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रिलेशनशिप: मैरिड लाइफ में ऐसे करें दूरिया कम-घोलें प्यार की मिठास, बस ध्यान रखें ये बातें

दैनिक जागरण के जरिए जानिए रिलेशनशिप विषय पर क्या सोचती है आज के जमाने की पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी।

By JagranEdited By: Published: Sat, 26 May 2018 03:47 PM (IST)Updated: Sat, 26 May 2018 04:39 PM (IST)
रिलेशनशिप: मैरिड लाइफ में ऐसे करें दूरिया कम-घोलें प्यार की मिठास, बस ध्यान रखें ये बातें
रिलेशनशिप: मैरिड लाइफ में ऐसे करें दूरिया कम-घोलें प्यार की मिठास, बस ध्यान रखें ये बातें

लखनऊ[कुसुम भारती]। हाल ही में कुछ बड़े शहरों में हुए एक सर्वे के मुताबिक आधुनिक जीवनशैली और घटती सहनशीलता की वजह से दापत्य में दूरिया बढ़ती जा रही हैं। ऐसे बहुत से दंपति हैं जो आधुनिक जीवनशैली और स्वाभिमान का शिकार हैं। कहीं न कहीं ये दोनों बातें परोक्ष या अपरोक्ष रूप से दापत्य जीवन को प्रभावित कर रही हैं। दापत्य में बढ़ती दूरियों को दूर कर कैसे भरी जाए इसमें प्रेम की मिठास। दैनिक जागरण आपको इस विषय पर बता रहा है, कुछ पुरानी व नई पीढ़ी की महिलाओं के साथ एक्सपर्ट्स की राय।

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पहले होती थी त्याग और समर्पण की भावना

पटना की लक्ष्मी यादव कहती हैं, मैं एक आम गृहणी हूं। मेरी शादी को चालीस साल होने वाले हैं। पति दीनानाथ यादव रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स में अधिकारी पद से रिटायर हो चुके हैं। इतने सालों में कई ऐसे मौके आए जब हमारे बीच भी छोटे-मोटे झगड़े हुए पर हमने उसे कभी ईगो इश्यू नहीं बनाया। कभी मैंने पहल की तो कभी पति ने बात शुरू कर दी। मेरे मन में हमेशा पति व उनके परिवार के प्रति समर्पण की भावना रही है। यही वजह है कि आज हम सफल दापत्य जी रहे हैं। लोगों के दापत्य जीवन में दिक्कतें पहले भी आती थीं। पर, आज जब मैं युवा जोड़ों को देखती हूं तो लगता है कि उनके भीतर कहीं न कहीं धैर्य की कमी है। यही वजह है कि उनके रिश्तों में दूरिया आ रही हैं। मेरी राय में रिश्तों को एक साधना की तरह लेना चाहिए जिसमें सहनशीलता, त्याग, विश्वास, प्रेम और नैतिकता सम्मलित हो।

युवा पीढ़ी में धैर्य की कमी

मुंबई की सुनंदा दलवी कहती हैं, मेरी शादी को तीस साल हो चुके हैं। पति कादीराम दलवी सरकारी अफसर हैं। मैं कह सकती हूं कि मेरा दापत्य जीवन बहुत ही अच्छा गुजर रहा है। पति और बच्चों के साथ बेहद खुश हूं। कहीं न कहीं हमारे सुखी दापत्य का आधार सहनशीलता है। हम भी लड़ते-झगड़ते थे पर बातचीत कभी बंद नहीं करते थे। पर आज की पीढ़ी में इसी बात की कमी है। उनमें धैर्य बिल्कुल भी नहीं है।

आज ज्यादातर युवा एकाकी परिवारों में बड़े हो रहे हैं जहा उनकी हर ख्वाहिश, हर जिद अभिभावक आसानी से पूरी कर देते हैं जिस कारण उन्हें जिंदगी से जद्दोजहद नहीं करनी पड़ती। वहीं, जब उन पर शादी के बाद जिम्मेदारिया आती हैं तो वे घबरा जाते हैं। जिंदगी की परेशानियों से वे ब्रेकअप कर लेते हैं। यहा तक कि आत्महत्या व तलाक तक की नौबत आ जाती है। कई युवा लिव इन रिलेशनशिप में रहते हैं जिसमें न समाज की मान्यता होती है न परिवार का समर्थन। दोनों के मन में रिश्तों को न निभा पाने का एक अनजाना सा डर होता है। यह डर कभी-कभी असहनशीलता को जन्म देता है। यही वजह है कि पुरानी पीढ़ी की बनिस्बत युवा पीढ़ी अपने दापत्य में असफल हो रही है। सुखी दापत्य की कुंजी है एक-दूसरे के प्रति अटूट प्रेम के साथ सामने वाले की कमियों को नजरअंदाज करना। रिश्तों में बनाएं तालमेल

चंडीगढ़ की डेजी जुनेजा कहती हैं, वैसे तो आम गृहणी हूं पर शौकिया कविता, गजल और लेख लिखती हूं। अब तक दो किताबें भी छप चुकी हैं जिसके लिए जयपुर में सम्मानित किया गया। मेरे भीतर यह शौक शायद इसी कारण उपजा है क्योंकि अब तक जो बातें और भावनाएं मैं व्यक्त नहीं कर सकी उसे अब लेखन के जरिए कर रही हूं। मेरी शादी को 24 साल हो गए हैं। बीस साल की उम्र में मेरी शादी हो गई थी। तब यही सिखाया गया कि कुछ भी हो जाए पति और ससुराल वालों के साथ मिलकर रहना और हर तरह से एडजस्ट करना और मैंने किया भी। पर, नई पीढ़ी की लड़किया एडजस्ट करना नहीं चाहती। वैवाहिक जीवन में उतार-चढ़ाव तो आते हैं। पहले महिलाएं सब आसानी से सह लेती थीं क्योंकि वे सोचती थीं कि हमें तो केवल घर और बच्चे ही संभालना है। पति की डाट और मार खाकर भी उनके साथ रात गुजारती थीं। पर आज लड़किया कहती हैं कि मैं केवल उपभोग की वस्तु नहीं हूं। हमारी भी भावनाएं हैं इसीलिए आज की पीढ़ी एडजस्ट नहीं करती। मेरे विचार से रिश्तों को मजबूत करने के लिए थोड़ा-बहुत समायोजन करना चाहिए पर हद से ज्यादा से नहीं। पति-पत्‍‌नी पूछें एक-दूसरे का हाल

मुंबई के दहिसर इलाके में रहने वाली कैलीग्राफी आर्टिस्ट ज्योति भाऊराव घूघे कहती हैं, मेरी शादी को 18 साल हो गए हैं। पति मैकेनिकल इंजीनियर हैं। उस वक्त 18 साल की थी जब इंटर करते ही मेरी शादी हो गई। ससुराल और रिश्ते-नातों की कोई जानकारी नहीं थी। सास-ससुर, दो ननद, जेठ-जेठानी के बीच सबसे छोटी बहू हूं। शादी के एक साल बाद बेटी पैदा हुई। शुरुआती दौर में ही ससुराल वालों के ताने, झिड़किया शुरू हो गईं। चूंकि, ज्वाइंट फैमिली थी इसलिए अक्सर पारिवारिक झगड़ों में कभी-कभी पति भी उनका साथ दे देते थे क्योंकि वह झगड़ों को बढ़ाना नहीं चाहते थे। जिससे मुझे दुख भी होता था। हालाकि, पति प्यार और सपोर्ट भी करते थे। मैं सब सहती रही। मेरी मा भी हमेशा यही कहती थीं कि बेटा सह लो, एक दिन तुम्हें भी सुख मिलेगा। मगर जब असहनीय हो गया तो मैंने पति से कहा कि मुझे अब साथ नहीं रहना है। फिर पति मुझे लेकर देहरादून आ गए। वहा हमने एयर कंडीशनर ठीक करने की एक फैक्ट्री डाली। एक बड़ा प्रोजेक्ट मिला फिर हम वापस मुंबई आकर सेटेल हो गए। मैंने सबकुछ सहा और आज मैं पति और दो बच्चों के साथ खुशहाल जिंदगी जी रही हूं। एक-दूसरे के लिए निकालें समय

दिल्ली की शाहिना बेगम कहती हैं, मेरी शादी को 17 साल हो गए हैं। पति एक म्यूजिक चैनल में रीजनल मैनेजर हैं। काम की व्यस्तता के चलते वह परिवार को समय कम दे पाते हैं। मगर इसका असर हमारे दापत्य पर बिल्कुल भी नहीं पड़ता क्योंकि मैं उनकी व्यस्तता को समझती हूं। छुट्टी मिलते ही वह अपना पूरा समय परिवार को देते हैं और हमारे साथ एंज्वाय करते हैं। हमारी अरेंज मैरिज है पर देखने वालों को लगता है कि हमने लव मैरिज की है। वजह यही है कि हमारे बीच बेहद प्यार है और हम एक-दूसरे को समय देते हैं। हमारे दो बच्चे हैं। बेटा इंटर कर चुका है और बेटी ग्यारहवीं में है। बच्चों की पढ़ाई या उन्हें बाहर जाने की छूट को लेकर ही कभी-कभी पति नाराज होते हैं। बच्चों की परवरिश कैसे करना है, उन्हें कितनी आजादी देनी है यह बात तो एक मा ही अच्छी तरह समझती है। जब मैं उन्हें यह बातें समझा देती हूं तो वह भी समझ जाते हैं।

पति का साथ पाने के लिए ज्वाइन की डास क्लास

मुंबई में एक निजी कंपनी में सीनियर अकाउंट मैनेजर, रोशनी रोहिरा रामचंदानी कहती हैं, शहर में रहने वाले कपल्स के लिए वर्क-लाइफ बैलेंस सिर्फ एक किताबी शब्द रह गया है। हम एक ऐसी रेस दौड़ रहे हैं जिसका कोई अंत नहीं है। हम साथ रहते तो हैं पर फोन और गैजेट्स के, एक-दूसरे के साथ नहीं। जिंदगी की विशेषता तो कहीं छूट सी गई है। पहले पूरा परिवार साथ बैठकर खाना खाता था। आज यह केवल वीकेंड्स पर होता है। वह भी हर वीकेंड पर संभव नहीं होता। आधा समय तो घर से ऑफिस और ऑफिस से घर पहुंचने में निकल जाता है। मेरी शादी को एक वर्ष हुआ है। शादी के छह महीने बाद मुझे यह एहसास हुआ कि हम दोनों एक साथ वह क्वालिटी टाइम नहीं बिता पा रहे हैं जो शादी के पहले करते थे। हम दोनों ने तय किया कि कुछ ऐसा करें जब हम थोड़ा समय अपने लिए निकालें। हमने एक साथ डास क्लास ज्वाइन कर ली। अब हम वहा एक साथ आते-जाते हैं और एक दूसरे की कंपनी एंज्वाय करते हैं। साथ ही कभी-कभी मेरे पति मेरा किचन में भी हाथ बंटाते हैं। बातों-बातों में हमारा काम भी पूरा हो जाता है और हमें साथ रहने का मौका भी मिल जाता है। हम अपनी जिम्मेदारियों से मुकर तो नहीं सकते पर इन छोटे-छोटे पलों में जिंदगी खोजकर अपने वैवाहिक जीवन को खुशहाल जरूर बना सकते हैं। एक-दूसरे के प्रति हो सम्मान

आकाशवाणी लखनऊ में आरजे, पूजा विमल कहती हैं, आज के दौर में बहुत से परिवार में पति पत्‍‌नी दोनों ही नौकरीपेशा हैं। सुबह दोनों को जल्दी होती है और शाम में दोनों थके होते हैं। पारिवारिक जिम्मेदारिया निभाने में सामंजस्य की कमी रिश्तों में चिड़चिड़ापन भरने लगती हैं। वहीं, यदि नौकरी की वजह से दोनों अलग-अलग शहरों में हैं तो आपसी प्रेम भी पूरी तरह पनप नहीं पाता। ऐसे में, कई बार जो आसपास के मित्र होते हैं उनसे आकर्षण हो जाता है और जीवनसाथी के प्रेम का धागा कमजोर पडऩे लगता है। शादी के बाद कई बार नवदंपति नई जिम्मेदारिया उठाना नहीं चाहते। वे पहले की तरह हर बात के लिए अपने पेरेंट्स पर निर्भर रहते हैं और उनमें सहारा ढूंढते हैं। एक दूसरे के माता-पिता को अपनाने में भी हिचकिचाते हैं। मेरी राय में रिश्तों में सम्मान की बराबरी तो होनी चाहिए लेकिन अगर आप एक-एक बात की बराबरी करने लगे तो वहा अहम् का टकराव दूरिया बढ़ा देता है। वर्चुअल व‌र्ल्ड से बाहर निकलें

देहरादून में उत्तराचल यूनिवर्सिटी में लॉ स्टूडेंट मिनी वर्मा कहती हैं, यह सही है कि आज दापत्य जीवन में लोगों के बीच दूरिया बढ़ रही हैं। मेरे विचार से इसका सबसे बड़ा कारण बदलती लाइफ स्टाइल ही है। लोगों के पास एक-दूसरे के लिए समय नहीं है। एक ही कमरे में बैठकर अपने-अपने मोबाइल पर चैटिंग तो करते हैं पर आपस में बातचीत करने के लिए समय नहीं है। लोग वर्चुअल व‌र्ल्ड में खोए रहते हैं। यही वजह है कि कम्यूनिकेशन गैप बढ़ता जा रहा है। कई बार छोटी सी बात भी रिश्तों में टकराव पैदा कर देती है। रिश्तों को निभाने के लिए वर्चुअल व‌र्ल्ड से बाहर निकलना होगा। काम के साथ एक-दूसरे को समय देना भी जरूरी है। यदि आपसी समझदारी, प्यार और धैर्य से रिश्तों को निभाया जाए तो सुखी और सफल दापत्य का आनंद ताउम्र उठाया जा सकता है।

एक्सपर्ट्स व्यूज : प्रेम, समर्पण और त्याग की भावना को समझें

समाजशास्त्री डॉ. अंशु केडिया कहती हैं, भारतीय परिवारों के विषय में मशहूर दार्शनिक मैक्समूलर ने अपनी पुस्तक में लिखा है, च्स्नेह, सहयोग, आत्मीयता, समर्पण एवं त्याग का उदान्त भाव जो यहा दिखाई पड़ता है वह विश्व में कहीं भी अन्यत्र दुर्लभ है।' भौतिक आकर्षणों द्वारा बंधे पश्चिमी परिवारों को भारतीय परिवारों में बहती हुई पावन सरिता में डुबकी लगाना चाहिए और परिवार निर्माण के लिए प्रेरणा प्राप्त करनी चाहिए। परंतु आज स्थिति बदल गई है क्योंकि वर्तमान समय में उपभोक्तावादी व व्यक्तिवादी संस्कृति हावी होती जा रही है। जब भारतीय संस्कृति की प्रशसा विदेशी करते हैं तो हम खुद क्यों इससे दूर होते जा रहे हैं। आज इस बात को समझने की बहुत आवश्यकता है। पति-पत्‍‌नी दोनों को एक-दूसरे के प्रति प्रेम, त्याग और समर्पण की भावना रखनी चाहिए तभी जिंदगी की गाड़ी सही चलेगी।

मिलकर उठाएं परिवार की जिम्मेदारी

परिवार की अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए स्त्री और पुरुष दोनों को आर्थिक रूप से समृद्ध होने के लिए प्रयास करने पड़ते हैं जिसके चलते घर में आर्थिक समृद्धि तो आ जाती है परंतु इसकी कीमत भी अक्सर परिवार को चुकानी पड़ती है। पारिवारिक जरूरतों की खींचतान पति-पत्‍‌नी के रिश्तों में दिखाई देने लगी है। आर्थिक उपार्जन पत्‍‌नी में स्वाभिमान जागृत करता है। इसलिए पहले जो पत्‍‌नी पति की सभी बातों को आदर्श पत्‍‌नी के रूप में स्वीकार करती थी अब उन पर सवाल भी करने लगी है। अर्थात दोनों के बीच ईगो की टकराहट शुरू हो गई है। जब दोनों व्यस्त होते हैं, नौकरी करते हैं तो पत्‍‌नी घर की जिम्मेदारियों में मदद के लिए पति से अपेक्षा करने लगती है। लेकिन आज भी हमारा पितृसत्तात्मक ढाचा इसके लिए तैयार नहीं है। ऐसे में टकराव होना लाजिमी है। इसलिए पुरुष वर्ग इस बात को समझे कि महिलाएं भी घर-बाहर के काम में थक जाती हैं। गृहस्थी की जिम्मेदारी अकेले स्त्री का काम नहीं है इसलिए उनके काम में हाथ बंटाने से उनका पुरुषत्व घटेगा नहीं बल्कि पत्‍‌नी की नजर में और बढ़ेगा।

आपस में न आने दें दूरिया

हम भौतिक संस्कृति में तो आगे बढ़ गए हैं अर्थात हम मानने लगे हैं कि महिलाओं की आय हमारे लिए जरूरी है परंतु सामाजिक सास्कृतिक ढाचा अभी भी पुरुषों की सत्ता की बात करता है। यानी हम अभौतिक संस्कृति में पीछे हैं। भौतिक और अभौतिक संस्कृति के बीच की यह विलम्बना (गैप) भी रिश्तों में टकराहट की मजबूत वजह बनती है। नतीजतन रिश्तों में दूरिया बढऩे लगती हैं। अत: आपसी रिश्तों में दूरिया न बढऩे दें। रिश्तों से नहीं बल्कि कुछ समय के लिए इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स और वर्चुअल व‌र्ल्ड से दूरी जरूर बनाएं।

इन बातों का रखें ख्याल

- व्यस्त शेड्यूल में भी पति-पत्‍‌नी को एक-दूसरे के लिए अधिक से अधिक समय निकालना चाहिए।

- घर के कामकाज में पति का भी पूरा सहयोग होना चाहिए।

- घर में ऑफिस का काम व तनाव न लेकर जाएं बल्कि इससे पूरी तरह बचने का प्रयास करना चाहिए।

- दोनों को एक-दूसरे पर भरपूर विश्वास करना चाहिए। रिश्तों में सहनशीलता बेहद जरूरी है।

- आवश्यकता से अधिक भौतिक जरूरतों से यथासंभव बचने का प्रयास करना चाहिए।

- पत्‍‌नी-पत्‍‌नी दोनों को एक-दूसरे के परिवार के सदस्यों को पूरा मान-सम्मान देना चाहिए।

निजी रिश्तों को भी दें तवज्जो

रिलेशनशिप काउंसलर व क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट जूही पराशर कहती हैं, आज के दौर में शादी करना और निभाना दोनों मुश्किल होता जा रहा है। बिजी लाइफ स्टाइल ने लोगों को इम्पेशेंट और मैकेनिकल बना दिया है जिससे भावनाएं होते हुए भी वे उसे जाहिर नहीं करते। सोशल लाइफ पर ज्यादा और पर्सनल लाइफ पर कम ध्यान देते हैं। दापत्य जिंदगी को स्मूद और बेहतर बनाने के लिए कुछ बातों को अपनी जीवन में उतारना जरूरी है.. - एक-दूसरे के लिए समय निकालें, पास बैठें और दिनभर का हालचाल जरूर लें। इससे दोनों का रिश्ता मजबूत होगा और मन को सुकून मिलेगा।

- एक-दूसरे को समझने की कोशिश करें, प्यार से बात करें। पहले सामने वाले की पूरी बात सुनें फिर पुष्टि करें। इससे दोनों का भरोसा बढ़ेगा क्योंकि दोनों को पता होता है कि कोई है जो हमारी बात सुनेगा। इससे रिश्ते मधुर बनेंगे।

- समय निकालें और साथ में बाहर कहीं घूमने जाएं। कैंडल लाइट डिनर करें, रोमाटिक वॉक या लॉन्ग ड्राइव पर जाएं। एक-दूसरे को गिफ्ट दें, सरप्राइज दें, आपस में फ्लर्ट करें इससे इंटीमेसी बढ़ती है और रिश्तों में ताजगी बनी रहती है।

- समय-समय पर पर्सनल इश्यू, रिलेशनशिप पर चर्चा करें। घर के कामों में एक-दूसरे का हाथ बंटाएं, आपस में सहयोग करें। एक-दूसरे को मोटिवेट भी करें।

- सबसे जरूरी है अपने स्मार्ट फोन से कुछ समय के लिए दूरी बनाएं। जब भी साथ हों तो आखों में आखों डालकर बात करें। इससे प्यार और विश्वास गहरा होगा। फोन से ज्यादा जरूरी और महत्वपूर्ण है दापत्य इसलिए इसे संभालें।

- एक-दूसरे को थैंक्यू और सॉरी भी कहना सीखें। ये बहुत छोटे शब्द हैं लेकिन बहुत असर दिखाते हैं। छोटा सा सॉरी जहा सिचुएशन को संभाल लेता है और बढ़ते गुस्से को भी शात कर देता। वहीं, थैंक्यू सामने वाले की अहमियत जताता है।

- दापत्य जीवन में यह भी महत्वपूर्ण है कि आपस में कभी ईगो नहीं लाना चाहिए। यदि किसी बात पर बातचीत बंद हो जाए तो पहले आप वाली स्थिति न आने दें। गलती किसी की भी हो बात करने की पहल दोनों में से कोई भी एक कर सकता है। ऐसा करने से आपसी प्यार और भावनाएं मजबूत होती हैं।


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