Air Force Day: लखनऊ के दो भाइयों ने PAK के आधुनिक विमानों को चटाई थी धूल
भारतीय वायुसेना की 86वीं वर्षगांठ पर दैनिक जागरण आपको, दो ऐसे जंबाजों के बारे में बता रहा है, जिन्होंने पाकिस्तान के आधुनिक विमानों को मार गिराया था।
लखनऊ[निशांत यादव]। सन् 1965 के भारत पाक युद्ध से लेकर 1999 के कारगिल युद्ध तक शहर के जांबाजों ने दुश्मनों के इरादों को अपने हौसलों से नेस्तेनाबूत किया। कीलर ब्रदर्स ने जहां अपने छोटे नेट विमानों से पाकिस्तान के आधुनिक विमानों को मार गिराया। वहीं, विंग कमांडर गिल ने पाकिस्तान पर जमकर कहर बरपाया। सोमवार को भारतीय वायुसेना अपना 86वीं वर्षगांठ मनाएगी।
आठ अक्टूबर 1932 को पांच भारतीय पायलट और चार विमानों से अस्तित्व में आयी भारतीय वायुसेना आज दुनिया की चौथी सबसे शक्तिशाली वायुसेना बन गई है। टच द स्काई विथ ग्लोरी के जयघोष पर आगे बढ़ते हुए आज भारतीय वायुसेना अमेरिका, चीन और रूस के बराबर पहुंच गई है। तकनीक के क्षेत्र में भी लखनऊ का नाम आगे आएगा। कभी मेंटनेंस डिपो के रूप में शुरू हुआ बीकेटी वायुसेना स्टेशन अब राफेल और हरक्यूलिस जैसे विमानों के लिए तैयार हो गया है। पिछले साल टीम बीकेटी ने आगरा एक्सप्रेस वे पर एशिया में सबसे बड़ी विमानों की टच लैंडिंग कराकर इतिहास भी रचा।
सेना को आगे बढ़ाया
विंग कमांडर एचएस गिल ने भारतीय वायुसेना में जनवरी 1954 में कमीशंड प्राप्त किया था। सन 1971 के भारत-पाक युद्ध में वह पश्चिमी क्षेत्र में फाइटर स्क्वाड्रन को कमांड कर रहे थे। तीन से 13 दिसंबर तक विंग कमांडर गिल ने भारतीय थल सेना को आगे बढ़ाने के लिए कई सफल ऑपरेशन किए। विंग कमांडर गिल ने 11 और 12 दिसंबर को दो पाकिस्तानी लड़ाकू विमान एफ-104 को मार गिराया। पाक में सिग्नल यूनिट को उड़ाकर वहां की संचार प्रणाली को ध्वस्त किया। पाकिस्तानी एयर क्राफ्ट गन ने उनके विमान को निशाना बना दिया और वह वीर गति को प्राप्त हुए। विंग कमांडर गिल की इस वीरता के लिए उनको वीर चक्र मरणोपरांत प्रदान किया गया।
विंग कमांडर कौल ने दिखाया दम
सन् 1971 के भारत पाक युद्ध में विंग कमांडर स्वरूप कृष्ण कौल ने बमवर्षक स्क्वाड्रन के साथ सेना को भरपूर सहयोग दिया। महावीर चक्र विजेता विंग कमांडर कौल बाद में एयरमार्शल भी बने। उनका जन्म लखनऊ में हुआ जबकि बाद में परिवार कोलकाता चला गया। विंग कमांडर कौल ने कोमिल्ला, सिलहट और सैदपुर से शत्रु क्षेत्रों के फोटो लेने का काम महज 200 फीट की ऊंचाई से किया। उन्होंने तेजगांव और कुरमटोला हवाई अड्डों के ऊपर भी टोह लेने का काम दिया गया था, जिसे उन्होंने बखूबी कर दिखाया। ढाका में पाकिस्तान के चार विमानों को मार गिराया।
तीन टैंकों को उड़ाया
फ्लाइट लेफ्टिनेंट विनोद पाटनी को 1965 के भारत पाक युद्ध में वीर चक्र मिला। खेमकरण में उन्होंने पाकिस्तानी सेना पर पांच बार हमला किया। दुश्मन के तीन टैंकों को उन्होंने नष्ट किया और वीरता और साहस का परचम लहाराया।
दो भाइयों ने एक साथ लड़ा युद्ध
यह पहला मौका था जब दो भाई एक साथ किसी युद्ध में हिस्सा ले रहे थे। कीलर ब्रदर्स एंग्लो इंडियन थे और उनकी शिक्षा लामार्टीनियर कॉलेज व सेंट फ्रांसिस कॉलेज में हुई थी। इसके लिए ट्रेवर कीलर और डेंजिल कीलर को सन् 1965 के युद्ध में वीर चक्र प्रदान किया गया था। तीन सितंबर 1965 की सुबह सात बजे पाकके कई एफ-104 लड़ाकू विमान छम्ब सेक्टर में सैनिक ठिकानों के ऊपर थे। डेंजिल और ट्रेवर कीलर ने एफ 86 सैबरजेट विमान को घेर लिया। इस बीच पाक के एफ-104 विमान भी आ गए। कीलर ब्रदर्स ने सैबरजेट विमानों को पीछा करते हुए नष्ट किया। इसके 16 दिन स्क्वाड्रन लीडर डेंजिल कीलर ने चार सैबरजेट विामानों को अपनी टीम के साथ मार गिराया। दोनो कीलर भाईयों को वीरचक्र प्रदान किया गया।
तोप के बीच किया हमला
राजधानी के फ्लाइट लेफ्टिनेंट विनय कपिला ने 19 सितंबर 1965 को पाकिस्तान के चार सैबरजेट विमानों पर हमला किया। जमीन से करीब दो हजार फीट की ऊंचाई पर पाकिस्तान की तोपों के बीच उन्होंने उसके विमानों को मार गिराया।
आधुनिक हो रहा बीकेटी वायुसेना स्टेशन
लखनऊ स्थित बख्शी का तालाब वायुसेना स्टेशन की स्थापना सन 1966 में प्राइमरी केयर एंड मेंटनेंस यूनिट के रूप में हुई। पहली बार लखनऊ की धरती पर फरवरी 1966 में डेकोटा ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट मरम्मत के लिए उतरा था। इसके बाद सन 1975 में फाइटर एयरक्राफ्ट जीनैट और 1980 में लड़ाकू विमान मारूत की मरम्मत लखनऊ में हुई। सन 1983 में मिग 21 की हॉफ स्क्वाड्रन लखनऊ में तैनात हुई। वहीं 13 नवंबर 2014 को यह अपग्रेड हो गई। लखनऊ वायुसेना स्टेशन को लड़ाकू विमान वाले वायुसेना स्टेशन का दर्जा मिला।
ब्रह्म बाबा करते हैं रक्षा
नाथुला में हरभजन बाबा जहां सेना के जवानों की रक्षा करते हैं, वहीं बख्शी का तालाब वायुसेना स्टेशन की सुरक्षा ब्रह्म बाबा करते हैं। हर पर्व पर विशाल भंडारा होता है। दरअसल 300 साल पहले यहां भौली में देवराज शुक्ल का जन्म हुआ। बताया जाता है कि बचपन से ही उनसे कई चमत्कार हुए। वह 18 वर्ष की उम्र में एक पीपल के पेड़ के नीचे आकर रहने लगे। इसी स्थान पर उन्होंने 50 साल की उम्र में समाधि ले ली। इस स्थान पर ब्रहम बाबा मंदिर बनाया गया। सन 2010 में करीब चार सौ साल पुराना पीपल का पेड़ तीन हिस्सों में गिरा। जहां भी इसकी मोटी डाल टूटकर समाप्त हो गयी। वहां से नया पेड़ उग गया। यहां पर मनोकामना पूरी होने पर अब तक दो लाख से अधिक भक्त घंटी बांध चुके हैं।