। जलियांवाला बाग कत्लेआम को 50 साल होने को थे। हर फनकार बस यही सोच रहा था कि ऐसा क्या किया जाए कि यादगार हो जाए। इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री और इंद्रकुमार गुजराल सूचना एवं प्रसारण मंत्री थे। गुजराल साहब की इच्छा भी फनकारों के साथ थी। तय हुआ कि दुनिया भर में जो लाइट एंड साउंड के रवायती कार्यक्रम होते हैं, उसमें जिंदा कलाकार को रखकर एक नई चीज बनाई जाए। बस फिर क्या था, मोहन राकेश ने अालेख बनाया, अमृता प्रीतम ने गीत, सतीश भाटिया संगीत की धुन तलाशने लगे, दीनानाथ आवाज का जादू जगाने में लग गए, उनके मददगार हुए जोगेंद्र त्रेहन। भारत सरकार ने गीत और नाटक प्रभाग को निगरानी सौंपी और प्रोग्राम का नाम रखा गया- वीजन 1919। ड्रामा और पेशकश की जिंदगी में आई इस क्रांति को विलायत जाफरी साहब ने सफल कर दिखाया। उन्होंने 1969 में हजारों देखने वालों के सामने हिंदुस्तान का पहला रोशनी और आवाज प्रोग्राम वीजन-1919 पेश किया।

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सारी दुनिया में होने वाले लाइट एंड साउंड के रवायती प्रोग्राम के इतर भारत में इसमें जिंदा कलाकार के शामिल हो जाने से यह प्रोग्राम और ताकतवर हो गया। सबसे बड़ा बदलाव ये आया कि प्रोग्राम किसी इमारत की कैद से निकलकर खुले मैदान में आ गया। इसके बाद तो देश भर में लाइट एंड साउंड के प्रोग्राम का सिलसिला चल पड़ा। बाद में बांग्लादेश की लड़ाई जीतने के बाद जो प्रोग्राम पुराना किला, दिल्ली में 1971 में हुआ था, उसकी स्क्रिप्ट विलायत साहब ने खुद लिखी। अब बारी थी बढ़ते कदम की जो 1971 से 1975 के बीच भारत के कई शहरों में खेला गया। लखनऊ, इलाहाबाद, पटना, दिल्ली, भोपाल, जालंधर, जम्मू और जयपुर में धूम मची। लखनऊ में बेलीगारद में जो प्रोग्राम बढ़ते कदम के नाम से उन्होंने प्रस्तुत किया, इसकी कामयाबी का अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि वह 158 रातों यानि लगातार पांच महीनों से ज्यादा पेश किया जाता रहा है। रौनक ये कि हर रात दो शो हाेते थे। भारत के आठ शहरों में 482 शो हुए। अपनी तमाम स्मृतियां को छोड़कर प्रसिद्ध नाटककार, कलमकार, रंगमंच निर्देशक, दूरदर्शन के प्रतीक और आवाज व रोशनी से खेलता जादूगर चला गया...।

इप्टा के आजीवन सदस्य थे

भारतीय जन नाट्य संघ( इप्टा), प्रगतिशील लेखक संघ , साझी दुनिया एवं आॅल इंडिया कैफी आजमी अकादमी ने विलायत जाफरी के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी। वे दिल्ली में कुदीशिया बेगम,हबीब तनवीर तथा शीला भाटिया के साथ इप्टा में शामिल हुए थे। बाद में वे आकाशवाणी और दूरदर्शन के साथ जुड़ गए। उन्होंने लाइट और साउंड के माध्यम से कई अभूतपूर्व प्रस्तुतियां दीं। वे पत्नी मशहूर रंगकर्मी कृष्णा जाफरी के साथ इप्टा के आजीवन सदस्य थे तथा ऑल इंडिया कैफी आजमी एकेडमी लखनऊ के संरक्षक होने के साथ लेखन,नाट्य एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में हमेशा शामिल रहते थे। साझी दुनिया की ओर से रूपरेखा वर्मा, इप्टा की ओर से राकेश, प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से सूरज बहादुर थापा तथा कैफी आजमी अकादमी की ओर से सैयद मेहदी ने उनकी याद में शीघ्र एक बड़ा कार्यक्रम करने का संकल्प लिया।

बिना नाटक देखे ही वापस लौट गए थे

वरिष्ठ रंगकर्मी सर्यमोहन कुलश्रेष्ठ ने बताया कि दूरदर्शन में काम करने के साथ वो नाटकों का भी निर्देशन करते थे। वो मेरे नाटकों के प्रशंसक रहे हैं। अपने घर से खुद गाड़ी चलाकर मेरे नाटक देखने आते थे। एक बार मुझे बहुत अफसोस हुआ था, जब वो नाटक देखने आए थे, लेकिन हॉल के अंदर अत्यधिक भीड़ होने के कारण प्रवेश नहीं कर सके थे। बाद में उन्होंने मुझे मैसेज करके बताया था कि मैं बिना नाटक देखे ही वापस आ गया था। वो रंगमंच से बहुत प्यार करते थे। मेरी उनसे अक्सर फोन पर बात होती रहती थी। करीब 15-20 दिन पहले भी मेरी उनसे बात हुई थी। उनकी पत्नी कृष्णा जाफरी ने मेरे नाटक में अभिनय भी किया है। 

जब वो बोले, नाम के लिए ऑडिशन दे दीजिए

वरिष्ठ रंगकर्मी डॉ. अनिल रस्तोगी ने बताया कि जब वो दूरदर्शन के निदेशक थे तो उससे पहले बिना ऑडिशन के कुछ लोगों को ए ग्रेड कर दिया गया था। मैं उस समय काफी नाराज हुआ था और मैंने उनसे कहा था मैं भी दूसरों की तरह ऑडिशन दिए बिना ए ग्रेड लूंगा। उन्होंने मुझसे कहा था कि पहले जैसे लोगों ने गलती की है आप मुझसे वैसी उम्मीद ना करिए। आप नाम के लिए ऑडिशन दे दीजिए, मैं जानता हूं आप सक्षम हैं बस इतनी मेरी बात रख लीजिए। वो अपनी बात इतने प्यार से कहते थे कि आप उन्हें मना नहीं कर सकते थे। करीब डेढ़ दो वर्ष पहले मुंबई में उनसे मुलाकात हुई थी। जिसको उन्होंने दोस्त माना वो जिंदगी भर के लिए उनका दोस्त हो गया। 

जब अगले दिन मिलने बुलाया

वरिष्ठ रंगकर्मी गोपाल सिन्हा ने कहा कि जब वो लखनऊ दूरदर्शन के निदेशक थे, उस समय हम लोगों ने बाबू हरदयाल हास्य नाट्य समारोह शुरू किया था। वो नवंबर, दिसंबर के महीने में पांच दिन होता था। जब वो हमारे प्रोग्राम में आए तो उन्होंने पूछा कि तुम लोग इसकी पब्लिसिटी कैसे करते हो। हम लोगों ने बताया कि हम लोग जगह- जगह पर पोस्टर और बैनर लगाते थे। उन्होंने हम लोगों को अगले दिन मिलने बुलाया। जब हम उनसे मिलने पहुंचे तो उन्होंने हमारे नाटक का शेड्यूल मांगा। हम लोगों ने कहा हम लोगों के पास तो इतना पैसा नहीं है तो वो बोले आप इसकी चिंता ना करें। हम इसका प्रसारण टेलीविजन पर करेंगे। तब ये बहुत बड़ी बात थी। उस समय शाम को समाचार से पहले वो शीट स्क्रीन पर रोल की जाती थी। उसका नतीजा ये रहा कि रवींद्रालय में प्रोग्राम होता था और लोग सीतापुर, बाराबंकी से नाटक देखने आते थे। उनका ये योगदान हमेशा याद रहेगा।

गंगा जमुनी तहजीब का सितारा टूट गया

अभिनेता राजू पांडेय बताते हैं, 1999 में मैंने गन्ना संस्थान के सभागार में विलायत साहब का नाटक शतरंज के मोहरे देखा। अद्भुत नाटक था। फिर भारतेंदु नाट्य अकादमी रेपेट्ररी के दौरान जाफरी साहब ने मेरे कई नाटक देखे और हौसलाअफजाई की। इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में मेरी एक शॉर्ट फिल्म की स्क्रीनिंग थी, उसे देखने के बाद जाफरी साहब ने कंधे पर हाथ रखते हुए कहा-अच्छा काम किया है। उनके आशीष वचनों के तमाम संस्मरण हमेशा ताजा रहेंगे। जाफरी साहब क्या गए गंगा जमुनी तहजीब का एक सितारा टूट गया।

परिचय : संक्षेप में

जन्म : 2 अक्टूबर, 1932, रायबेरली, उप्र

शिक्षा :

  • कुरआन शरीफ और दीनियात- मोलवी मोहम्मद इब्राहिम
  •  हिंदी और संस्कृत-पंडित राम दुलारे
  • महात्मा गांधी कॉलेज, रायबरेली, उप्र
  •  लखनऊ विश्वविद्यालय।
  •  विलायत जाफरी के परदादा 1857 में अंग्रेजों से लड़े और उन्हें फांसी हुई।
  •  आजादी की लड़ाई लड़ते हुए दादा 1921 में लंबे अरसे तक अंग्रेजों की जेल में रहे।
  • भारत में दूरदर्शन के जन्म से ही दूरदर्शन के लिए लेखन। दूरदर्शन लखनऊ में निदेशक भी रहे।
  • आकाशवाणी लेखन छह दहाइयों से।
  •  रंगमंच से जुड़ाव 1952 से।
  •  थियेटर के लेखक और निर्देशक के रूप में विदेश मंत्रालय के आइसीसीआर के पैनल मेंबर।
  • भारत में लाइट एंड साउंड प्रोग्राम के जन्मदाताओं में।
  • मेंबर स्क्रिप्ट कमेटी, नेशनल फिल्म डवलपमेंट कारपोरेशन, मुंबई- 1985-86
  • लइफ मेंबर फिल्म राइटर्स एसोसिएशन, मुंबई।
  • मेंबर, इंटरनेशनल जूरी, गोल्डेन पराग, यूरोप- टीवी फेस्टिवल अवार्ड-1989

मशहूर नाटक और दूरदर्शन धारावाहिक

कहानियों और नाटकों की दस किताबें प्रकाशित, जिसमें नाटक जहर कौन पिये को उर्दू अकादमी दिल्ली और जम्मू कश्मीर सरकार का अवार्ड मिला था। कहानी संग्रह गुस्ताखियां को उर्दू अकादमी उप्र का अवार्ड। मशहूर नाटकों में एक जमा दो, शतरंज के मोहरे और शाहजहां आदि। दूरदर्शन धारावाहिक आराम, काला चोर और नाटक आगा हश्र का रूस्तम सोहराब खूब पसंद किए गए। दूसरे मशहूर धारावाहिक नीम का पेड़ जोकि डॉ. राही मासूम रजा और विलायत जाफरी ने मिलकर लिखा, शेरशाह सूरी और आधा गांव।

गालिब पर अनूठा काम

लाइट एंड साउंड पर अब तक गालिब पर कोई काम नहीं हुआ था, जब विलायत जाफरी ने 1978 में रोशनी और आवाज के माध्यम के जरिए गालिब को पहली बार पहुंचवाने की कोशिश की। विलायत जाफरी ने इस उम्दा अंदाज में गालिब को पेश किया कि सिर्फ उन की जिंदगी ही नहीं उन की शायरी की अजमत, उनकी शख्सियत की दिलकशी हर चीज सामने आ गई। गालिब पर विलायत जाफरी के लाइट एंड साउंड प्रोग्राम की सबसे बड़ी खूबी यह रही कि इसके लिए उर्दू को जानना जरूरी नहीं है। बाद में इस पर इनकी किताब भी आई, जिससे विमोचन के लिए अंतिम बार उनका लखनऊ आना हुआ था।

कुछ मशहूर लाइट एंड साउंड प्रोग्राम

  • पुराना किला, दिल्ली- 1971
  • बढ़ते कदम, लखनऊ एवं भारत के दूसरे भागों में- 1974
  • बहादुरशाह जफर, हुमायूं मकबरा दिल्ली- 1976
  • गालिब, जहाजमहल, महरौली, दिल्ली- 1978
  • अनारकली, चंडीगढ़- 1980
  • इस तरह के करीब 22 प्रोग्राम सारे भारत में।

अवार्ड

  • संगीत नाटक अकादमी का सबसे बड़ा अवार्ड अकादमी रत्न - 2018
  • उर्दू अकादमी दिल्ली अवार्ड- 1989
  • कम्यूनल हारमनी अवार्ड- 1990
  • भारत ज्योति अवार्ड- 1991
  •  कबीर अवार्ड- 1992
  •  उर्दू अकादमी उप्र अवार्ड- 1997
  •  यूपी रत्न अवार्ड - 1997
  •  तुलसी सम्मान - 2007
  • आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी युग पुरुष सम्मान - 2007
  • उप्र गौरव सम्मान - 2016
  •  वकार-ए-अवध अवार्ड- 2018

इसके अलावा तमाम अन्य अवार्ड।


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