जहरीली शराब कांड : मौत का खौफ भी नहीं रोक पाया अवैध शराब का कारोबार
अवैध शराब बेचने से किसी की मौत होने पर मृत्युदंड का कानून भी इस व्यवसाय से जुड़े लोगों के हौसले नहीं तोड़ सका।
लखनऊ, जेएनएन। अवैध शराब बेचने से किसी की मौत होने पर मृत्युदंड का कानून भी इस व्यवसाय से जुड़े लोगों के हौसले नहीं तोड़ सका। आबकारी, पुलिस और स्थानीय व्यवसायियों के गठजोड़ से सरकार के समानांतर इसका व्यवसाय चलता रहा। इसकी परिणति सहारनपुर और कुशीनगर में जहरीली शराब से हुई मौतों के रूप में हुई, जिसमें संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
कड़े दंड की व्यवस्था है
प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद आजमगढ़ में जहरीली शराब का पहला मामला सामने आया था जिसमें दो दर्जन से अधिक लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद ही सरकार ने आबकारी अधिनियम-1910 में संशोधन का फैसला लिया था। इस अधिनियम में धारा 60-क को जोड़ते हुए जहरीली शराब से मौत पर कड़ी सजा का प्रावधान किया गया। इस धारा के अनुसार जहरीली शराब से होने वाली मौत या स्थायी अपंगता पर दोषियों को आजीवन कारावास,10 लाख का जुर्माना या फिर दोनों सजा एक साथ मिल सकती है। इसी धारा में मृत्यदंड दिए जाने का भी प्रावधान है। इससे पहले अवैध शराब पीने से मौत होने पर दोषियों को सिर्फ मामूली जुर्माना का प्रावधान था। यह जुर्माना भी 500 से 2000 रुपये तक ही होता था। इस संशोधन के जरिए सरकार ने 24 से ज्यादा धाराएं बदली थीं और आबकारी अधिकारियों के अधिकार भी बढ़ाए गए थे।
भ्रष्टाचारियों में कोई भय नहीं
कानून कड़े होने पर माना गया था कि इससे जहरीली शराब के व्यवसाय पर अकुंश लगाया जा सकेगा, लेकिन आबकारी विभाग अपने ढर्रे पर ही चलता रहा। विभाग के संरक्षण में ही दूरदराज क्षेत्रों में भट्ठियां सुलगती रहीं और दूसरे राज्यों से आने वाली शराब पर भी अंकुश नहीं लगाया जा सका। वस्तुत: विभाग ने अपने ही बनाए कानूनों पर अमल करके कोई नजीर नहीं पेश की, जिससे अवैध शराब के व्यापारियों में कोई भय व्याप्त हो सके। यहां तक कि लगभग आठ माह पहले कानपुर में जहरीली शराब से 16 मौतें होने के बाद कुछ अधिकारियों को निलंबित जरूर किया गया लेकिन, ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया जिससे कि विभाग में भ्रष्टाचारियों में कोई भय पैदा हो पाता।वस्तुत: हर घटना के बाद विभाग अपने बचाव की कोशिशों में ही जुटा रहा है, उससे सबक नहीं लिया। उदाहरण के तौर पर पिछले साल बाराबंकी में जहरीली शराब से मौतों के मामले में यह तर्क दिया गया कि मौत स्प्रिट पीने से हुई है। इसमें एक इंस्पेक्टर के खिलाफ कार्रवाई हुई थी। विभागीय अधिकारियों को बड़े अधिकारियों के संरक्षण की वजह से बख्श दिया गया।