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उम्रदराज रंगकर्मियों से जवां होता नाट्य समारोह, इनकी सक्रियता को दिल करे सलाम

रंगकर्म संसार: बाबू हरदयाल वास्तव हास्य नाट्य समारोह के 27 साल।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Mon, 10 Dec 2018 11:45 AM (IST)Updated: Mon, 10 Dec 2018 11:45 AM (IST)
उम्रदराज रंगकर्मियों से जवां होता नाट्य समारोह, इनकी सक्रियता को दिल करे सलाम

लखनऊ, [दुर्गा शर्मा]। हास्य-व्यंग्य के साथ बाबू हरदयाल वास्तव हास्य नाट्य समारोह ने 27 साल का सफर पूरा किया। उम्रदराज रंगकर्मियों से जवां होते नाट्य समारोह का गौरवशाली इतिहास रहा है। अब तक 90 से अधिक हास्य नाटकों का प्रदर्शन हो चुका है। केबी चंद्रा, उर्मिल कुमार थपलियाल, सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ, पुनीत अस्थाना, ललित सिंह पोखरिया, संगम बहुगुणा, डॉ. डीसी पांडेय, वीरेंद्र नाथ सान्याल एवं गोपाल सिन्हा आदि के अतिरिक्त कई दिग्गजों का नाम इससे जुड़ा है। संगीत नाटक अकादमी में रविवार को 'अरे! शरीफ लोग' के मंचन के साथ तीन दिवसीय नाट्य समारोह का समापन हुआ। 

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दरअसल, तीन जनवरी 1910 को लखनऊ में जन्मे हरदयाल वास्तव बाल्यावस्था में ही नाटकों से ऐसे जुड़े कि जीवन के अंतिम क्षणों तक मंच पर सक्रिय रहे। अभिनय के साथ-साथ अनेकों नाटक लिखे जो रेडियो पर प्रसारित हुए, कुछ प्रकाशित भी हैं। 23 दिसंबर 1990 को दुनिया को अलविदा कह गए। उन्हीं की स्मृति में मंचकृति द्वारा 1991 से लगातार हास्य नाट्य समारोह का आयोजन किया जा रहा है। 

वरिष्ठों की सक्रियता को सलाम 

 

संगम बहुगुणा, उम्र : 65 वर्ष (मंचकृति के संस्थापक) 

43 वर्षों से रंगमंच में सक्रिय हैं। विभिन्न शहरों में 45 से अधिक नाटकों का निर्देशन और 100 से अधिक नाटकों में मुख्य भूमिका में अभिनय के साथ ही फिल्मों में भी काम किया है। संगीत नाटक अकादमी अवार्ड (2000), संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार सीनियर फैलोशिप (2002 से 2004) और उप्र दूरदर्शन अवार्ड (2016) आदि अवार्ड मिले हैं।

 

ललित सिंह पोखरिया, उम्र : 57 वर्ष 

30 वर्षों से रंगमंच में अभिनेता, लेखक, निर्देशक, प्रशिक्षक के रूप में संलग्न हैं। 60 प्रस्तुतिपरक नाट्य कार्यशालाओं के निर्देशन सहित 110 नाटकों का निर्देशन किया है। तीस मौलिक ङ्क्षहदी नाटकों का लेखन, आठ नाट्य रूपांतरण एवं नाट्यानुवाद, 35 बाल नाटकों का लेखन आदि उल्लेखनीय काम हैं। भारतेंदु नाट्य अकादमी रजत जयंती सम्मान, मयूर पंख कलानिधि सम्मान, संगीत नाटक अकादमी (2005) समेत तमाम अवार्ड मिले हैं। 

रविकांत शुक्ला, उम्र : 60 वर्ष

पिछले 35 वर्षों से रंगमंच में सक्रिय हैं। 100 से अधिक नाटकों में अभिनय और देश के प्रमुख नगरों में 300 से अधिक नाट्य प्रदर्शन कर चुके हैं। दूरदर्शन के 10 नाटक, 12 सीरियल, आठ टेलीफिल्म, छह डॉक्यूमेंट्री, छह लघु फिल्म में अभिनय किया है। 2007 में नंदन गुप्ता और 2009 में मंचकृति सम्मान मिला। 

 

हरीश बडोला, उम्र : 68 वर्ष 

बचपन से ही रंगमंच एवं कविता में रूझान रहा है। गढ़वाली में नृत्य नाटिकाओं और नुक्कड़ नाटकों का मंचन करते हैं। गढ़वाली और ङ्क्षहदी की 85 से अधिक नाटकों में अभिनय कर चुके हैं। मंचकृति (2010) और मितवा सम्मान (2013) मिला है। 

'अरे! शरीफ लोग' के साथ समारोह ने ली विदा 

'अरे! शरीफ लोग' मराठी नाटक का रूपांतरण है। जयवंत दलवी के लिखे नाटक का ङ्क्षहदी अनुवाद विजय वापट ने किया था। समारोह के समापन अवसर पर संगम बहुगुणा के निर्देशन में नाट्य मंचन हुआ। कथानक के अनुसार एक खोली में मध्य वर्गीय चार परिवार रहते हैं। उसी खोली के नीचे के हिस्से में एक लड़की किराये पर रहने आती है। यह लड़की अपनी सुंदरता के कारण इन चारों के आकर्षण का केंद्र बन जाती है। इन चारों की हरकतों को देखकर उनकी पत्नियां शक करती हैं। नाटक में जगह-जगह उत्पन्न विशुद्ध हास्य की स्थितियां दर्शकों को ठहाके लगाने पर मजबूर करती हैं। 

मंच पर

 हरीश बडोला, आशुतोष विश्वकर्मा, अमरीश बाबी, अमरेश आर्यन, ममता प्रवीण, अर्चना शुक्ला, रुबल जैन, निशु सिंह, मनोज वर्मा और निया बाजपेई।    


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