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विश्व गौरैया दिवस: गौरैया सुरक्षित तो हमारा पर्यावरण सुरक्षित, ऐसे बचाएं इन्हें

विलुप्ति का खतरा: गौरैया की संख्या में कमी के कई कारण बताए जा रहे हैं। मोबाइल फोन टॉवरों से निकलने वाली तरंगों में इतनी क्षमता होती है, जो अंडों को नष्ट कर सकती है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 20 Mar 2018 11:00 AM (IST)Updated: Tue, 20 Mar 2018 11:00 AM (IST)
विश्व गौरैया दिवस: गौरैया सुरक्षित तो हमारा पर्यावरण सुरक्षित, ऐसे बचाएं इन्हें
विश्व गौरैया दिवस: गौरैया सुरक्षित तो हमारा पर्यावरण सुरक्षित, ऐसे बचाएं इन्हें

लखनऊ(जितेंद्र उपाध्याय)। चूं चूं करती आई चिड़िया, चना का दाना लाई चिड़िया.घर आगन में फुदकती चिड़ियों की अठखेलियों की तस्वीर उकेरतीं ये लाइनें कुछ समय पहले तक वास्तविकता थी, लेकिन विकास के नाम पर हरियाली पर चला आरा अब इन्हें किताबों और लेखों में ले आया है। 20 मार्च को यानि आज विश्व गौरैया दिवस है। गौरैया का संरक्षण मनुष्य के हित से जुड़ा हुआ है। गौरैया का बचाव पर्यावरण को सुरक्षित करता है। सुनने में अलग है, लेकिन विश्व गौरैया दिवस पर आपको दैनिक जागरण इस नजरिए से रूबरू करा रहा हैं।

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घर को बनाया संरक्षण केंद्र कल्याणपुर के अब्दुल वहीद ने अपने घर को ही गौरैया संरक्षण केंद्र बना लिया है। बिना किसी मदद के साल 2016 में शुरू हुआ इनका प्रयास अब रंग लाने लगा है। उनके घर में बनाए गए घोंसले अब चिड़ियों की चहक से गूंजने लगे हैं। उनका कहना है कि आपका छोटा सा प्रयास इस नन्हीं सी जान के लिए काफी ज्यादा होगा।

गौरैया सुरक्षित तो हमारा पर्यावरण सुरक्षित

जू के निदेशक आरके सिंह बताते हैं कि गौरैया हमारे घरों के आस-पास कीट-पतंगों को खाकर उनकी संख्या सीमित करती है। यह चिड़िया हमारे बीच में हमारे साथ आबादी वाले क्षेत्रों में रहती है, जो मनुष्य और गौरैया के आपसी प्रेम को दर्शाती है। गौरैया स्वस्थ पर्यावरण का संकेतक है। यह हल्के वनज एवं तीव्र श्वसन वाली प्राणी है जिससे पर्यावरण में आये हुए बदलाव का प्रभाव बहुत शीघ्र गौरैया पर दिखायी देता है। अगर हमारे बीच गौरैया सुरक्षित है तो यह मान सकते हैं कि हमारा पर्यावरण सुरक्षित है।

राजधानी में पिछले साल दिखीं 7066 चिड़िया

आम लोगों में गौरैया को बचाने को लेकर संजीदगी कहे या फिर संस्थाओं का प्रयास। लखनऊ विश्वविद्यालय की जूलोजी विभाग की प्रो.अमिता कनौजिया ने बताया कि नियमित स्थान पर हो रही गिनती में इनकी संख्या में बढ़ोतरी हुई है। पिछले चार साल में उनकी संख्या में बढ़ोतरी के आकड़े सामने आए हैं। साल 2013 में 2503 गौरैया थीं तो 2014 में 3362, 2015 में 5637 हुईं और 2016 में उनकी संख्या बढ़कर 6036 हो गई। वहीं, 2017 में 7066 गौरैया हो चुकी हैं। प्रदेश के प्रमुख शहरों में एक दिन की गिनती के बाद ये आकड़े तैयार किए गए हैं। 20 मार्च मंगलवार को विभाग की ओर से आचलिक विज्ञान नगरी में जागरूकता अभियान भी चलाया जाएगा।

इसलिए खत्म हो रहीं गौरैया

कृषि विशेषज्ञ डॉ. टीएम त्रिपाठी कहते हैं कि फसलों से भोजन का इंतजाम करने वाली चिड़िया उसमें पड़ने वाले कीटनाशक से अपनी जान गंवा देती हैं। पहले कच्चे मकानों और झोपड़ी में उनका बसेरा होता था, लेकिन उनकी कमी होने से अब उनके रहने का ठिकाना भी खत्म हो गया है।

क्या कहते है वैज्ञानिकों का?

वैज्ञानिकों का कहना है कि मोबाइल टावर से निकलने वाली तरंगें उनकी प्रजनन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही हैं। वाहनों से निकलने वाले धुएं का भी प्रभाव गौरैया की जीवनशैली पर पड़ रहा है।

इस तरह बचा सकते हैं गौरैया

- गर्मी के दिनों में अपने घर की छत पर एक बर्तन में पानी भर कर रखें।

- गौरैया को खाने के लिए कुछ अनाज छतों व पार्को में रखें।

- कीटनाशक का प्रयोग कम करें।

- अपने वाहन को प्रदूषण मुक्त रखें।

- हरियाली बढ़ाएं।

- घोसलों के स्थान पर पात्र में कुछ खाद्य पदार्थ रखें।

लखनऊ जू में मनाया जाएगा विश्व गौरैया दिवस

20 मार्च को यानि आज विश्व गौरैया दिवस के अवसर पर नवाब वाजिद अली शाह प्राणि उद्यान में विश्व गौरैया दिवस धूमधाम से मनाया जाएगा। गौरैया संरक्षण के जागरुकता कार्यक्रम के तहत प्राणि उद्यान के दोनों गेटों पर गौरैया के घोसलों को दर्शकों को बेचे जाएंगे। इसके अलावा दर्शकों को गौरैया की उपयोगिता के बारे में भी बताया जाएगा।


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