अंतराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस: कुदरत के तोहफों को रखें संभालकर
दैनिक जागरण आपको अंतराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस पर अनोखी प्रजातियों के बारे में बता रहा है।
लखनऊ[रूमा सिन्हा]। आसमान में परवाज भरते पक्षियों को देखकर अक्सर मन में आता है कि कितने तरह के पक्षी होंगे। फल-फूल, पेड़-पौधों की हजारों किस्में हम सभी को आश्चर्य में डाल देती हैं। ये तो वे वनस्पतिया हैं जिनके बारे में जानकारी है, लेकिन अब भी न जाने कितनी प्रजातिया ऐसी हैं जिनके बारे में कोई जानकारी ही नहीं है। हालाकि यह सब भी जैव विविधता का ही हिस्सा है। यही वजह है कि वैश्रि्वक स्तर पर वैज्ञानिक इनकी खोज में जुटे हैं। अनुमान के मुताबिक, धरती पर 100 अरब से अधिक प्रजातियों का वास है। विकसित राष्ट्रों के बीच अधिक से अधिक पेड़-पौधों की पहचान कर उनका पेटेंट कराने की होड़ लगी है।
भारत जैवविविधता के लिहाज से सर्वाधिक धनी राष्ट्रों में से है। संसार में 10 हजार से ज्यादा पक्षी पाए जाते हैं जिसमें से भारत में 1232 प्रजाति के पक्षी मिलते हैं। इनमें से अकेले उत्तर प्रदेश में पक्षियों की 552 से अधिक प्रजातिया पाई जाती हैं। गंगा का मैदानी क्षेत्र होने के कारण यहा जंगली इलाकों में पेड़-पौधों के अलावा कुकरबिटेसी कुल की ऐसी तमाम सब्जिया प्राकृतिक रूप से उगती हैं जिनका प्रयोग खाने के लिए किया जा सकता है। चूंकि इनकी पहचान नहीं हो सकी है इसलिए न तो इनका इस्तेमाल भोजन के लिए किया जा रहा है और न ही इनका संरक्षण हो पा रहा है।
अवध क्षेत्र की वनस्पतियों को बचाने की जरूरत
सीएसआइआर-एनबीआरआइ के डॉ. एलबी चौधरी ने अवध में पाए जाने वाले पेड़-पौधों की जानकारी संकलित की है। वे बताते हैं कि अवध क्षेत्र में पाए जाने वाले ऐसे बहुत से पौधे हैं जिन्हें बचाए जाने की जरूरत है। एंडोपेपटिनिया अवधेंसिस (जैंती) एक ऐसा पौधा है जो मूलरूप से उत्तर प्रदेश-नेपाल बॉर्डर पर नदी किनारे पाया जाता है। मुश्किल यह है कि इसके बीज बहुत हल्के होते हैं और उड़कर नदी के साथ में बह जाते हैं। इसकी वजह से इनकी संख्या कम हो रही है। जैंती चारे के लिए भी उपयोगी है। लखनऊ, बलरामपुर, सुहेलवा वन क्षेत्र में पाए जाने वाले जैंती की कैनोपी (पत्तियों का छत्र) बहुत होता है। यही नहीं, इसमें छोटे-छोटे सफेद फूल गुच्छों में आते हैं। फूलों के गुच्छे इसकी खूबसूरती को कई गुना और बढ़ा देते हैं। छायादार होने के कारण मूल रूप से अवध क्षेत्र में पाए जाने वाले जैंती को सड़क किनारे लगाए जाने वाले पौधों में शामिल करने की तैयारी है। डॉ.चौधरी बताते हैं कि एवेन्यू प्लाटेशन (सड़क किनारे लगाए जाने वाले पेड़) के लिए एंडोपेपटियाना अवधेंसिस काफी सफल हो सकता है। केवल जैंती ही नहीं, अवध क्षेत्र में पाए जाने वाले डेरिस काजीलाल्लई, बहराइच जिले में पाए जाने वाले इंडिगोफेरा थोथाथ्री व गोंडा जिले कभी बहुतायत में पाए जाने वाले डायोस्पाइरोशोलिया होलियाना को भी राज्य जैवविविधता बोर्ड फिर से लहलहाते देखना चाहता है। मकसद यह है कि अवध की पहचान माने जाने वाले इन पेड़-पौधों को विलुप्त होने से बचाया जा सके। इन्हें भी संरक्षण की दरकार
बख्शी का तालाब के मोहिबुल्लापुर में होने वाले खरबूजे की मिठास आज लुप्त हो चुकी है। इलाहाबाद का लाल अमरूद खत्म होने को है। इनके जर्मप्लाज्म बचाने के लिए कोई कोशिश नहीं की जा रही है। डॉ.उदय माथुर कहते हैं कि जरूरत इस बात की है कि टिश्यू कल्चर तकनीक का इस्तेमाल कर जिस तरह से केले का संवर्धन किया गया है उसी तर्ज पर इलाहाबादी अमरूद, आम, बेल को भी बढ़ावा दिया जाए। यदि कोशिशें नहीं हुईं तो आने वाले समय में यह भी पूरी तरह से लुप्त हो जाएंगे। इसी प्रकार औषधीय व सगंध पौधों की प्रदेश में तमाम किस्में उगती हैं।