सुप्रीम कोर्ट ने सीएमएस स्कूल को लगाई फटकार, कहा फुटबॉल नहीं हैं बच्चे
बेहद तल्ख टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा -बच्चे फुटबॉल नहीं, जिन्हें यहां से वहां फेंका जाए। गरीब बच्चों के दाखिले के एक साल बाद सीएमएस ने उनको उनके घर के नजदीक के स्कूल में
लखनऊ (जेएनएन)। सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख के बाद पिछले साल 13 गरीब बच्चों को दाखिला देने वाले सिटी मान्टेसरी स्कूल के इन बच्चों को उनके घर के पास दूसरे विद्यालय में शिफ्ट किए जाने की गुजारिश पर सर्वोच्च न्यायालय ने फिर कड़ी फटकार लगाई है। बेहद तल्ख टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा -बच्चे फुटबॉल नहीं, जिन्हें यहां से वहां फेंका जाए। गरीब बच्चों के दाखिले के एक साल बाद सीएमएस ने उनको उनके घर के नजदीक के स्कूल में शिफ्ट करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
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न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति आरके अग्रवाल की पीठ के समक्ष कल सिटी मांटेसरी स्कूल की ओर से कहा गया कि उसने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के 13 बच्चों को अपने स्कूल में दाखिला दे दिया है। साथ ही यह दलील दी कि केवल उनके स्कूल में ही आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को दाखिला दिलाया गया है। इन बच्चों के घर के पास भी स्कूल हैं, इसलिए उन्हें वहां शिफ्ट कर दिया जाए। स्कूल की इस दलील पर पीठ ने सख्त नाराजगी जताई। पीठ ने इस संबंध में स्कूल और प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जवाब देने को कहा है। हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश वकील ने भी कहा कि बच्चों को दूसरे स्कूलों में नहीं शिफ्ट किया जाना चाहिए।
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25 फीसदी सीटों पर गरीब बच्चों का दाखिला देना अनिवार्य
आरटीई के तहत अल्पसंख्यक संस्थानों को छोड़कर अन्य सभी निजी स्कूलों को 25 फीसदी सीटों पर आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को दाखिला देना अनिवार्य है। बच्चों की फीस की प्रतिपूर्ति प्रदेश सरकर को करनी होती है। इसके बावजूद ज्यादातर विद्यालय गरीब बच्चों को दाखिला देने में आनाकानी करते हैं। सीएमएस ने इंदिरानगर शाखा में निशुल्क दाखिला न देने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ही 13 बच्चों को दाखिला मिला था।सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सीएमएस ने आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को दाखिला भले ही दिया हो पर फीस प्रतिपूर्ति के लिए अभी तक आवेदन नहीं किया गया है। इसके बजाय स्कूल प्रशासन इन बच्चों को अन्य स्कूल में ट्रांसफर करने के लिए बीएसए को पत्र लिख रहा था। बीएसए के मना करने पर स्कूल की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई।