ऑपरेशन विजय की कहानी कारगिल योद्धाओं की जुबानी
कारगिल युद्ध में भारतीय सेना के पराक्रम की अनेक गाथाएं हैं। इस युद्ध में हमारे जवानों ने साहस और शौर्य की वह मिसाल पेश की जो भावी पीढ़ी को प्रेरणा देती रहेगी।
लखनऊ [निशांत यादव़़] । कारगिल युद्ध में भारतीय सेना के पराक्रम की अनेक गाथाएं हैं। इस युद्ध में हमारे जवानों ने साहस और शौर्य की वह मिसाल पेश की जो भावी पीढ़ी को प्रेरणा देती रहेगी। वर्ष 1999 में हुए इस युद्ध में हमारे जवान विपरीत परिस्थितियों में एक साथ कई दुश्मनों से मुकाबिल थे। चोटी पर दुश्मन और हमारे सामने पर्वत की खड़ी चढ़ाई की चुनौती। चहुंओर बर्फ ही बर्फ। खाने-पीने की सामग्र्री का अकाल पर हमारी सेना ने हार नहीं मानी और असंभव को संभव कर दिखाया। कारगिल युद्ध के हीरो रहे कुछ जवानों ने अपनी अविस्मरणीय यादें 'दैनिक जागरण से साझा कीं। प्रस्तुत है कारगिल युद्ध की कहानी, जांबाजों की जुबानी-
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ले. कर्नल सतीश कुमार, मेंशन इन डिस्पैच, 11 गोरखा राइफल्स
उस समय मैं लेफ्टिनेंट था और सियाचिन के बाद हमारी यूनिट पुणे जा रही थी। कुछ जवान पुणे जा चुके थे और कुछ थे जो हमारे साथ कारगिल पहुंचे। कारगिल के हालात बहुत विषम थे। जैसे ही ऊंचाई पर पहुंचे पानी खत्म हो गया। बर्फ मुंह में रखकर प्यास बुझाई। खाना पहुंचाने के लिए संदेश भेजना पड़ता था। एक बार मैसेज मिला कि छह-सात दिन बाद खाना मिल सकता है। हम बेसब्री से खाने का इंतजार कर रहे थे। सातवें दिन एक सूबेदार सेक्शन के साथ खाना लेकर आते दिखाई दिया। बहुत खुश हुए थे, लेकिन जैसे ही वह करीब आए दुश्मनों ने फायङ्क्षरग कर दी। खाना वहीं बिखर गया। 26 जुलाई को पोस्ट पर कब्जा करने से पहले हमें स्पेशल फोन मुहैया कराया गया था, जहां हमने अपने परिवार से बात की थी।
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सूबेदार बोदूलाल मीणा, 22 ग्रेनेडियर
हमारी यूनिट उन दिनों में हैदराबाद में तैनात थी। मैसेज मिला कि अचानक श्रीनगर पहुंचकर कारगिल जाना है। बस फिर क्या था अपना साजोसामान लेकर कूच कर गए। घरवालों को बताने तक का समय नहीं मिल सका। कारगिल में ऑक्सीजन की बहुत कमी थी और हम हैदराबाद जैसे मैदानी क्षेत्र से आए थे। इस कारण चढ़ते समय कुछ कठिनाई आई। मुझे याद है कि रात को आगे बढ़ते हुए मेरी कंपनी सुबह ऐसी जगह पहुंच गई, जिसके चारो ओर दुश्मन थे। ऐसे में वहां मौजूद नागा रेजीमेंट की एक कंपनी ने कवर फायङ्क्षरग दी और फिर हमने दुश्मन पर हमला बोल दिया। कुछ ही घंटों के बाद खालूबार से सटी जुबैर हिल को दुश्मन से मुक्त कराया। सही मायने में यह अब तक की सबसे कठिन लड़ाई थी जिसे हमने जीता।