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ढाई हजार करोड़ बहे फिर भी पानी काला, गोमती की इस बदहाली के ये हैं गुनहगार

गोरखपुर की आमी नदी की तरह गोमती के लिए भी सख्त आदेश की दरकार।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sun, 10 Feb 2019 02:41 PM (IST)Updated: Mon, 11 Feb 2019 09:08 AM (IST)
ढाई हजार करोड़ बहे फिर भी पानी काला, गोमती की इस बदहाली के ये हैं गुनहगार
ढाई हजार करोड़ बहे फिर भी पानी काला, गोमती की इस बदहाली के ये हैं गुनहगार

लखनऊ, [रूमा सिन्हा]। लगभग ढाई हजार करोड़ रुपये खर्च होने के बावजूद शहर की लाइफ लाइन गोमती में पानी कम, सीवेज और कूड़ा ज्यादा है। गोमती की इस बदहाली के लिए वे सभी विभाग दोषी हैं, जिन पर नदी को साफ करने की जिम्मेदारी थी।

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एनजीटी ने हाल में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट मॉनीटरिंग कमेटी को गोमती के संरक्षण की भी जिम्मेदारी सौंपी है। इसके चलते बीते दिनों कमेटी द्वारा हैदर कैनाल, कुकरैल नाला, घसियारी मंडी नाला आदि का निरीक्षण किया गया। कमेटी ने पाया कि नालों के जरिये कूड़ा-कचरे के साथ सीवेज भी सीधे गोमती में पहुंच रहा है। नालों पर पंप काम नहीं कर रहे और न ही सीवेज पंपिंग स्टेशन से सीवेज एसटीपी को भेजा जा रहा था। कमेटी ने हाल में गोरखपुर की आमी नदी में हो रहे प्रदूषण को लेकर राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और इसके लिए जिम्मेदार इकाइयों को जिस तरह कठघरे में खड़ा किया है, उसी तरह के सख्त फैसलों की यहां भी दरकार है।

ये हैं गोमती के गुनहगार

टाउन एंड कंट्री प्लानिंग

शहर की प्लानिंग के लिए जिम्मेदार इस विभाग ने राजधानी के विकास को तवज्जो नहीं दी। नतीजतन, शहर अनियोजित ढंग से फैलता गया। सीवेज निस्तारण कैसे और कहां होगा इसका ध्यान ही नहीं रखा। ब्रिटिश काल में बनाया गया ऐशबाग जलकल आज एक सदी के बाद भी जलापूर्ति की रीढ़ बना हुआ है। यही नहीं, गोमती नगर बसाने के लिए सलेज फार्म, जहां शहरी सीवेज जाता था, उसे पाट दिया और सारा का सारा सीवेज नदी के हवाले कर दिया गया।

जल निगम

एक सपना दिखाया कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) बनाकर सीवेज को ट्रीट किया जाएगा। वर्ष 2011 में पांच सौ करोड़ से अधिक धनराशि खर्च कर भरवारा में 345 एमएलडी और दौलतगंज में 56 एमएलडी का एसटीपी बनाया गया। यही नहीं, सीवेज लाइन डालने के लिए शहर को खोद डाला। नौ साल हो चुके हैं। सीवेज अब भी गोमती में ही गिर रहा है।

सिंचाई विभाग

सिंचाई विभाग नदियों का सरकारी कस्टोडियन है। उसने गोमती को पूरी तरह बर्बाद कर दिया। दोनों तरफ दीवार व रिवर फ्रंट तो बनाया ही, साथ ही नदी में पानी रहे, इसके लिए करोड़ों खर्च कर नहर के साफ पानी को सीवेज व कूड़ा-करकट से लबालब कुकरैल नाले के जरिये गोमती में पहुंचा दिया। नदी किनारे से हरियाली गायब है और धारा के बीच व किनारे जगह-जगह मिट्टी के टीले खड़े हैं।

नगर निगम

गोमती में गिरने वाले बरसाती नालों को सीवर निस्तारण का माध्यम बना दिया। यहीं से गोमती नदी की उल्टी गिनती शुरू हो गई और वह नदी से नाला बनने लगी। यही नहीं, नगर निगम नदी किनारे कहीं-कहीं नदी की कोख में कूड़ा डालता रहा। घैला इसका बड़ा उदाहरण है।

जिला प्रशासन

सभी विभागों के कार्यो की मॉनीटरिंग करने वाला जिला प्रशासन भी गोमती की बदहाली पर मौन साधे रहा। मंडलीय से लेकर जिले के शीर्ष अधिकारियों तक ने गोमती की बिगड़ती सेहत की चिंता नहीं की। नतीजा, सबके सामने है।

मानकों को दरकिनार कर योजना को दे दी हरी झंडी

नदी में उद्योग केंद्र गाहे-बगाहे अपना दूषित उत्प्रवाह बहाकर मौज करते रहे और मछलियां मरती रहीं। वहीं, शहरभर का सीवेज नदी को प्रदूषित करता रहा। नालों के जरिये कूड़ा और न जाने क्या-क्या नदी की कोख में पहुंचकर उसका आंचल मैला करता रहा। हद तो तब हो गई, जब पर्यावरण विभाग ने मानकों को दरकिनार कर रिवर फ्रंट डेवलपमेंट योजना को हरी झंडी दे दी।

आज भी स्थिति जस की तस

गोमती की सूरत भले ही न बदली हो लेकिन हालात सुधारने के नाम पर पानी में लगभग ढाई हजार करोड़ रुपये जरूर बहा दिए गए। गोमती एक्शन प्लान के तहत नालों पर जालियां लगाई गईं, ड्रेजिंग की गई, दौलतगंज और भरवारा एसटीपी बनाए गए। यही नहीं, सीवेज को ट्रीटमेंट प्लांट तक ले जाने के लिए शहर में सीवेज लाइन डाली गईं। बावजूद इसके स्थिति आज भी जस की तस है। गोमती के पानी का कालापन गवाह है कि हजारों करोड़ गोमती के बहाने कहीं और बहे।


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