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सपा मुखिया अखिलेश यादव की अब बाहर आई बसपा से गठबंधन की टीस, बोले- हार गए मेरे घर के भी सदस्य

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की बसपा से सियासी जंग तो लोकसभा चुनाव के बाद से ही तेज हो गई लेकिन अब उन्होंने इस नाराजगी का असल कारण भी जाहिर किया है। उन्होंने कहा कि मायावती की पार्टी से गठबंधन करने पर घर के सदस्य भी लोकसभा चुनाव हार गए।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Sun, 18 Jul 2021 06:36 PM (IST)Updated: Sun, 18 Jul 2021 06:36 PM (IST)
सपा मुखिया अखिलेश यादव की अब बाहर आई बसपा से गठबंधन की टीस, बोले- हार गए मेरे घर के भी सदस्य
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने हाल ही में दिए एक साक्षात्कार में अपने अनुभव और रणनीति को खुलकर साझा किया।

लखनऊ, जेएनएन। उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव के लिए छोटे दलों को साथ लेने के लिए समाजवादी पार्टी के मुखिया यूं ही बेताब नहीं हैं। दरअसल, कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी जैसे बड़े दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ चुके अखिलेश यादव ने सबक लिया है कि बड़े दल सीटें ज्यादा मांगते हैं, लेकिन स्ट्राइक रेट कम होता है। वहीं, बसपा से अलगाव तो 2019 के लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद ही हो गया था, लेकिन असल टीस अब बाहर आई है। कहा है कि सपा से गठबंधन कर बसपा तो शून्य से दस पर पहुंच गई, जबकि उनके (अखिलेश) घर के सदस्य भी चुनाव हार गए।

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समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने हाल ही में एक मीडिया हाउस को दिए साक्षात्कार में अपने अनुभव और रणनीति को खुलकर साझा किया। बसपा से उनकी सियासी जंग तो लोकसभा चुनाव के बाद से ही तेज हो गई, लेकिन अब उन्होंने इस नाराजगी का असल कारण भी जाहिर किया है। बसपा प्रमुख मायावती की उनसे नाराजगी के सवाल पर कहा कि नाराज तो हमें होना चाहिए। मायावती की पार्टी से गठबंधन करने पर घर के सदस्य भी लोकसभा चुनाव हार गए, जबकि बसपा शून्य से दस पर पहुंच गई।

हालांकि, उन्होंने जोड़ा कि अब पुरानी बातों पर जाना ठीक नहीं है। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ हुए गठबंधन को लेकर भी अखिलेश का आकलन है। बोले कि कांग्रेस प्रदेश में अपना दम लगा रही है, लेकिन उनका वोट कौन सा है? जो कांग्रेस का सिद्धांत है, वही कई मामलों में भाजपा का है। कांग्रेस नेतृत्व को प्रदेश में अभी और काम करना चाहिए। उनके पास यूपी में कोई वोट बैंक नहीं बचा है।

छोटे दलों से गठबंधन की बात सपा मुखिया ने इस तर्क के साथ दोहराई कि बड़े दल सीटें ज्यादा मांगते हैं, जबकि उनका स्ट्राइक रेट कम होता है। यही सोचकर छोटे दलों को साथ लेकर चुनाव लडऩे का मन बनाया है। स्पष्ट किया कि आम आदमी पार्टी चाहे तो उसे साथ ले सकते हैं। हालांकि, सीटों को लेकर बात में चर्चा कर ली जाएगी। चाचा शिवपाल यादव की पार्टी से गठबंधन की बात भी दोहराई।

उत्तर प्रदेश में आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआइएमआइएम) के अध्यक्ष सांसद असदउद्दीन ओवैसी के सवाल पर अखिलेश ने कहा कि ओवैसी के आने से मुसलमानों के वोट पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। ऐसे दल पहले भी आते रहे हैं, लेकिन अल्पसंख्यक का सपा पर भरोसा है। सपा ने उनके लिए काम किया है। जिस तरह बंगाल में ओवैसी का असर नहीं रहा, वैसा ही यूपी में भी होगा। भाजपा और सपा की सीधी लड़ाई है।

सरकार ने की जल्दबाजी, इसलिए कहा भाजपा की वैक्सीन : सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भाजपा की वैक्सीन वाले पुराने बयान पर भी अपना तर्क रखा। बोले कि सरकार ने जल्दबाजी ने फैसला किया था। उस समय डाक्टरों को भी उस पर भरोसा नहीं था, इसलिए भाजपा की वैक्सीन कहा। उन्होंने अपनी बात दोहराई कि पहले सरकार गरीबों और मजदूरों को वैक्सीन लगाए और वह खुद आखिरी व्यक्ति होंगे, जिसे वैक्सीन लगेगी।

घोषणा पत्र की नकल कर लेगी भाजपा : पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक सवाल के जवाब में कहा कि समाजवादी सरकार के दिए 20 लाख लैपटाप लाकडाउन के समय छात्रों के काम आए हैं। इस बार चुनाव में क्या नई घोषणा होगी, ये अभी नहीं बताएंगे, वरना भाजपा उसकी नक़ल कर लेगी। भाजपा का प्रचार तंत्र काफी तेज है और वह उसे अपने नाम से अपना लेगी।


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