अमां होगे तुम ब्लंट स्क्वायर ! हम भी हैं छन्नीलाल
अपने में अनूठा यात्रा वृतांत हैं छन्नीलाल।
लखनऊ, [आशुतोष शुक्ल]। एक से एक भारी-भारी नाम वाले मुहल्ले और सड़कें हैं लखनऊ में। ब्लंट स्क्वायर, क्ले स्क्वायर, हैवलक रोड, हीवेट रोड, लाटूश रोड, जापलिंग रोड, बिशप रॉकी स्ट्रीट और जाने क्या क्या। इन्हीं गोरी निशानियों के बीच अचानक लप से उभरता है अपना खांटी छन्नीलाल चौराहा तो वहां से गुजरने वालों, उसे जानने वालों की छाती अनायास ही चौड़ी हो जाती है।
बहुतेरी हैं लखनऊ में अंग्रेजी विरासत लेकिन, लखनवी अंदाज समय-समय पर उनका देसीकरण भी करता रहा है। क्लाड मार्टिन के बनाये कांस्टेंशिया के बगल में मार्टिनपुरवा बस गया और रानी विक्टोरिया के नाम पर बना मुहल्ला पहले टोरिया और फिर टूडिय़ागंज हो गया। माहनगर हो गया महानगर और इसी महानगर में आबाद हुआ छन्नीलाल चौराहा। चौराहे शहर में और भी हैं लेकिन, जिनके नाम पर यह चौराहा बना, वह छन्नीलाल आज भी अपनी चाय की दुकान पर देखे जा सकते हैं। अस्सी बरस से ऊपर के हो गए और अब केवल शाम को दुकान पर आते हैं लेकिन, उनकी ऊर्जा में कोई कमी नहीं।
चाय की एक दुकान के जीवित इतिहास बनने की कथा भी रोचक है। 1954 में छन्नीलाल ने चाय की दुकान खोली। तब यह चौराहा छोटा था। पास में ही रहते भी थे छन्नीलाल। यह सिलसिला चल ही रहा था कि 1967 में उत्तर प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों ने हड़ताल कर दी। हड़ताल बड़ी थी। इसी चौराहे पर हड़ताली जुटते तो छन्नीलाल ने उन्हें मुफ्त चाय देना और पूड़ी सब्जी खिलाना शुरू कर दिया। बताते हैं, 'वही पीएन सुकुल वाली हड़ताल!' कर्मचारी नेता पीएन सुकुल बाद में राज्यसभा भी गए।
छन्नीलाल कर्मचारियों से चाय के पैसे नहीं लेते थे। 'क्यों? ' जवाब है, 'उनके पास होते तो मैं भी ले लेता चाय का दाम...' 'लेकिन, फिर आपका खर्च कैसे चला? वह बताते हैं-'बड़ा कर्जा हो गया था। उस सस्ते के जमाने में भी मेरे ऊपर करीब 15, 16 हजार रुपये का उधार चढ़ गया। मैं कर्मचारियों से एक ही बात कहता कि तुम्हारी नौकरी वापस मिल जाए तो चुका देना और न मिले तो कोई बात नहीं।'
इस सदाशयता का परिणाम निकला और हड़तालियों ने उस चौराहे को ही उनका नाम दे दिया। छन्नीलाल बड़े गर्व से बताते हैं कि, 'हड़ताल खत्म होने के बाद भी बहुत से कर्मचारी लंच के बाद चाय पीने मेरी ही दुकान पर आते।' स्व. अटल बिहारी वाजपेयी और स्व. जैल सिंह को उन्होंने इसी चौराहे पर बोलते देखा और अब देख रहे हैं, महानगर के बड़े बड़े बंगलों को अपार्टमेंट में बदलते हुए।