रोड सेफ्टी वीक: जिंदगी पर बड़ी चोट कर जाती है आपकी एक छोटी सी गलती
सड़क हादसों में जान बचने के बाद भी मुश्किल होता आगे का सफर। सिर और रीढ़ की चोट के साथ ही गंवाने भी पड़ सकते हैं अंग।
लखनऊ[दुर्गा शर्मा]। कोई भी अपनी या अपनों की जान का जोखिम नहीं चाहता। बावजूद इसके सड़क दुर्घटनाओं का ग्राफ दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। कभी खुद की तो कभी औरों की गलती से हादसे होते हैं। गंभीर दुर्घटनाओं में मौके पर या अस्पताल में मौत हो जाती है। अगर जान बच भी गई तो ताउम्र दूसरों पर आश्रित हो जाते हैं। सिर और रीढ़ की गंभीर चोटें आगे का जीवन बिस्तर पर गुजारने को मजबूर कर देती हैं। कृत्रिम अंगों के सहारे भी जिंदगी काटनी पड़ सकती है। कभी-कभी इलाज इतना लंबा चलता है कि परिवार की पूरी पूंजी ही चली जाती है। ऐसे में सतर्कता ही बचाव है क्योंकि सावधानी हटी, दुर्घटना घटी। सतर्क रहें, सुरक्षित रहें। हेड इंजरी होती खतरनाक
केजीएमयू के डिपार्टमेंट ऑफ न्यूरो सर्जरी एडिशनल प्रोफेसर डॉ. क्षितिज श्रीवास्तव ने बताया कि हेड इंजरी मेजर और माइनर होती है। मेजर में या तो मौके पर ही मौत हो जाती है या इंसान कोमा में चला जाता है। माइनर इंजरी में सीटी स्कैन में या तो हल्का क्लॉट दिखता है या नॉर्मल निकलता है। इस तरह के मरीजों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है। व्याकुलता संबंधी विकार आ जाते हैं। आत्मविश्वास जाने के साथ ही पीड़ित की निजी और सामाजिक जिंदगी चली जाती है। स्पाइनल कॉर्ड इंजरी में जोखिम
केजीएमयू के डिपार्टमेंट ऑफ आर्थोपेडिक प्रो. आशीष कुमार का कहना है कि स्पाइनल कॉर्ड इंजरी में खासकर गर्दन की चोट में जान का जोखिम ज्यादा रहता है। दुर्घटना के कई दिनों बाद तक भी खतरा बना रहता है। कई बार रीढ़ की हड्डी में चोट के बाद कमर के नीचे का हिस्सा काम करना बंद कर देता है। हड्डियों के चकनाचूर होने के मामले भी आते हैं। नसों को गंभीर क्षति पहुंची तो अंग तक काटना पड़ जाता है। संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है। विकृति के साथ जीना मजबूरी
केजीएमयू के डिपार्टमेंट ऑफ प्रोस्थोडोंटिक्स डॉ शैफाली गोयल बताते हैं कि दुर्घटनाओं में कई बार चेहरा ही विकृत हो जाता है। पूरा जबड़ा निकल जाता है। आगे के दांत टूट गए तो सुंदरता में दाग और पीछे के दांत चले गए तो खाने-पीने में दिक्कत हो जाती है। आंख, नाक और कान तक चले जाते हैं। कुछ मामलों में आधा मुंह ही कट जाता है। ओरल डैमेज में प्रोस्थेटिक काफी हद तक मदद तो करते हैं पर असली अंगों की तरह नहीं। कृत्रिम अंगों का ही बचता सहारा
केजीएमयू के डिपार्टमेंट ऑफ पीएमआर, प्रोस्थेटिक एंड ओर्थोटिक्स साइंसेज के इंचार्ज अरविंद निगम के मुताबिक, बाइक दुर्घटना में सर्वाइकल फ्रैक्चर के मामले ज्यादा रहते हैं। अंग तक पैरालाइज हो जाते हैं। कार दुर्घटनाओं में अक्सर अंग वाहनों में फंस जाते हैं, जिससे उन्हें काटना पड़ सकता है। ऐसे ही ट्रेन से सफर के दौरान भी लापरवाही कई बार भारी पड़ती है। ऐसे में नकली हाथ, पैर, बैसाखी या फिर व्हील चेयर के सहारे बाकी की जिदंगी गुजारनी पड़ती है। रिहैबिलिटेशन में लंबा वक्त भी लगता है। सावधानी ही बचाव है
- हेलमेट और सीट बेल्ट पहनें। न सिर्फ चालक बल्कि पीछे बैठे लोग भी हेलमेट लगाएं।
- वाहन की रफ्तार कम रखें। तेज रफ्तार में दुर्घटनाओं से अंगों को ज्यादा क्षति होती है।
- गाड़ी चलाते वक्त हेडफोन या मोबाइल आदि का इस्तेमाल न करें।
- शराब पीकर गाड़ी न चलाएं।
- पूरी बांह के कपड़े और जूते पहनकर वाहन चलाएं।
इस दिशा में भी हो काम
हेलमेट पहनने से सिर की चोट से तो बच सकते हैं। गर्दन और रीढ़ की हड्डी की चोट से बचाव की दिशा में भी कुछ काम होना चाहिए। एहतियात के लिए कुछ पहनने के लिए बनाया जाना चाहिए।