विजय दिवस : यहां तो हर घर में जीवंत है जांबाजों की शौर्य गाथा
शहीद कॉलोनी में रहने वाले जांबाजों ने लड़ा था सन 1971 का भारत-पाक युद्ध। पूरे होंगे युद्ध के 47 साल।
लखनऊ, (निशांत यादव)। दुनिया में किसी युद्ध के दौरान दुश्मन सेना का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण सन् 1971 में भारत-पाक के बीच लड़ी गई लड़ाई में हुआ था। जब पाकिस्तान के 90 हजार सैनिकों को भारतीय सेना के जांबाजों के शौर्य के सामने घुटने टेकने पड़े थे। इस युद्ध में लखनऊ के जांबाजों ने भी अहम भूमिका निभाई थी। वे बारूदी सुरंगों को भी पार कर गए, उफनाती नदियां भी उनका रास्ता नहीं रोक सकीं।
इस युद्ध में शहर के सात जांबाज शहीद हो गए। जबकि 23 जांबाज बारूदी सुरंग फटने और गोलीबारी में घायल हुए। शहीदों और घायल जांबाजों को समर्पित शहीद कॉलोनी सन 1972 में बसाई गई थी। जिसमें शहीदों और घायल जवानों का परिवार आज भी रहता है। यहां हर घर में आज भी उस युद्ध की शौर्य गाथा जीवंत हो उठती है। रविवार को इस युद्ध के 47 साल पूरे हो जाएंगे।
बारूदी सुरंग की नहीं की परवाह
ब्रिगेड ऑफ गाड्र्स रेजीमेंट की आठवीं बटालियन में सिपाही अजय पाल शर्मा उस टुकड़ी में शामिल थे जो 23 नवंबर 1971 को हिल्ली सेक्टर की नावापाड़ा चौकी पर कब्जा करने के लिए आगे बढ़ रही थी। पाकिस्तानी सेना ने भारत को रोकने के लिए बारूदी सुरंग बिछा दी। दुश्मन पर फतह करने के लिए अजय पाल शर्मा की टुकड़ी सुरंग पर भी आगे बढ़ती रही। सुरंग में विस्फोट के बाद उनका दाहिने पैर का घुटने तक का हिस्सा उड़ गया था।
पान सिंह तोमर ने मनवाया लोहा
ढाका के पिनहार में पाकिस्तानी सेना ने बड़े इलाके पर कब्जा कर रखा था। विषम हालात में सूबेदार मेजर पान सिंह तोमर की टुकड़ी को दुश्मनों को खदेडऩे का लक्ष्य दिया गया। पान सिंह तोमर ने अपनी टुकड़ी के साथ दुश्मनों के कई बंकर को तबाह किया। चारों तरफ से हो रही गोलीबारी के बीच पान सिंह तोमर दुश्मनों को खदेडऩे में कामयाब रहे।
नायक बने राजा सिंह
भारतीय सेना की 21 राजपूत इंफेंट्री की एक प्लाटून की कमान नायक राजा सिंह संभाल रहे थे। वह 26 नवंबर 1971 को पूर्वी पाकिस्तान के फकी राहत पुल को पाकिस्तानी सेना के कब्जे से हटाते हुए आगे बढ़ रहे थे। इस बीच सिर में एक गोली लगने से वह शहीद हो गए। शहीद होने से पहले सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण इलाके में उन्होंने कब्जा जमाया। उनकी वीरता के लिए नायक राजा सिंह को परमवीर चक्र मरणोपरांत देने की संस्तुति उनके कमांडिंग अधिकारी ले. कर्नल एएस अहलावत ने 17 दिसंबर 1971 को की थी। हालांकि उनको वीर चक्र प्रदान किया गया।
ढाका में टूट पड़े अजवीर सिंह यादव
इस युद्ध में ढाका के आसपास भारतीय सेना को कई बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। ढाका के करीब सिपाही अजवीर सिंह यादव अपनी जिस यूनिट के साथ आगे बढ़ रहे थे, वहां घरों में आम नागरिकों के बीच पाकिस्तानी सेना के जवान भी छिपे हुए थे। वह रुक रुककर हमला कर रहे थे। ऐसे में बहुत सावधानी के साथ दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब दिया गया। अजवीर सिंह यादव के नेतृत्व में पाकिस्तानी सेना के कब्जे से एक बंकर खाली कराया था।
नदी पार कर भगाया दुश्मन को
सिपाही गंभीर सिंह खनका कुमाऊं रेजीमेंट की एक टुकड़ी के साथ थे। वह सात रेजीमेंट की टुकड़ी को कवर फायर देते हुए आगे बढ़ रहे थे। कुंबला सेक्टर में सात दिसंबर की रात रास्ता न होने पर उफनाती नदी को पार किया। वहां संजना मार्केट में पाकिस्तानी सेना से आमने-सामने की लड़ाई हुई। जिसमें बारूदी सुरंग पार करते हुए जीएस खनका घायल हो गए।
इन शहीदों ने दी सन 1971 युद्ध में शहादत
- शहीद गार्डमैन मोहम्मदीन
- शहीद नायक मोहन सिंह (सेना मेडल)
- शहीद सीएफएन पीएन मिश्र
- शहीद हवलदार गोपाल दत्त जोशी
- शहीद पेटी ऑफिसर अमृत लाल
- शहीद विंग कमांडर एचएस गिल (वीर चक्र)
- शहीद पैराटूपर आनंद सिंह विष्ट (सेना मेडल)
यह हुए थे युद्ध में दिव्यांग
सिपाही कुंडल सिंह, सिपाही आन सिंह, सूबेदार पान सिंह तोमर, सिपाही अजवीर सिंह यादव, सिपाही चंदर सिंह
नायक मदन सिंह रावत, सिपाही अजयपाल शर्मा, एसडब्ल्यूआर शेख गुलाम मुस्तफा, सिपाही तुलसीराम, सिपाही जीएस खनका, लांसनायक एसडी बहुगुणा, सिपाही डीसी भट्ट, नायक शेर सिंह, पैराट्रूपर जगन्नाथ सिंह, कैप्टन अरुण कुमार उप्रेती, नायक यादराम, सिपाही हरसुख सिंह, सिपाही दिलीप सिंह, सिपाही अबुल हसन खां, सिपाही सज्जन शरण सिंह, सिपाही रमाशंकर, हवलदार फखरे आलम खां, हवलदार कुंवर सिंह चौधरी।