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ये हैं लखनऊ के खूबसूरत तालाब, जहां अब मुहल्ले हैं आबाद

ऐतिहासिक इमारतों वाले लखनऊ में कुछ तालाबों का भी अपना इतिहास रहा है दैनिक जागरण आपको उनसे रूबरू करा रहा है।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sun, 24 Feb 2019 02:35 PM (IST)Updated: Wed, 27 Feb 2019 08:52 AM (IST)
ये हैं लखनऊ के खूबसूरत तालाब, जहां अब मुहल्ले हैं आबाद

लखनऊ,[कुसुम भारती]। बचपन में जिस तालाब के किनारे लगे नीम के पेड़ के नीचे हम सब खेला करते थे। बरसों शहर में रहने के बाद एक दिन गांव जाना हुआ। दिन तो सबसे मिलने-मिलाने में गुजर गया। शाम को थोड़ी फुर्सत मिली, तो एक बार फिर बचपन के उन सुनहरे दिनों की याद जहन में ताजा हो उठीं। वह तालाब, वह नीम का पेड़, संगी-साथी, सब जैसे एक साथ उन स्मृतियों से निकलकर मेरे सामने आकर खड़े हो गए। अचानक उठा और सुनहरी यादों को मन में संजोए उस तालाब की ओर बढ़ चला, जिसे देखने कीललक अब भी कहीं बाकी थी।

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जल्दी-जल्दी वहां पहुंचा मगर यह क्या! तालाब की जगह एक बड़ा सा स्कूल खड़ा था, जिसे देखकर थोड़ी हैरत तो हुई, मगर उससे ज्यादा खुशी इस बात की हुई कि अब गांव के बच्चों को पढ़ने के लिए मेरी तरह बाहर नहीं जाना पड़ेगा।’यादों की ऐसी कहानी कहते हुए बुजुर्ग भैरो प्रसाद का चेहरा खिल उठा। वह कहते हैं, ‘कुएं, बावली, झील, तालाब और पोखर ही पहले पानी का स्रोत हुआ करते थे, मगर समय के साथ सब लुप्त होते चले गए। कहीं कॉलोनी तो कहीं मुहल्ले बस गए।’ 

आपको बता दें कि ऐतिहासिक इमारतों वाले लखनऊ में कुछ तालाबों का भी अपना इतिहास रहा है। लखनऊ और इसके आसपास के ज्यादातर तालाब अब मुहल्लों में तब्दील हो चुके हैं। इन पटे हुए तालाबों पर आबादी ने पैर पसार लिए हैं। कुछ अस्तित्व खो चुके हैं और जो मौजूद हैं, वे भी अस्तित्व की लड़ाई रह रहे हैं। ऐतिहासिक पहचान लिए शहर के कुछ तालाबों की कहानी, लोगों की जुबानी।

शहर में तीन सूरजकुंड

डालीगंज स्थित नक्षत्रशाला से सटे ‘सूरजकुंड पार्क’ के भीतर एक तालाब है, जिसे सूरजकुंड कहते हैं, जिसमें आज भी पानी है। इस पार्क में बने तालाब के चारों ओर नजर दौड़ाने पर सितार, तबला आदि वाद्य यंत्रों को बजाती कुछ मूर्तियां स्थापित हैं। वहीं, इस पार्क में पांच मूर्तियां और भी जिनकी जानकारी इन मूर्तियों के नीचे लगे पीतल की पट्टिका पर अंकित थी। मगर, अब किसी भी मूर्ति के नीचे जानकारी देने वाली पट्टिकाएं नहीं है। पूछने पर पार्क के माली रामपाल कहते हैं, ‘इस पार्क में काम करते हमें कुछ ही साल हुए हैं। पहले इन मूर्तियों के नीचे पीतल की चादरों पर मूर्ति के बारे में लिखा था, मगर चोर चुरा ले गए। ’ इस पार्क में सूर्यदेव का एक मंदिर भी है।

दूसरा सूरजकुंड काले पहाड़ से आगे बुद्धेश्वर रोड पर आलमनगर के पास है, जिसे छोटा सूरजकुंड कहते हैं। जिसमें पानी तो है, जो सड़ चुका है। वहीं, तीसरा सूरजकुंड तालाब गोसाईगंज में है, जो काफी मशहूर है। यह पक्का तालाब है जो दस साल पहले तक मौजूद था। वहीं बंगला बाजार के पास ‘आहल’ झील हुआ करती थी, जिस पर अब स्मृति उपवन बना हुआ है। तेलीबाग में एक ‘कमल सरोवर’ तालाब था, जहां अब रामभरोसे मैकूलाल इंटर कॉलेज खड़ा हो गया।

गुईन तालाब पर बस गया हाथी खाना

कुछ तालाब शहर के बीच मौजूद थे। जो भले ही मुहल्ले बन चुके हैं, पर अपने नाम को बचाए हुए हैं। अमीनाबाद स्थित झंडे वाला पार्क के सामने से जूते वाली गली की ओर जाती सड़क से थोड़ा आगे बढ़ने पर हाथी खाना मुहल्ला है। जो कभी ‘गुईन तालाब’ के नाम से मशहूर था। यह तालाब कभी महिला पीजी कॉलेज के पीछे हुआ करता था। ग्रेजुएशन कर रहे सौरभ श्रीवास्तव कहते हैं, ‘हमने तो आज से पहले कभी सुना ही नहीं था कि यहां कोई तालाब भी था।’ वहीं पास खड़े स्थानीय निवासी मो. हामिद कहते हैं, ‘हमने भी अपने बुजुर्गो से सुना है कि यहां कोई तालाब था।’ ब्रिटिश काल में कर्नल गुईन के नाम से यह जगह मशहूर थी। अमीनाबाद एरिया में आज भी गुईन रोड चौराहा मशहूर है।

 

राजा टिकैतराय के नाम पर बना तालाब

राजाजीपुरम में एक बड़ा तालाब है जिसे ‘टिकैतराय तालाब’ कहते हैं। इस आलीशान तालाब को बनवाने वाले राजा टिकैतराय नवाब ने 1774 में फैजाबाद से लखनऊ आकर अपने राज्य का विस्तार किया। वर्गाकार तालाब बड़ा ही भव्य नजारा पेश करता है। यहां एक तरफ महिलाओं के स्नान के लिए पर्देदार घाट बना हुआ है। इसी तालाब के किनारे लखनऊ में होने वाला शीतला अष्टमी का मशहूर मेला लगता है जिसे आठों का मेला कहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि नवाबी दौर में इस मेले में शामिल होने के लिए राजा पालकियों और रथों से आते थे, जिसकी रौनक देखते बनती थी। अब यह बड़ा तालाब एरिया भी कहलाने लगा है। थोड़ी दूर पर एक मैरिज हॉल के पास छोटा तालाब भी है। राजाजीपुरम से आगे अपट्रान एरिया के पास कभी राजा टिकैतराय का निशातबाग था।

 

राजा त्रिपुर चंद्र बख्शी ने बनवाया था बख्शी का तालाब 

इस गुमनाम जगह पर 1226-1236 हिजरी के मध्य अवध सल्तनत के वजीर त्रिपुर चंद्र बख्शी ने एक पक्का तालाब, शिव मंदिर, बांके बिहारी मंदिर व कई बारादरी निर्मित करवाईं थीं। साथ ही तालाब के चारों ओर बाग बनवाए। इसके बाद इस अनाम स्थान को बख्शी का तालाब कहा जाने लगा। आज बख्शी का तालाब नाम से ही विधानसभा क्षेत्र, तहसील, ब्लॉक, नगर पंचायत, रेलवे स्टेशन, डाकखाना और बस स्टॉप स्थापित हैं। लोगों का इस तालाब से भावनात्मक जुड़ाव है।

इस तालाब की वास्तुकला देखते ही बनती है। सुविधा सम्पन्न भूमिगत जनाना घाट, मर्दाना घाट, पत्थर घाट व गऊ घाट बने हैं। तालाब की शोभा बढ़ाने के लिए आठ खूबसूरत बुर्जियां भी बनी हैं। लेकिन पर्याप्त पानी न होने के कारण तालाब सफेद हाथी से ज्यादा कुछ नहीं है। स्थानीय निवासी नागेंद्र सिंह चौहान कहते हैं, ‘इस ऐतिहासिक तालाब की सभी बारादरी विलुप्त हो चुकी हैं। बागों की जगह कंक्रीट के जंगल हैं। सिर्फ तालाब, शिव मंदिर व बांके बिहारी मंदिर शेष बचे हैं।

लखनऊ की शक्कर तलैया भी मशहूर

मुगल बादशाह औरंगजेब जब लखनऊ आया था, तो उसने अपने नाम से यहां दो मुहल्ले बसाए थे। एक शहर के पश्चिम में आलमनगर में और दूसरा नगर दक्षिण में औरंगाबाद। औरंगाबाद में उसकी बनवाई हुई एक मस्जिद आज भी मौजूद है, जो नवीनीकरण के चलते अपना रचनात्मक वैभव खो चुकी है। बंगला बाजार निवासी एडवोकेट सिद्धनाथ गुप्ता एक पुरानी कहानी का जिक्र करते हुए कहते हैं, ‘औरंगजेब के दौर में यहां एक मंगलदीन सेठ रहा करते थे, जिनका शक्कर का थोक कारोबार था। इसी क्षेत्र में बनी हुई तहसीलदार की कोठी में तहसीलदार अपने एक चौकीदार के साथ रुके हुए थे।

उसी रात चौकीदार मंगलदीन सेठ के घर थोड़ी शक्कर मांगने पहुंचा, जिसे देखकर सेठ डर गए और उन्होंने कह दिया कि शक्कर नहीं है। लेकिन उनको खतरा महसूस होने लगा कि अगर सुबह तलाशी ली गई तो फिर क्या होगा। इसी चक्कर में उन्होंने सारी की सारी शक्कर पास के एक तालाब में डलवा दी। सुबह जो लोग तालाब पर पानी लेने गए उन्हें वह पानी शक्कर के कारण चिपचिपा लगा, अब जब पानी पिया गया तो, वह शरबत जैसा मालूम हुआ। इसी घटना से उस तालाब का नाम शक्कर तलैया पड़ गया और आज भी सरकारी दस्तावेजों में यही नाम दर्ज है।’

पांडेय का तालाब, फतेह अली का तालाब

रुख करते हैं, मोती झील मालवीय नगर की ओर। इस इलाके में कभी ‘पांडेय का तालाब’ हुआ करता था, जहां कॉलोनी बस चुकी है। इसी तरह चारबाग पुल पार करके इंदौर हॉस्पिटल के आसपास रेलवे कॉलोनी बसी है। ‘फतेह अली का तालाब’ के नाम से मशहूर इस एरिया में तालाब तो कोई नहीं है, पर बरसों से यह जगह फतेह अली का तालाब के नाम से मशहूर है। वहीं चौपटिया चौराहे पर संदोहन देवी मंदिर के पास भी कभी एक तालाब था, जो विस्तारित होकर अब कटरा बिजन बेग बन गया है।

इतिहासकार डॉ. योगेश प्रवीन कहते हैं, मैंने अपने बचपन में इस तालाब को देखा था। मगर इसके नाम के बारे में कोई जानकारी नहीं है। शहर में ऐसे बहुत से तालाब हैं जो ऐतिहासिक हैं। दो-तीन तालाब तो मैंने भी अपने बचपन में देखे हैं। कुछ तालाबों का अस्तित्व भले खत्म हो गया हो, मगर आज भी अपने नाम से मशहूर हैं। चांदगंज का तालाब, हुसैनाबाद का तालाब, सरई गुदौली का तालाब, शीशमहल का तालाब आदि भी ऐतिहासिकता समेटे हैं।

 

जानकी कुंड में सीता जी ने धोए थे अपने पैर

मोहान रोड पर बना जानकी कुंड की लोकप्रियता आज भी बरकरार है। ऐसा कहा जाता है कि बिठूर जाते वक्त माता सीता ने इस कुंड में अपने पैर धोए थे। तब से इस कुंड को जानकी कुंड कहा जाने लगा। कुछ लोग जानकी तालाब तो कुछ गोड़ धूलि भी कहते हैं।

तालाब गगनी शुक्ल

मॉडल हाउस के बगल में ‘तालाब गगनी शुक्ल’ है,जहां कभी तालाब था, मगर अब केवल आबादी है। आज भी यह एरिया तालाब गगनी शुक्ल के नाम से मशहूर है। स्थानीय निवासी उर्फी सिद्दीकी कहते हैं, ‘हम तो बरसों से अपने घर के पते पर तालाब गगनी शुक्ल लिखते आ रहे हैं। हालांकि, तालाब के बारे में हम ज्यादा नहीं जानते।’


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