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कारगिल युद्ध : फौजी को मिल रहा था घर...मांग ली सरहद, यह है अदम्य साहस की अद्भुत दास्तान

कारगिल युद्ध में पैर गंवाने वाले कर्नल को सेवानिवृत्ति के बाद मिला मौका तो मांगी कश्मीर में तैनाती।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Tue, 21 Jul 2020 09:46 AM (IST)Updated: Tue, 21 Jul 2020 09:46 AM (IST)
कारगिल युद्ध : फौजी को मिल रहा था घर...मांग ली सरहद, यह है अदम्य साहस की अद्भुत दास्तान
कारगिल युद्ध : फौजी को मिल रहा था घर...मांग ली सरहद, यह है अदम्य साहस की अद्भुत दास्तान

लखनऊ, (निशांत यादव)। 'खुद से ज्यादा जिसे देश से प्यार होता है, वर्दी पहने वही सीमा का पहरेदार होता है,

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दूर रहता है अपनों से अपनों के लिए फौजी, सारा ही वतन उसका अपना परिवार होता है। '

कारगिल के नायक कर्नल जेके चौरसिया के व्यक्तित्व पर यह शेर खूब फबता है। पाकिस्तान के साथ हुई उस जंग में एक पैर गंवाने के बाद भी वह वतन पर सर्वोच्च न्यौछावर करने को तैयार हैं। सेवानिवृत्ति के वर्षों बाद पिछले साल रक्षा मंत्रालय ने उन्हें पुन: देश की सेवा का न्योता दिया, तो उन्होंने लखनऊ में हो रही नियुक्ति ठुकराकर कर्मभूमि कश्मीर में तैनाती मांगी। आज वो वहां कृत्रिम पांव के सहारे घुसपैठियों एवं आतंकियों के आगे डटकर खड़े हैं।

पूर्व के अनुभवों के आधार पर कर्नल चौरसिया पाक के नापाक इरादों पर भारी पड़ रहे हैं। वह कहते हैं कि आजकल कठुआ और सांबा में आतंकियों की घुसपैठ रोक रहा हूं। इस दौरान कई आतंकी मारे गए हैं। बतौर फौजी मेरा यही सपना था कि जब-जब मौका मिले, मराठा लाइट इंफेंट्री के साथ सरहद पर दुश्मनों को नेस्तनाबूद करूं। सेना से अवकाश प्राप्त होने के बाद जब रक्षा मंत्रालय ने मुझे एक बार फिर सेना में आने का मौका दिया। मुझे गृह जिले लखनऊ में तैनाती दी जा रही थी लेकिन, मैंने जम्मू कश्मीर में पोस्‍ट‍िंंग मांगी।

यह है अदम्य साहस की अद्भुत दास्तान

लखनऊ में जन्मे और यूपी सैनिक स्कूल के छात्र-कैडेट रहे कर्नल जेके चौरसिया को एनडीए और आइएमए के बाद 14 जून 1986 को सेना की मराठा लाइट इंफेंट्री में कमीशंड मिली। मराठा रेजीमेंट की रायल बटालियन को कर्नल चौरसिया कमांड कर चुके हैं। 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान कर्नल चौरसिया इसी बटालियन की अल्फा टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे। करीब 16 हजार की ऊंचाई पर पाकिस्तानी घुसपैठियों ने पोस्ट बना रखी थी। 30 जून की रात उफनाई नदी से होते हुए वह टुकड़ी के साथ पहाड़ी पारकर सीमा के करीब पहुंचे।

भारी गोलीबारी के बीच पाकिस्तानी सेना के हथियारों के स्टोर को उन्होंने उड़ा दिया। एक बंकर को भी तबाह किया, मगर लौटते समय एक बारूदी सुरंग पर पैर पडऩे से हुए ब्लास्ट में वह घायल हो गए। एक जवान बलिदानी हो गया। दूसरे जवानों को कोई खतरा न हो इसके लिए कर्नल चौरसिया ने सबको चले जाने का आदेश दिया। रात के अंधेरे में उनके साथ चल रहा गाइड उन्हें नदी तक लाया। यहां फस्र्ट एड देने के बाद एमआइ रूम पहुंचा। जहां से तीसरे दिन हेलीकॉप्टर से कर्नल चौरसिया को श्रीनगर स्थित 92 फील्ड अस्पताल ले जाया गया। कारगिल युद्ध के अलावा कर्नल जेके चौरसिया नागालैंड, मणिपुर में भी उग्रवादियों के खिलाफ कई ऑपरेशन में हिस्सा ले चुके हैं। 


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