UP के अमेठी में इस शख्स ने गीर की गायों से खड़ा किया कारोबार, पहुंचा रहे पौष्टिक घी और दूध
अमेठी एक गाय से शुरू किया काम अब संख्या 72 तक पहुंची। गाय के गोबर से तैयार कंडे पर धीरे-धीरे पकाया जाता है दूध। एक साथ इतनी संख्या में गीर नस्ल की गायें उत्तर प्रदेश में कहीं नहीं हैं।
अमेठी [दलीप सिंह]। ठेकेदारी छोड़कर हरिकेश सिंह को गो सेवा की ऐसी धुन लगी कि गीर नस्ल की गाय के दम पर घी और दूध का बड़ा कारोबार खड़ा कर लिया। शुरुआत एक गाय से की, मगर ग्राहकों की जरूरत और शुद्धता की नब्ज पकड़कर आगे बढ़ते चले गए। तरीका वही पुरातन अपनाया, जिसके दम पर मिसाल दी जाती है कि भारत में कभी दूध की नदियां बहती थीं...। आज उनके पास गीर नस्ल की 72 गायें हैं। एक साथ इतनी संख्या में गीर नस्ल की गायें उत्तर प्रदेश में कहीं नहीं हैं। उनके यहां खास विधि से तैयार होने वाला घी बाजार में साढ़े तीन हजार रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिक रहा है। गोशाला में आने वाले लोगों को गो-मूत्र मुफ्त उपलब्ध कराया जाता है।
बता दें, गीर गायों के मूत्र में 388 प्रकार के रोग प्रतिरोधक तत्व पाए जाते हैं। कल्याणी से हुआ कल्याण: अमेठी निवासी हरिकेश का कुछ साल पहले ठेकेदारी के काम से मन हट गया था। गो सेवा के साथ-साथ उन्होंने गायों की खासियत से परिपूर्ण दूध और घी लोगों तक पहुंचाने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने मातु शारदा गीर गोशाला तैयार की। इसी कड़ी में 2000 में वह गुजरात से गीर नस्ल की गाय लाए और उसका नाम कल्याणी रखा। इस समय गोशाला में अंबा, उमा, गौरी, जया, शैलपुत्री, रानी, भोली, जयंती व सुनंदा सहित गीर नस्ल की कई गायें हैं। घी बनाने का पुरातन तरीका अपनाया: हरिकेश ने शुद्धता पर खास जोर दिया। इसके लिए उन्होंने गोशाला में घी तैयार करने की पुरातन विधि अपनाई। दूध को गाय के ही गोबर से तैयार कंडे पर धीरे-धीरे पकाया जाता है। यह काम सूर्योदय से पहले प्रारंभ हो जाता है। भोर में दही से मक्खन निकाला जाता है। उसके बाद धीमी आंच पर मक्खन को उबाल कर शुद्ध घी तैयार किया जाता है। एक किलो देसी घी निकालने में करीब 40 लीटर दूध खपाया जाता है।
उच्च रक्त चाप, मधुमेह में फायदेमंद
गीर गाय का दूध प्रतिरोधक क्षमता के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। उच्च रक्त चाप, मधुमेह, दिल और किडनी की बीमारी में गीर गाय के दूध से तैयार घी अमृत की तरह काम करता है। अमेठी के साथ ही लखनऊ और प्रयागराज समेत तमाम जिलों के लोग गोशाला पर पहुंच कीमत देकर घी ले जाते हैं। इतना ही नहीं, गीर गाय की ए-2 विटामिन की प्रचुरता वाला दूध बच्चों के लिए बहुत उपयोगी माना जाता है।
गाय के खान-पान पर रखा जाता है विशेष ध्यान
गोशाला में गायों के खान-पान पर भी विशेष ध्यान रखा जाता है। भूसे व हरे चारे के साथ गायों को कालीजीर, अश्वगंधा, सतावर, गेंहू, सोंठ, अजवाइन व हल्दी युक्त अष्ठगंध की दलिया खिलाई जाती है। मुख्य पशुचिकित्सा अधिकारी बताते हैं कि खान-पान का गाय के दूध पर असर पड़ता है। अश्वगंधा और अन्य औषधियां खिलाने से दूध में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है। गाय भी स्वस्थ रहती हैं। अन्य नस्ल की गायों को भी अगर यह सब खिलाया जाए तो उनके दूध की गुणवत्ता में भी बढ़ोत्तरी होगी।
यह भी जानें
- हरिकेश की गोशाला में एक बार में छह से 14 लीटर तक दूध देने वाली गायें हैं
- गायों की देख-रेख के लिए कुल 17 कर्मचारी हैं। उन पर डेढ़ लाख रुपये प्रतिमाह व्यय होता है
- सौराष्ट्र के गीर जंगल के नाम से गीर गाय का नाम पड़ा है, इनकी कीमत 90 हजार रुपये से साढ़े तीन लाख रुपये तक है।
- गीर की गाय के दूध का भाव उसे खिलाए जाने वाले चारे और उसकी पौष्टिकता पर निर्भर करता है।