Teachers Day Special: गुरु की शिक्षा से पास की जीवन की परीक्षा Lucknow News
शिक्षक दिवस पर लखनऊ के विभिन्न क्षेत्रों के सम्मानित लोगों के जीवन में शिक्षकों के महत्व पर खास बातचीत।
लखनऊ, जेएनएन। 'आपकी दी शिक्षा से जीवन की हर परीक्षा पास हो जाती है। जिंदगी के हर अंधेरे में रोशनी दिखाते हैं आप। भटक जाते हैं हम तो सही राह में लाते हैं आप। किताबी के साथ-साथ नैतिक गुणों का भी पाठ पढ़ाते हैं आप। काम करने का तरीका, जीवन जीने का सलीका सब आपसे ही तो सीखा है। मां-बाप को भी तो गुरु रूप में ही देखा है'। जीवन की मुश्किलों में काम आए सबक जो गुरु ने सिखाए थे। नहीं डिगे वो कदम जो शिक्षक के सानिध्य में बढ़ाए थे। शिक्षक दिवस पर जागरण की खास रिपोर्ट।
उनसे सीखा दूसरे के दर्द को अपना समझना
केजीएमयू के प्रो. एनसी मिश्र को देखकर ही मैंने कैंसर रोग विशेषज्ञ बनने की ठानी। उन्होंने उस समय कैंसर रोगियों का इलाज किया, जब पूरे प्रदेश में कहीं भी इसका इलाज नहीं होता था। उन्होंने मुङो मंत्र दिया था कि परिश्रम के अलावा सफलता का कोई रास्ता नहीं है। दूसरे के दर्द को अपना समझ कर ही मरीज का दर्द दूर कर सकते हैं।
प्रो. नीरज रस्तोगी, रेडियोथेरेपी विभाग, पीजीआइ
सरल स्वभाव ने किया प्रभावित
केजीएमयू के प्रोफेसर महेश चंद्र हमेशा याद आते हैं। वह क्लीनिकल कार्डियोलॉजिस्ट थे। उन्होंने मुङो एमबीबीएस और एमडी में पढ़ाया था। उनके सरल स्वभाव को मैंने भी आत्मसात करने का हमेशा प्रयास किया। उनका स्वभाव इतना अच्छा था कि कोई भी अपनी बात उनसे कह सकता था।
प्रो. सुदीप कुमार, कार्डियोलॉजिस्ट, पीजीआई
हमेशा कहते, मरीजों का संबल बनो
जाने-माने सर्जन एनसी मिश्र की खास बात यह थी कि वह डिपार्टमेंट सबसे पहले आते और बाद में जाते थे। उन्होंने कैंसर का उपचार शुरू किया। वह कहते थे कि कैंसर मरीज के साथ बहुत अच्छा व्यवहार रखो। कम से कम उसकी पीड़ा कम न भी कर सको तो उसका संबल तो बनो। उनकी खास बात यह थी कि उन्हें सबका नाम याद रहता था और वह नाम लेकर बुलाते थे। इससे लोग बहुत प्रभावित होते थे।
- डॉ. विनोद जैन, प्रोफेसर, सर्जरी विभाग, केजीएमयू
संवेदनशीलता ने किया प्रभावित
डॉ. देवकी कुट्टी और डॉ. एडी इंजीनियर मेरी सबसे प्रिय शिक्षक रही हैं। दोनों ही मरीजों के प्रति बेहद संवेदनशील थीं। डॉ. कुट्टी का मानना था कि दिन हो या रात मरीज आए तो जरूर देखो। पता नहीं वह किस इमरजेंसी में हो। डॉ. इंजीनियर के पास एक अविवाहित पेशेंट आई। वह बहुत संकोच कर रही थी। उन्होंने मुझसे कहा कि अकेले में उससे बात कर मदद करो। उसकी दिक्कतें को और न बढ़ाओ। ये बातें मुङो आज भी याद आती हैं।
डॉ. चंद्रावती, पूर्व विभागाध्यक्ष क्वीन मेरी हॉस्पिटल, केजीएमयू
सिर्फ तालीम नहीं जीवन जीने की शैली भी सीखी
नौ साल की उम्र में भातखंडे संगीत संस्थान में कथक में प्रवेश लेने वालीं डॉ. रुचि खरे आज उसी संस्थान में शिक्षक के रूप में कई विद्यार्थियों का आदर्श हैं। वह कहती हैं, कथक की मेरी पहली गुरु दीपा देवा रहीं। फिर गुरु स्व. सुभाष दीक्षित के मार्गदर्शन में विशारद किया। उसके बाद डॉ. पूर्णिमा पांडे मुङो गुरु के रूप में मिलीं। इन्हीं के अंडर में स्टेट लेवल स्कॉलरशिप भी ली। वह मेरी व्यवसायिक शिक्षा की प्रथम शिक्षिका रहीं। नेशनल स्कॉलरशिप, जूनियर रिसर्च फैलोशिप सब उन्हीं के मार्गदर्शन में किया। पीएचडी में भी मेरी मेन गाइड वही रहीं। मैंने उनसे सिर्फ तालीम नहीं जीवन जीने की शैली और कार्यप्रणाली सीखी। 1995 में गुरु पूर्णिमा पांडे के साथ अल्मोड़ा में पहली प्रस्तुति दी थी। होली थीम पर आधारित इस प्रस्तुति के बाद तमाम मौके आए जब हम मंच पर साथ आए। 2017 में रवींद्रालय में आयोजित ‘विरासत’ कार्यक्रम में भी प्रस्तुति दी थी। गुरु से जो सीखा वही शिष्य शिष्याओं को भी अग्रसारित कर रही हूं।
पिता जी ही मेरे असली गुरु
डीएम कौशल राज शर्मा कहते हैं कि अब तक के सफर में कई शिक्षक मिले जिन्होंने मुङो ईमानदारी से आगे बढ़ने का सही रास्ता दिखाया लेकिन मेरी जिंदगी में सबसे अधिक प्रभाव पिता जी का रहा। मेरे पिता राम गोपाल शर्मा ने मुङो अनुशासन और स्वावलंबी होने का पाठ पढ़ाया। उनकी बातों का असर रहा कि मैंने हास्टल में अधिक समय बिताया इसके बावजूद कभी उनके बताए रास्तों से नहीं भटका। पिता जी की बातें हमेशा मेरे साथ आर्शीवाद बनकर अब तक हैं। शिक्षकों का तो हमेशा मेरे ऊपर हाथ बना रहा लेकिन पिता ने बचपन से ही दोस्त और शिक्षक की भूमिका अदा की जिससे मुङो फैसले लेने में कभी दिक्कत नहीं हुई।
विद्वता और दूरदर्शिता कमाल
लविवि के समाज शास्त्र विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर पवन कुमार मिश्र का कहना है कि विद्वता और दूरदर्शिता की बदौलत प्रो. राधाकमल ने लखनऊ विश्वविद्यालय का नाम देश दुनिया में रोशन करने के साथ ही शोधपरक शिक्षा से अपने शिष्यों को भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र क्षेत्र से जुड़ा हर व्यक्ति उन्हें अपना आदर्श मानता है। लविवि में 1921 में अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र विभाग बना। प्रो. राधाकमल मुखर्जी इसके प्रथम विभागाध्यक्ष थे। उन्होंने उत्तर भारत में समाजशास्त्र के बीज को बोकर उसे पौधे से वट वृक्ष बनाने का काम किया। वह 1921 से 1949 तक विभागाध्यक्ष रहे। उनके लेखन कार्य अद्वितीय माने गए। उनके पढ़ाए कई शिष्य इसी विभाग के विभागाध्यक्ष बने और कई शिष्यों के विचारों को विदेशी विवि के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया।
गरीब बच्चों को मुफ्त दे रहीं शिक्षा
इनरव्हील क्लब ऑफ लखनऊ प्रेरणा ने सआदतगंज स्थित इनोवेटेड पाठशाला को गोद लिया है। क्लब की अध्यक्ष गरिमा अग्रवाल ने बताया कि क्लब के सदस्य इस पाठशाला में पढ़ाने भी जाते हैं। इस वर्ष जुलाई में यहां पर दो कमरे बनवाए भी गए। बच्चों को शिक्षा के साथ कंप्यूटर व सिलाई कढ़ाई का भी ज्ञान दिया जाता है। इसके अलावा यहां से प्रतिभाशाली बच्चों को अन्य स्कूल में एडमिशन कराया जाता है, जिसका पूरा खर्चा क्लब ही उठाता है। इसके अलावा पाठशाला में सीखने वाले युवाओं की नौकरी लगाने का भी प्रयास किया जाता है।
बदलाव पाठशाला में बच्चे बदल रहे तकदीर
डॉ. शकुंतला मिश्र राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय से समाजकार्य में पीएचडी कर रहे शरद पटेल दुबग्गा स्थित बसंत कुंज योजना में बदलाव पाठशाला चलाते हैं। जिसमें में शिक्षा से वंचित सैकड़ों बच्चों की जिंदगी बदल रही है। झुग्गी झोपड़ी व अल्पसुविधा प्राप्त क्षेत्र में रहने वाले यहां शिक्षित हो रहे हैं। शरद ने बताया कि पिछले कई वर्षो से इस पाठशाला को चला रहा हूं। पहले तो अकेले ही बच्चों को पढ़ाता था, लेकिन धीरे-धीरे कई और साथी जुड़ गए हैं। परवेज अहमद, शिवम वर्मा, अमित रावत, आकांक्षा मिश्र, अंचिता और गुलशन बानो बच्चों की क्लास लेते हैं। बच्चों को शिक्षक सामग्री भी उपलब्ध कराते हैं।
सेवानिवृत्ति के बाद सुशिक्षित समाज का निर्माण
पूर्व डीजीपी एमसी द्विवेदी पिछले 17 वर्षो से मजदूर, सब्जी बेचने वाले, फेरी लगाने वाले बच्चों को फ्री शिक्षा दे रहे हैं। उनके पढ़ाए हुए बच्चे भी आज खुद शिक्षित होकर समाज में सिर उठाकर जी रहे हैं, साथ ही उसी पाठशाला में अन्य बच्चों को पढ़ा भी रहे हैं। एमसी द्विवेदी ने बताया कि रिटायरमेंट के बाद बच्चों को शिक्षित करने के काम में लग गए। बच्चों को पढ़ाने का सिलसिला 15 अगस्त 2003 से शुरू हुआ, जब पत्नी नीरजा द्विवेदी ने गोमतीनगर स्थित नए मकान में कुछ बच्चों को बुलाकर आजादी के बारे में बताया। उसके बाद बच्चे निरंतर आते गए। मौजूदा समय में सौ से ज्यादा बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। हम दोनों के अलावा चार शिक्षक और इस मुहिम में जुड़ गए। इसके अलावा जो बच्चे पहले हमसे पढ़ते थे, वह भी पढ़ाते हैं।