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Teacher's Day Special: जहां कभी खुद रहे विद्यार्थी, आज वहीं बने आदर्श Lucknow News

पांच सिंतबर को शिक्षक दिवस है। इस मौके पर हम आपको शहर के कुछ ऐसे शिक्षकों की कहानी उन्हीं की जुबानी बता रहे हैं।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Tue, 03 Sep 2019 09:28 PM (IST)Updated: Wed, 04 Sep 2019 07:20 AM (IST)
Teacher's Day Special: जहां कभी खुद रहे विद्यार्थी, आज वहीं बने आदर्श Lucknow News
Teacher's Day Special: जहां कभी खुद रहे विद्यार्थी, आज वहीं बने आदर्श Lucknow News

लखनऊ, जेएनएन। जहां शिक्षार्थ कभी आगमन हुआ था, वहीं शिक्षण का कार्य संभालना। कभी जिस संस्थान से सब कुछ सीखा, आज वहीं विद्यार्थियों के आदर्श बने हैं। सीखने और सिखाने का ये सफर खास है। कुछ ऐसा होना जैसे गुल का बागबां हो जाना। गुरु से जो पाया उसे ही अपने विद्यार्थियों पर लुटा रहे। कुछ ऐसे शिक्षकों की कहानी उन्हीं की जुबानी...

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गुरु से सीखा पढ़ाने का सलीका 

लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एसपी सिंह बताते हैं कि इंटर तक फैजाबाद में पढऩे के बाद स्नातक और पीजी की पढ़ाई लखनऊ विश्वविद्यालय से की। 1976 में लविवि से पीजी करने के तुरंत बाद गोंडा के एलबीएस पीजी कॉलेज में इकोनोमिक्स कालेक्चरर बना। इसके बाद 1991 में नेशनल कॉलेज का प्राचार्य बना। 26 साल यहां प्राचार्य की जिम्मेदारी निभाने के बाद नवंबर 2016 में विवि में कुलपति के तौर पर आना मेरा सौभाग्य ही है। यहीं पढ़ाई की और यहीं का वीसी बना।

कुलपति का कार्यभार ग्रहण से पहले यूनिवर्सिटी पहुंचकर गेट के बाहर गाड़ी खड़ी की, जूते उतारे और जमीन पर बैठकर यूनिवर्सिटी की धरती को प्रणाम किया। कुर्सी संभालने से पहले पूरे विवि परिसर में पैदल घूमा। मैं गोल्डन जुबली और नरेंद्र देव हास्टल में रहा। वीसी बनने के बाद उन कमरों में गया। पीजी क्लास रूम में भी गया। हर शिक्षक के पढ़ाने का अपना तरीका होता है। मुझे टीचर डॉ. शैलेंद्र सिंह ने खासा प्रभावित किया। वो इकोनोमिक्स पढ़ाते थे। मैंने उसने पढ़ाने का सलीका सीखा। सब्जेक्ट प्रजेंटेशन और व्याख्या का उनका तरीका अद्भुत था। 

गुरु ही मेरे रोल मॉडल हैं 

केजीएमयू के कुलपति प्रो. एमएलबी भट्ट के मुताबिक, किसी बच्चे का जीवन बनाने में मां-बाप के साथ गुरु का अहम योगदान होता है। गुरुओं से मैंने व्यवस्थित जीवन व अनुशासन सीखा है। प्राइमरी शिक्षा के दौरान गांव के शिक्षक ठाकुर लोचन सिंह व चिकित्सा शिक्षा के दरम्यान प्रो. जीएन अग्रवाल मेरे लिए रोल मॉडल रहे। 1977 में केजीएमयू तब केजीएमसी में एमबीबीएस में दाखिला लिया था, 1995 में एमडी की। पांच वर्ष तक आर्मी कोर में बतौर कैप्टन लेह-लद्दाख में काम किया। इसके बाद छह वर्ष एएमयू के जवाहरलाल नेहरू कॉलेज में पढ़ाया। 2006 में केजीएयमू में ज्वॉइन किया। 2012-14 तक लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में रेडिएशन अंकोलॉजी विभाग का अध्यक्ष रहा। इस दरम्यान चिकित्सा अधीक्षक पद की जिम्मेदारी भी संभाली। इसके बाद 2014 के अंत में फिर केजीएमयू लौटा, यहां रेडिएशन अंकोलॉजी विभाग का अध्यक्ष बना। इसके बाद 14 अप्रैल 2017 को केजीएमयू के कुलपति पद संभाला। जिस संस्थान में पढ़ा, वहां का कुलपति बनना गर्व व जिम्मेदारी की बात है। पहले डॉक्टरी की पढ़ाई कर गांव में प्रैक्टिस करने का मन था। वहां डॉक्टरों का काफी सम्मान होता था। मगर, धीरे-धीरे स्थितियां बदलती गईं। केजीएमयू का कुलपति बन गया। अब छात्रों के लिए बेहतर शिक्षण व्यवस्था व शिक्षकों के लिए उच्चकोटि की शोध सुविधाएं मुहैया कराने का प्रयास कर रहा हूं। 

 

डॉक्टरी के साथ नैतिक गुणों का भी पाठ 

केजीएमयू में डिपार्टमेंट ऑफ ऑर्थोपेडिक्स के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अभिषेक अग्रवाल ने बताया कि केजीएमयू से ही एमबीबीएस, पीजी और एमएस करने के बाद 2013 में सीनियर रेजिडेंट बना। मार्च 2015 में आर्थोपेडिक्स डिपार्टमेंट में लेक्चरर हुआ और जून 2016 से असिस्टेंट प्रोफेसर हूं। पिता अरविंद कुमार अग्रवाल और मां मीरा अग्रवाल अभिभावक के साथ मेरे लिए आदर्श शिक्षक भी रहे हैं। मेरे डॉक्टर बनने का पूरा श्रेय इन्हें ही जाता है। हर परिस्थिति से लडऩे और जीतने का जज्बा मैंने माता-पिता से ही सीखा। शिक्षकों में प्रो. विनीत शर्मा से डॉक्टरी के अलावा नैतिक गुणों का भी पाठ पढ़ा। उनकी ईमानदारी और अनुशासन अनुकरणीय है। मैं मुख्यत: लिगामेंट सर्जरी और सोल्डर प्रॉब्लम को हैंडल करता हूं। गुरु से जो भी सीखा उसको व्यवहार और अभ्यास में ढाला। 

वो कभी नाराज नहीं होती थीं...

नवयुग कन्या महाविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर बीएड विभाग के सरिता कनौजिया के मुताबिक, मैंने 1993 में नवयुग कन्या महाविद्यालय में बीए में दाखिला लिया था। बीएड भी यहीं से किया। 2009 से बीएड विभाग में ही असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हूं। मेरी बीएड की पढ़ाई के दौरान चंद्रकांत धमीजा जी प्रैक्टिस और टीचिंग में सुपरवाइजर थीं। वो कभी नाराज नहीं होती थीं। हर विद्यार्थी की शंका का नम्रतापूर्वक समाधान करती थीं। मुझे विभा दत्ता मैम के पढ़ाने के तरीके ने भी बहुत प्रभावित किया। व्याख्या करने और पढ़ाने में डॉ. चंद्रा मैम का कोई जवाब नहीं था। मैंने एक शिक्षिका के तौर पर अपने गुरुजन की हर विशेषता को खुद में शामिल करने का प्रयास किया है। 

 

पढऩे को किताबें भी देती थीं टीचर 

अवध डिग्री कॉलेज से हेड इतिहास विभाग डॉ. सुमन वाष्र्णेय बताते हैं कि 1984 में अवध डिग्री कॉलेज से पास आउट किया था, आज वहीं इतिहास विभाग की हेड हूं। 1988 से यहां पढ़ा रही हूं। शिक्षिका डॉ. प्रतिमा भाटिया और मिलि देव ने खासा प्रभावित किया। दोनों इस तरह पढ़ाती थी कि क्लास मिस करने का मन ही नहीं करता था। मैं पढऩे में तेज थी तो दोनों मुझे बहुत पसंद भी करती थी। क्लास में लेक्चर के अलावा वह किताबों को पढऩे के लिए देती थीं। मैडम मिलि तो अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन डॉ. प्रतिमा भाटिया से आज भी संपर्क में रहती हूं। उनके दिए गए लेक्चर आज भी मुझे याद आते हैं। इसके अलावा एक अंग्रेजी की टीचर थीं मैडम जरीन, वह भी बहुत अच्छे से पढ़ाती थीं। जिस कॉलेज में पढ़ाई की, उसी कॉलेज में पढ़ाकर बहुत खुशी मिलती है। 

 

साहित्य पढ़ाने का अनोखा तरीका 

लविवि के डिपार्टमेंट ऑफ इंग्लिश प्रो. निशि पांडेय के मुताबिक, पिछले करीब 32 वर्षों से लविवि में इंग्लिश पढ़ा रही हूं। शिक्षा के साथ-साथ चीफ प्रोवोस्ट, डीन वेलफेयर, प्रॉक्टर, प्लानिंग एंड डेवलपमेंट बोर्ड की निदेशक आदि पदों पर कार्य किया। एमए, एमफिल के साथ करीब 50 पीएचडी कराई। लविवि में 1982 में एमए किया और 1987 में पढ़ाना शुरू किया। मेरे पसंदीदा शिक्षक प्रो. राज बिसारिया व प्रो. मोहिनी मांगलिक रहे हैं। जब मैं पढ़ती थी, तो राज बिसारिया अंग्रेजी लिट्रेचर पढ़ाते थे। उनका अंदाज ही सबसे जुदा था। वह जब ड्रामा पढ़ाते थे, तो खुद अभिनय करके समझाते थे। उन्होंने शिक्षा के साथ जिदंगी जीने का सलीका भी जाना है। उनकी सोच बहुत अच्छी थी, जो हम लोगों को पढ़ाते समय दिखती भी थी। 


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