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तब नहीं हारे तो अब क्यों हार गए राजेश साहनी..

मौत की सूचना मिलते ही परिवारीजन व अधिकारी घटना स्थल पर पहुंचे।

By JagranEdited By: Published: Wed, 30 May 2018 11:29 AM (IST)Updated: Wed, 30 May 2018 11:46 AM (IST)
तब नहीं हारे तो अब क्यों हार गए राजेश साहनी..
तब नहीं हारे तो अब क्यों हार गए राजेश साहनी..

लखनऊ[राजीव बाजपेयी]। मलाईदार पोस्टिंग और कुर्सी की कशमकश से दूर रहे एटीएस के एएसपी राजेश साहनी अब नहीं रहे। पुलिस महकमे में साहनी ऐसे चंद अफसरों में शुमार थे, जो किसी तरह के विवाद और चर्चाओं से दूर थे। तमाम व्यस्तताओं के बीच उनका चेहरा हमेशा मुस्कराता रहता था। महकमे के साथी हों या फिर मीडियाकर्मी सब उनके कायल थे।

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एटीएस और डीजीपी मुख्यालय से पहले साहनी लखनऊ में लंबे समय तक तैनात रहे। एसएसपी कैंप कार्यालय पर शाम को ब्रीफिंग का जिम्मा उनके पास ही था। हर घटना का साफगोई से जवाब साहनी के पास रहता था। 'न' शब्द तो शायद उनकी डिक्शनरी में था ही नहीं। यही वजह है कि कई बार उनके शीर्ष अधिकारी भी नाराज हो जाते थे। कहते थे आप सब कुछ मत बताया करो, लेकिन साहनी जी कहा मानने वाले। कई ऐसे मौके आए जब साहनी ने आगे बढ़कर लीड किया और वर्दी का इकबाल बुलंद किया। एक बार कैसरबाग में अमेरिका के विरोध प्रदर्शन के दौरान लाखों की भीड़ बेकाबू हो गई। हजरतगंज से लेकर कैसरबाग और मौलवीगंज तक दो समुदाय आमने-सामने आ गए। हर तरफ आगजनी और दिल दहलाने वाला मंजर था। कैसरबाग चौराहे से लेकर लाटूश रोड तक जबरदस्त फायरिंग और पथराव हो रहा था। बीच रास्ते जहा पर शस्त्र की दुकानें हैं, वहा कुछ महिलाएं और बच्चे फंसे थे। तत्कालीन एसएसपी आशुतोष पाडेय सहित तमाम आलाधिकारी सड़कों पर उपद्रवी तत्वों को रोकने की कोशिश में जुटे थे। कैसरबाग चौराहे पर ही राजेश साहनी और आसपास के कुछ थानों की पुलिस थी। उच्चाधिकारी और फोर्स आने का इंतजार करते रहे मगर साहनी चंद पुलिसवालों को लेकर परिवारों को बलवाइयों से बचाने के लिए आगे बढ़ गए। यह एक वाकया नहीं था। 30 मई 2006 का दिन आज साहनी की बुरी खबर के साथ बरबस याद आ गया, जिसने पूरे शासन-सत्ता को हिलाकर रख दिया था। शाम के करीब साढ़े चार बजे थे और मैं भी एसएसपी ब्रीफिंग के लिए कमाड कार्यालय के सामने चाय की चुस्किया ले रहा था। इसी दौरान सहारागंज की ओर से एक काले रंग की जीप जिस पर सत्ताधारी पार्टी का झडा लगा था फर्राटा भरती हुई दिखी। जीप के बोनट यानी आगे के निचले हिस्से में राजेश साहनी लटके हुए जीप को रोकने के लिए चिल्ला रहे थे। हम लोग भी जीप की तरफ भागे, लेकिन तक तक वह एसएसपी शिविर कार्यालय के अंदर दाखिल हो चुकी थी।

दरअसल, सत्ताधारी पार्टी से जुड़े पाच दबंग नेताओं ने डालीगंज चौराहे पर चेकिंग के दौरान पुलिसकर्मियों को कुचलकर भागने का प्रयास, लेकिन साहनी कूदकर बोनट पर चढ़ गए और उसे रोकने लगे। जीप की रफ्तार बढ़ी तो साहनी नीचे की ओर गिरने लगे बोनट के आगे का हिस्सा पकड़ लिया। दबंग अपनी जीप कई किलोमीटर घुमाने के बाद सप्रू मार्ग स्थित एसएसपी कार्यालय के अंदर घुस गए। पुलिस ने इस मामले में तेजी दिखाई और सत्ताधारी पार्टी का करीब बताने वाले पाचों आरोपियों पृथ्वी राज, नरायन राज, उदय प्रताप, हर्ष, राज्यवर्धन को रिकार्ड समय में दस-दस साल की सजा दिलाने में कामयाबी हासिल की। सत्ताधारी पार्टी के रसूख की परवाह किए बिना कानून की हिफाजत साहनी जैसा ही अफसर ही कर सकता था। किस्से बहुत हैं मगर वक्त और स्पेस इसकी इजाजत नहीं देता। आज सब यही सोच रहे हैं कि जिस राजेश ने कभी हार नहीं मानी फिर वह जिंदगी की जंग क्यों हार गये? ।

गौरतलब हो कि 29 मई यानी मंगलवार को उत्तर प्रदेश एटीएस के तेज तर्रार अधिकारी राजेश साहनी ने आत्महत्या कर ली। पीपीएस अधिकारी राजेश साहनी ने गोमतीनगर में एटीएस मुख्यालय में अपनी सरकारी पिस्टल से कनपटी पर गोली मार ली। एटीएस के आईजी अमिताभ यश ने साहनी के गोली मारने की पुष्टि की। साइकिल से सिलिंडर लेने जाते थे साहनी

एटीएस के एएसपी राजेश साहनी सहयोगियों व अधीनस्थों के बीच अपनी सहजता को लेकर अलग छवि व स्थान रखते थे। राजेश साहनी के खुदकशी करने की सूचना पाकर पुलिस की विभिन्न शाखाओं में तैनात पुलिसकर्मी एटीएस मुख्यालय पहुंचे। पुलिसकर्मियों के बीच राजेश साहनी के व्यक्तित्व की चर्चाएं हो रही थीं, तभी एक निरीक्षक बड़ी सहजता से बोल पड़े। ऐसे अफसर जल्दी देखने को नहीं मिलते। इंस्पेक्टर ने साझा कि कि करीब सात साल पहले राजेश साहनी लखनऊ में सीओ थे और तब वह एक चौकी प्रभारी। वह भी पुलिस लाइन में ही रहते थे। एक दिन ड्यूटी के लिए घर से निकला तो चंद कदम दूरी पर ट्राजिट हास्टल में रहने वाले एएसपी राजेश साहनी को साइकिल से सिलिंडर लेकर जाते देखा। इंस्पेक्टर ने बताया कि यह देख मैं अपनी बाइक किनारे खड़ी कर भागकर उनके पास पहुंचा और साइकिल उसे देने का आग्रह किया। कहा कि वह सिलिंडर ला देगा। इस पर राजेश साहनी ने तुरंत इन्कार कर दिया। कहा कि चूल्हा मेरे घर में जलना है तो तुम इसे भरवाने क्यूं ले जाओगे। अपनी ड्यूटी पर जाओ।

एनआइए में भी रहे थे साहनी

एटीएस में आने से पूर्व राजेश साहनी वर्ष 2013 में एनआइए में भी काम कर चुके थे। एटीएस में आने के बाद आतंकी सैफुल्ल से मुठभेड़ के अलावा वर्ष 2017 में अंसारूल बंगला टीम के संदिग्ध आतंकियों को पकड़ने, बब्बर खालसा के आतंकी जसवंत सिंह व आइएसआइ एजेंट आफताब अली को पकड़ने में उनकी अहम भूमिका थी।

निभाते थे एसोसिएशन की जिम्मेदारी

एएसपी राजेश साहनी प्रातीय पुलिस सेवा संघ में भी सक्त्रिय सदस्य होने के साथ एसोसिएशन की भी जिम्मेदारी निभाते थे। पीपीएस एसोसिएशन के अध्यक्ष एएसपी अजय मिश्र के मुताबिक राजेश साहनी आफिस के काम करने के साथ ही एसोसिएशन के कार्यक्रमों और कार्यो में भी बढ़चढ़ के हिस्सा लेते थे। एसोसिएशन के उपाध्यक्ष एएसपी सीबीसीआइडी अवनीश मिश्र के मुताबिक, राजेश साहनी एसोसिएशन के कार्यक्त्रमों में मंच का संचालन करते थे। घटना से एएसपी क्राइम डीके सिंह एवं एएसपी दिनेश कुमार यादव व अन्य पदाधिकारियों में शोक की लहर है।


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