International Biodiversity Day 2020: पर्यावरण संरक्षण में छिपा है जैव विविधता का महत्व
International Biodiversity Day लॉकडाउन के दौरान तमाम लोगों ने समझा प्रकृति का महत्व।
लखनऊ [जितेंद्र उपाध्याय]। International Biodiversity Day 2020: दो महीने के लॉकडाउन में हमें यह एहसास हो गया है कि प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना हम पर कितना भारी पड़ सकता है। भोर में बिना धुंध के लालिमा लिए सूर्योदय का नजारा लॉकडाउन में पर्यावरण प्रेमियों के साथ आम लोगों को अपनी ओर खींचता है। वाहनों के शोर के बीच गुम होती चिड़ियो की आवजा कानों को शुकून पहुचाती हैं। प्राणि उद्यान से चिड़ियों की चहचहाहट पास से गुजरने वालों को भी शूकून पहुचाती है। इस लॉकडाउन ने आम आदमी को भी पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक कर दिया है।
छोटा सा प्रयास, बढ़ा फायदा
प्राकृतिक संपदा को बचाए रखने और जैव विविधता के संरक्षण को लेकर आम लोगों को जागरूक करने का कार्य वीआइवी रोड के गोरांग वाटिका में देखा जा सकता है।
जैव विविधता और पारिस्थितिक तंत्र को अपने आंचल में छिपाए इस वाटिका में तालाब भी बना है जहां मेढ़क की आवाज के साथ कछुवा कदम ताल करता है तो कमल के फूल के पत्तों के नीचे छिपी मछलियां तेज धूप में ठंड का एहसास करती हैं। बुलबुल की आवाज के साथ चहकती चिड़ियों से दोस्ती आम लोगों को अपनी ओर खींचती है तो कौआ और कोयल की आवाज की जुगलबंदी प्रकृति से आम आदमी को करीब लाती है।
बतख के साथ नाचता है मोर
बाबा साहब भीमराव आंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय परिसर भी पारिस्थितिक तंत्र का साशक्त उदाहरण पेश करता है। दुर्लभ पक्षियों के साथ ही जंगली खरगोश यहां घूमते नजर आते हैं। बतख की अावाज से परिसर गुंजायमान रहता है तो नाचते मोर ही छटा देखते ही बनती है। कुलपति प्रो.संजय सिंह ने बताया कि प्रकृति से लगाव होगा तभी इस पारिस्थितिक तंत्र को बचाया जा सकेगा। परिसर का सौंदर्यीकरण तो समय-समय पर होता है, लेकिन परिसर का कुछ हिस्सा प्राकृतिक छटा के अनुरूप छोड़ा गया है। यहां तालाब है तो जंगल में पाए जाने वाले छोटे जीव जंतुओं के अलावा प्रकृति ही हर छटा यहां देखने को मिलती है।
पेड़ों के साथ नदियां भी जरूरी
नदियों के किनारे और उसके आसपास के पेड़ पौधों में जैव विविधता का विविध रंग होता है। नदियों को सीमित करके हम उनकी धारा को मोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। बाबा साहब भीमराव आंबेडकर केंद्रीय विवि में पर्यावरण विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ.वेंकटेश दत्ता ने बताया कि नदियों को बचाकर हम जैव विविधता को बचाए रख सकते हैं। विकास के नाम पर पूरे पारिस्थितिक तंत्र को बर्बाद करना उचित नहीं है। कुओं को फिर से बचाने की जरूरत है। कल के लिए जल के संयोजक सीबी पांडेय ने बतायाकि राजधानी की बात करें तो यहां दो हजार से अधिक तालाब गायब हो चुके हैं। ऐसे में हमें विकास के साथ पर्यावरण को लेकर भी अपनी सोच बदलनी होगी।
इसलिए मनाया जाता है दिवस
प्राकृतिक संपदा और जीव जंतुओं के पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण के प्रति जागरूक करने के लिए संयुक्त राष्ट महासभा की ओर से 20 दिसंबर वर्ष 2000 में हर साल 22 मई को अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाने का निर्णय लिया गया है। प्रकृति के साथ जुड़ने और जंतुओं का मानव जीवन में योगदान के महतत्व पर इस दिन चर्चा की जाती है और पारिस्थितिक तंत्र को बचाने का संकल्प इस दिन लिया जाता है।