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अनवर जलालपुरीः एक खनकती हुई आवाज का यूं खामोश हो जाना...

किसी टीवी चैनल पर उर्दू साहित्य का विमर्श, मुशायरे में कलाम पढऩा या मुशायरा मंच का संचालन करना इन सभी स्थानों पर आम तौर पर एक खनकती आवाज लोगों को बांध लेती थी।

By Nawal MishraEdited By: Published: Thu, 04 Jan 2018 06:54 PM (IST)Updated: Fri, 05 Jan 2018 08:31 AM (IST)
अनवर जलालपुरीः एक खनकती हुई आवाज का यूं खामोश हो जाना...

लखनऊ (विवेक भटनागर) टीवी पर उर्दू साहित्य का विमर्श हो या मुशायरे के मंचों पर कलाम पढऩे या उसका संचालन करने की बात। आम तौर पर एक खनकती हुई आवाज लोगों को बांध लेती थी। वह आवाज थी अनवर जलालपुरी की, जो असमय ही काल-कवलित हो गए। 2 जनवरी की सुबह जिसने भी यह खबर सुनी, स्तब्ध रह गया।

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एक मकबूल और महबूब शायर का जाना

लखनऊ के हुसैनगंज निवासी अनवर जलालपुरी गुरुवार 28 दिसंबर को अपने करीबी परिजन के शोक समारोह से लौटे थे। छोटे बेटे डॉ. जांनिसार जलालपुरी ने बताया कि शाम करीब 6 बजे वे घर पहुंचने के बाद वे बाथरूम में नहाने गए। करीब पौने घंटे तक वे बाहर नहीं निकले तो घरवालों ने उन्हें आवाज लगाई। आवाज न आने पर दरवाजा तोड़ा गया, तो वे अंदर वे फर्श पर पड़े हुए थे और उनके सिर से काफी खून बह चुका था। 30 दिसंबर को लखनऊ मेडिकल कॉलेज में दाखिल होने की जानकारी देते हुए उनके मित्र और शायर राहत इंदौरी ने ट्वीट कर उनके लिए दुआएं करने की गुजारिश की थी, लेकिन दुआएं किसी काम नहीं आईं। आखिरकार हिंदी-उर्दू और गंगा-जमुनी तहजीब को यकजां करने वाले इस मशहूर शायर और बेहतरीन मंच संचालक अनवर जलालपुरी का निधन नए साल की 2 जनवरी की सुबह हो गया।

हिंदी वालों में थे लोकप्रिय

अनवर जलालपुरी की ठहरावयुक्त और खनकती हुई आवाज और उसकी रवानी सुनने वालों को आकर्षित करती थी। उनका नाम आते ही उनका वही अंदाज याद आता है, जब वे शायर को मंच पर कलाम पेश करने के लिए शेर के साथ लफ्जों को बड़ी खूबसूरती से बुनते थे। उनके उस संचालन में एक शिष्टता होती थी, अदब होता था और साथ ही कभी-कभी तंज का स्वर भी होता था। उनका यह अंदाज लोगों को उनका कायल बना देता था।

भारतीय संस्कृति के वाहक

भारत की गंगाजमुनी तहजीब उनके भीतर बसती थी। उन्होंने हिंदू धर्मग्र्रंथों और भारतीय दर्शन का गहन अध्ययन किया था, जो उनके शेरों में दिखाई देता है। उनका मानना था कि देश की संस्कृति विभिन्न धर्मों वाली है और हम एक-दूसरे के नजदीक तभी आएंगे, जब एक दूसरे के धर्म, संस्कृति, भाषा को समझेंगे और सम्मान देंगे। उन्होंने गीता का उर्दू में काव्यात्मक अनुवाद किया था। मशहूर कृति गीतांजलि को उर्दू अदब से वाकिफ कराने का काम भी उन्होंने किया।

इस्लामी देशों को देना चाहते थे गीता का ज्ञान

अनवर साहब ने श्रीमद्भगवद्गीता के 700 श्लोकों का 1761 शेरों में भावानुवाद किया था। उन्होंने पीएचडी के लिए श्रीमद्भगवद्गीता को चुना था। जब उन्होंने इस महान ग्र्रंथ का अध्ययन करना शुरू किया तो लगा कि यह व्यापक विषय है। और करीब तीस साल पहले ही वे इसके श्लोकों का ऊर्दू में काव्यात्मक अनुवाद करने लगे। कई साल की मेहनत के बाद उन्होंने इसे पूरा कर लिया है। उनकी गीता को अनूप जलोटा ने आवाज दी है। अनवर साहब चाहते थे कि दुनिया के सभी इस्लामी देशों में गीता का संदेश पहुंचे। पाकिस्तान में अनूप जलोटा उनकी उर्दू गीता को गा चुके हैं।

तुलनात्मक अध्ययन उनकी आदत

साहित्य, दर्शन और धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन करना उनकी आदत थी। उन्होंने कहा था कि गीता उन्हें इसलिए अच्छी लगी, क्योंकि इसमें कोरी दार्शनिकता नहीं, बल्कि दार्शनिकता के प्रकाश से साहित्य भी है। उन्होंने इसके अनुवाद में यह महसूस किया था कि दुनिया की सभी पवित्र ग्र्रंथों में इंसानियत का ही पैगाम है। एक बार अनवर साहब ने एक साक्षात्कार में कहा था, 'गीता में सौ ऐसी बातें हैं, जो कुरान और हदीस की हिदायतों से बहुत मिलती-जुलती हैं। मतलब साफ है कि आध्यात्मिक ऊंचाई पर रहे महापुरुष लगभग एक जैसा ही सोचते थे। हम जिस मिले-जुले समाज में रह रहे हैं, उसमें हमें एक-दूसरे को समझने की जरूरत है। मगर दिक्कत ये है कि हम ऐसा नहीं करते।

मुशायरों के टीचर

अनवर के निधन पर शायर मुनव्वर राणा ने कहा कि मुशायरे का टीचर चला गया। उन्होंने कहा कि टीचर की तरह वह मुशायरे के स्तर को बनाए रखते थे। वह ध्यान रखते थे कि मुशायरा सांप्रदायिकता या अश्लीलता की तरफ न जाए। मुनव्वर राणा कहते हैं, 'एक टीचर की तरह वह मुशायरे का संचालन करते थे। कभी किसी ने खराब शेर पढ़ा, गलत वाक्य बोला, तो वह टोक देते थे। यह खूबी किसी संचालक में नहीं, लेकिन जो टीचर होता है, वो इस जिम्मेदारी को महसूस करता है। '

अनवर जलालपुरी की गजल(रेख्ता से साभार)

शादाब-ओ-शगुफ़्ता कोई गुलशन न मिलेगा

दिल ख़ुश्क रहा तो कहीं सावन न मिलेगा

तुम प्यार की सौग़ात लिए घर से तो निकलो

रस्ते में तुम्हें कोई भी दुश्मन न मिलेगा

अब गुजऱी हुई उम्र को आवाज़ न देना

अब धूल में लिपटा हुआ बचपन न मिलेगा

सोते हैं बहुत चैन से वो जिन के घरों में

मिट्टी के अलावा कोई बर्तन न मिलेगा

अब नाम नहीं काम का क़ाएल है ज़माना

अब नाम किसी शख़्स का रावन न मिलेगा

चाहो तो मिरी आँखों को आईना बना लो

देखो तुम्हें ऐसा कोई दर्पन न मिलेगा


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