Wolrd Earth Day : बेकार सामान से दे पर्यावरण को आकार, हरियाली से धरती मां का श्रृंगार
पौधरोपण जल और पक्षियों के संरक्षण के लिए जागरूक कर रहे पर्यावरण प्रहरी सिर्फ कोरी बातें नहीं छोटे-छोटे प्रयासों से बचेगी धरा।
लखनऊ [जितेंद्र उपाध्याय / दुर्गा शर्मा]। चारों ओर हरे-भरे पेड़, रंग-बिरंगे फूल, पक्षियों का कलरव और कल-कल करतीं नदियों आदि के रूप में नैसर्गिक सौंदर्य ही धरती का गहना है। धरती मां अपने फल-फूल, अन्न, जल और वायु आदि से मानव को सदियों से पालती-पोसती आई है। पृथ्वी की यह दानशीलता नि:स्वार्थ है, पर मनुष्य ने निजी हितों के लिए उसकी कोख को खाली करना शुरू कर दिया। हमें याद रखना होगा कि धरा है तो हम हैं। हमें पेड़-पौधे, जल और पशु-पक्षी रूपी आभूषणों से धरती मां का श्रृंगार करना होगा। सिर्फ कोरी बातें नहीं, छोटे-छोटे प्रयासों से यह धरती बचेगी। समाज में कुछ लोग अपनी इस जिम्मेदारी को बखूबी समझते हैं। पृथ्वी दिवस के मौके पर पर्यावरण प्रहरियों के प्रयासों को सलाम..।
बेकार सामान से पर्यावरण को आकार
स्कूटर इंडिया से सेवानिवृत्त राजेंद्र नगर निवासी अजय माथुर बेकार सामान से पर्यावरण को आकार देने में लगे हैं। जिन्हें हम अनुपयोगी समझ कर फेंक देते हैं, उनका प्रयोग ये फूलों और पौधों को लगाने में करते हैं। प्लास्टिक बॉक्स, खराब टायर, बाथ टब, पाइप और हैंगिंग पॉट आदि में फूल-पौधे लगाकर अजय माथुर ने अपने घर को सजा रखा है। इनके पास इन हाउस प्लांट की तमाम किस्में हैं। कैक्टस, बोगेनविलिया, फाइकस और कलर्ड पाइनएपल की ढेरों वैराइटी हैं। वह बताते हैं, पिता को बागवानी का शौक रहा है। उनका यह शौक मुझे भी लुभाने लगा। कहीं भी कोई खास पेड़ दिखता है तो ले आते हैं। अनुपयोगी सामान को फेंकने के बजाए उनको प्रयोग पौधे लगाने में करते हैं। इसके साथ ही करीब 200 गमलों में पेड़-पौधे और फूल लगा रखे हैं।
पृथ्वी के ईको सिस्टम को बचाते हैं पक्षी
विकास के नाम पर हरियाली पर जहां आरा चलने लगा है वहीं कंकरीट के शहर में गौरैया को बचाने की चुनौती भी मुंह बाए खड़ी है। पृथ्वी के ईको सिस्टम में अकेली गौरैया ही नहीं गिद्ध, मैना, कौआ, उल्लू सहित कई पक्षियों का योगदान है। कृष्णानगर के इंद्रपुरी में नीलू शर्मा ने अपने घर और आसपास गौरैया के लिए घोंसला बनाया है। उनका छोटा प्रयास अब रंग लाने लगा है और सभी घोंसलों में गौरैया ने अपना ठिकाना बना लिया है। वहीं, लखनऊ विश्वविद्यालय की जूलॉजी विभाग की प्रो. अमिता कनौजिया ने बताया कि खेतों में कीटनाशकों के प्रयोग को रोककर धरती के इको सिस्टम को संरक्षित किया जा सकता है। गौरैया पर्यावरण की स्थिति को भी बताती है। गौरैया का कम होना हमारे पर्यावरण के खराब होने का भी संकेत है।
पौधरोपण से जल संरक्षण
दलदल भूमि को बचाने के लिए पौधों का भी विशेष योगदान होता है। भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. एके शाह ने बताया कि संस्थान की ओर से तराई इलाकों में अभियान चलाकर किसानों को पौधरोपण के लिए जागरूक किया जाता है। तालाबों के संरक्षण के लिए उसके किनारे आठ पौधों आम, बरगद, महुआ, पीपल, पाकड़, गूलर, नीम व इमली के पौधे लगाने की सलाह भी दी जाती है। 99 लीटर पानी एक किलोग्राम गन्ना पैदा करने में लगता है। संस्थान की ओर से कम पानी में गन्ना उत्पादन का प्रयास भी चल रहा है।
बच्चों की पर्यावरण पाठशाला
यूपी डेवलपमेंट फाउंडेशन के संयोजक चंद्रभूषण पांडेय जलस्रोत को बचाने के लिए मिशन कल के लिए जल के साथ ही मृदा प्रदूषण जागरूकता अभियान भी चलाते हैं। सुलतानपुर रोड पर बच्चों के लिए पर्यावरण पाठशाला चलाकर पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक कर रहे हैं। उन्होंने तालाबों को कब्जा मुक्त करने के साथ ही जल दोहन को रोकने की मुहिम भी चला रखी है। प्रदेश में 200 से अधिक जल पंचायतों का गठन कर जल संरक्षण के लिए जागरूकता की अलख जगाए हैं।
धरा को हरा करने का संकल्प
बच्चों को पर्यावरण संरक्षण की शिक्षा देना चंद्रभूषण तिवारी की दिनचर्या का अहम हिस्सा है। शिक्षा के साथ ही उन्होंने धरती को हरा-भरा करने का संकल्प भी लिया है। वह लोगों को पौधे बांटते हैं। पौधों को लगाने की जगह बताने पर वह स्वयं पहुंचकर उसे न केवल लगाते हैं बल्कि एक सप्ताह तक उसकी देखभाल भी करते हैं। पौधे लगाने का उनका यह छोटा प्रयास पर्यावरण बचाने में बड़ा प्रयास है। भोजपुरी गीतों के माध्यम से वह पौधरोपण के लिए सभी को जागरूक करते हैं। तीन दशक से पर्यावरण संरक्षण की उनकी यह अनवरत यात्र चल रही है।