कैरम पर किस्सों का खेल, रातभर खुले रहते हैं ये क्लब-लगता है खिलाड़ियों का जमावड़ा
नवाबों के शहर में फैला रहा कैरम का क्रेज। पुराने शहर में रातभर खुले रहते हैं कैरम क्लब, लगता है खिलाड़ियों का जमावड़ा।
लखनऊ[मुहम्मद हैदर]। पतली-पतली गलियों में नए पुराने किस्सों के साथ कैरम क्लब आज भी रोमांच के दीवानों से गुलजार होते हैं। शाम ढलते ही यहां युवा जोश के साथ कीमती अनुभव जगह लेते हैं। बोर्ड पर बैठकर खेल और देश दुनिया के कई अनुभव साझा होते हैं तो भविष्य की कई योजनाएं भी आकार ले रही होती हैं। खास बात यह है कि क्लब में खेलने वाले कई खिलाड़ी जिला व स्टेट के साथ नेशनल कैरम टूर्नामेंट तक में अपनी अंगुलियों का कमाल दिखा चुके हैं। कैरम क्लबों की शाम और खिलाड़ियों के अनुभव पर आधारित दैनिक जागरण संवाददाता की रिपोर्ट -
पैसे कमाना नहीं, खिलाड़ी तैयार करना मकसद:
पतली-पतली गलियों में चल रहे कैरम क्लब में बहुत थोड़े से पैसे में खेलने का मौका मिलता है। एक गेट के लिए खिलाड़ी को आठ रुपए देने होते हैं। एक गेम में आठ राउंड होते हैं। मैदान एलएचखां इलाके में करीब 35 वर्षो से कैरम क्लब चला रहे मिर्जा अली कौसर कहते हैं कि क्लब से पैसा कमाना मकसद नहीं है। मकसद है अच्छे खिलाड़ी तैयार करना जो नेशनल जीतकर शहर का नाम रौशन करें। वहीं, दरगाह रोड स्थित बाकर कैरम क्लब के मालिक सैयद बाकर हुसैन आब्दी का कहना है कि अपने क्लब में खेलने वाले खिलाड़ी जब डिस्ट्रिक, स्टेट या नेशनल में बेहतर प्रदर्शन करते हैं तो बेहद खुशी मिलती है। इस खुशी के आगे पैसे का कोई मोल नहीं है। क्लब में गेम होता है, बेटिंग नहीं। क्लब की संख्या दो सौ के पार:
पुराने शहर में कैरम क्लब की संख्या करीब दो सौ से अधिक है जो तीन से चार दशकों से चल रहे हैं। सबसे ज्यादा क्लब पुराने शहर के सआदतगंज, मौलवीगंज, मुफ्तीगंज व पाटानाला इलाके में हैं। कुछ क्लब को छोड़ दें, तो अधिकांश क्लब शाम ढलने के बाद ही खुलते हैं। क्लब खुलते ही खिलाड़ियों की भीड़ जुटती है। हर क्लब के पास अपने खिलाड़ी हैं। खिलाड़ी किस क्लब में खेलेगा यह निर्धारित हैं, जो दूसरे क्लब में कैरम नहीं खेलते। इसलिए जिस क्लब के पास बड़े और नामचीन खिलाड़ी होते हैं, इलाके में सबसे ज्यादा साख उसी क्लब की होती है। साल में कई बार इन क्लब के खिलाड़ियों की आपस में भिड़ंत भी होती है। समय-समय पर मुकाबला आयोजित होता है। इन क्लब को जिला कैरम एसोसिएशन लखनऊ ने प्रमाण पत्र दिए हैं। 1929 को मुंबई में हुई कैरम की पहली प्रतियोगिता। 1988 को चेन्नई में इंटरनेशनल कैरम फेडरेशन (आइसीएफ) की हुई स्थापना।
ऐसा रहा सफर
जानकारों के मुताबिक, कैरम की शुरुआत भारतीय उपमहाद्वीप में हुई थी। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद इसकी लोकप्रियता बढ़ी। 1929 को मुंबई में कैरम की पहली प्रतियोगिता हुई। साल 1988 को चेन्नई में इंटरनेशनल कैरम फेडरेशन (आइसीएफ) की स्थापना हुई। इसी साल कैरम को इंटरनेशनल गेम में शामिल किया गया। बाद में अन्य देशों में भी कैरम को लोकप्रियता मिली।
..असल उत्साह तो ये है-
सिर्फ प्रतिभा जीत जाती है :
क्लब संचालकों के मुताबिक उनके लिए असल उत्साह प्रतिभा का बाकी हिस्सों से पहचान कराना है। कश्मीरी मुहल्ला के असद आगा 'लकी' ऑल इंडिया इंवीटेशन कैरम टूर्नामेंट खेलने उड़ीसा गए हैं। शुक्रवार को टूर्नामेंट का दूसरा राउंड था जिसमें उनका मुकाबला उड़ीसा के खिलाड़ी से था। असद आगा ने इस मुकाबले में जीत हासिल की है। अब वह को टूर्नामेंट का तीसरा राउंड हैदराबाद व राजस्थान में किसी एक से होगा। इससे पहले उन्होंने जयपुर में तीन महीने पहले ऑल इंडिया इंवीटेशन ओपन टूर्नामेंट में क्वाटर फाइनल खेला था, जिसमें उनकी आठवीं रैंक थी। उड़ीसा में हो रहे नेशनल टूर्नामेंट में असद आगा के अलावा दरगाह रोड के रानू आलम व उदयगंज के इरफत अली तीसरा राउंड खेल रहे हैं। जीत हासिल करना लक्ष्य :
पिछले वर्ष चेन्नई में नेशनल टूर्नामेंट में रुस्तमनगर के शावेज आगा सीनियर कैटेगरी के दूसरे राउंड में हार गए थे जबकि, नॉकआउट में उन्होंने तीसरे राउंड तक खेला था। इससे पहले वह स्टेट टूर्नामेंट 2016-17 में टीम चैम्पियनशिप का क्वार्टर फाइनल खेल चुके हैं। जिसमें उनका प्रदर्शन अच्छा था। शावेज बताते हैं कि वह खुद को तैयार कर रहे हैं। पूरा फोकस गेम पर है। अब उनका एकमात्र लक्ष्य जीत हासिल करना है इसलिए वह रोजाना प्रैक्टिस कर रहे हैं। वहीं, अब्बास मेहंदी, यूनुस जैदी, जावेद आलम व अली मंसूर सहित कई खिलाड़ी रोजाना क्लब में प्रैक्टिस करने आते हैं।
खेल के नियम :
- कैरमबोर्ड पर कुल 19 गोटियां होती हैं। इसमें नौ काली, नौ पीली और एक लाल (क्वीन)। इन गोटियों को स्ट्राइकर से कैरम बोर्ड के चारों कोनों में बने छेद में डालना होता है। इसमें काले के दस, पीले के बीस और क्वीन के पचास अंक होते हैं।
- स्ट्राइकर को बोर्ड पर बनी दोनों रेखाओं के बीच में रखा जाता है। यदि वह एक रेखा को छूता है तो फाउल माना जाता है। खिलाड़ी को वह एक शॉट छोड़ना पड़ता है।
- स्ट्राइकर हिट करते समय उंगली या हाथ का कोई हिस्सा बोर्ड को स्पर्श नहीं करना चाहिए। ऐसा होने पर फाउल माना जाता है।
- स्ट्राइकर हिट करने में उंगली व हाथ का कोई हिस्सा बोर्ड को नहीं छूना चाहिए। ऐसा होने पर फाउल होगा।
- अगर स्ट्राइकर कैरम के छेद में चला जाता है तो जीती दो गोटी वापस बोर्ड पर रखनी होती है।
- खेल के आखिरी में बोर्ड पर यदि तीन गोटियां रह जाती हैं एक काली, एक पीली व लाल तो खिलाड़ी को पहले लाल गोटी छेद में डालनी अनिवार्य होगी। अगर ऐसा नहीं होता तो खिलाड़ी को फाउल के तौर पर जीती गोटे रखनी होंगी।
- दोनों टीम या खिलाड़ियों के 27-27 अंक हो जाते हैं, तो गेम को 31 अंकों तक बढ़ा दिया जाता है।
- खिलाड़ी या टीम के 24 अंक होने पर वह रानी के अंक हासिल नहीं कर सकता। अगर वह क्वीन लेकर जीतता है तो भी उसे विरोधी की बची गोटों के अंक मिलते हैं।