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समाजवादी पार्टी, शिवपाल सिंह यादव, कलह और अलगाव

समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव की अंगुली पकड़कर राजनीति का ककहरा सीखने वाले शिवपाल सिंह यादव दो दशक से उत्तर प्रदेश की राजनीति में अहम स्थान रखते थे।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Thu, 30 Aug 2018 11:55 AM (IST)Updated: Thu, 30 Aug 2018 01:22 PM (IST)
समाजवादी पार्टी, शिवपाल सिंह यादव, कलह और अलगाव

लखनऊ (जेएनएन)। बड़े भाई मुलायम सिंह यादव की अंगुली पकड़कर राजनीति का ककहरा सीखने वाले शिवपाल सिंह यादव का लंबे समय बाद समाजवादी पार्टी से मोहभंग हो गया है। 1988 से सक्रिय राजनीति में आए शिवपाल सिंह यादव ने उपेक्षा से दुखी होकर कल नई पार्टी बनाने का ऐलान किया ।

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समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव की अंगुली पकड़कर राजनीति का ककहरा सीखने वाले शिवपाल सिंह यादव दो दशक से उत्तर प्रदेश की राजनीति में अहम स्थान रखते थे। इसके बाद कुनबे की कलह ने उन्हें समाजवादी पार्टी में हाशिए पर डाल दिया था। समाजवादी सेक्युलर मोर्चे का एलान कर यकायक वह फिर उभरे हैं।

16 अप्रैल 1955 को सैफई में जन्मे शिवपाल ने जब होश संभाला तो बड़े भाई मुलायम सिंह यादव प्रदेश की राजनीति में जगह बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। जब तक शिवपाल सिंह यादव ने पढ़ाई पूरी की तो बड़े भाई अपनी पहचान बना चुके थे। शिवपाल ने बड़े भाई मुलायम की अंगुली पकड़ ली और क्षेत्र में घूमकर सोशलिस्ट पार्टी के कार्यक्रमों में भाग लेने के साथ ही भाई का प्रचार करते थे। 

अहम जिम्मेदारियां

उन्होंने विधानसभा के साथ लोकसभा चुनाव में पर्चें बांटने से लेकर पार्टी के बूथ-समन्वयक तक की जिम्मेदारी निभाई। मुलायम सिंह यादव के समर्थन में मधु लिमये, चौधरी चरण सिंह व जनेश्वर मिश्र जैसे बड़े नेताओं की सभाएं करवाने की जिम्मेदारी भी अक्सर उनको ही मिलती थी। मुलायम सिंह यादव भाई की इस सक्रियता के कारण उनपर भरोसा करते थे। इसके बाद शिवपाल सिंह यादव 1988 में सक्रिय राजनीति में आ गए।

राजनीति का सफर

1988 से 1991 और फिर 1993 में जिला सहकारी बैंक (इटावा) के अध्यक्ष चुने गए। 1995 से 1996 तक इटावा के जिला पंचायत अध्यक्ष रहे। 1994 से 1998 के बीच उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक के भी अध्यक्ष बने। मुलायम सिंह यादव की सीट जसवंतनगर से 1996 में वह विधानसभा का चुनाव जीते। अभी तक 1996 से लगातार इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में जहां समाजवादी पार्टी के अधिकांश दिग्गज विधायकों को मुंह की खानी पड़ी वहीं शिवपाल सिंह यादव अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। मुलायम सिंह यादव ने 2017 में सिर्फ शिवपाल सिंह यादव, अपर्णा यादव तथा पारसनाथ यादव के समर्थन में सभी की थी। इनमें शिवपाल सिंह यादव व पारसनाथ यादव ही चुनाव जीते।

अखिलेश यादव से टकराव

समाजवादी पार्टी को 2012 मिली बंपर जीत के बाद पार्टी की कमान को लेकर शिवपाल यादव और अखिलेश यादव दो दावेदार थे। मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश को राज्य की कमान सौंपी और प्रदेश अध्यक्ष बनाने के बाद शिवपाल सिंह यादव को संतुष्ट करने के लिए राज्य का प्रभारी बनाया था। इसे बाद में दोनों के बीच शक्ति का अहम बंटवारा माना जा रहा था। शिवपाल सिंह यादव की पार्टी में पुराने और नए दोनों समाजवादियों के बीच अच्छी पैठ है। वहीं, अखिलेश नई टीम पर भरोसा करते हैं। मुलायम सिंह यादव को इन दोनों की जरूरत थी लेकिन, यह दोनों एक दूसरे के खिलाफ हो गए।

मुख्य सचिव दीपक सिंघल की नियुक्ति से तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव नाखुश थे। उस समय कहा तो यह भी जा रहा था कि शिवपाल सिंह यादव ने मुलायम सिंह यादव से दबाव बनवा कर अपने सबसे चहेते अफसर को शीर्ष की कुर्सी दिलवा दी।

मुलायम के चचेरे भाई प्रोफेसर रामगोपाल यादव पार्टी में अलग जगह चाहते थे। रामगोपाल तो मुख्यमंत्री बनने की चाहत भी रखते थे और शायद इसी कारण वह शिवपाल और उनके फैसलों के खिलाफ खड़े नजर आते थे। इन सब के बीच अखिलेश और रामगोपाल के संबंध काफी अच्छे हैं। रिश्तों की इस उलझी गुत्थी को वक्त पर सुलझाने में मुलायम सिंह नाकाम रहे।

दोनों भाइयों में झगड़े की एक वजह अमर सिंह भी हैं। रामगोपाल यादव और अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी में अमर सिंह की घर वापसी के सख्त खिलाफ थे लेकिन, शिवपाल सिंह ने मुलायम सिंह को अमर सिंह के लिए राजी कर लिया जबकि अखिलेश ने अमर सिंह को पहले बाहरी शख्स और साजिश का सूत्रधार बताया था।

समाजवादी परिवार में बंटवारे की बुनियाद उसी समय पड़ गई थी। जब अखिलेश यादव की मर्जी के खिलाफ जाकर शिवपाल सिंह ने बाहुबली मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का विलय कराया था। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को यह बात नागवार गुजरी और उन्होंने इस विलय का विरोध किया और विलय रद करा दिया गया लेकिन, चाचा शिवपाल सिंह ने अखिलेश यादव को झटका देते हुए पार्टी में कौमी एकता दल का विलय करा लिया।

कुनबे में कलह

वर्ष 2013 में मुलायम सिंह यादव के कहने और दबाव डालने के बाद ही अखिलेश मंत्रिमंडल में गायत्री प्रसाद प्रजापति को खनन मंत्री बनाया गया था। उनके मंत्री बनते ही पूरे सूबे में अवैध खनन की बाढ़ आ गई थी। प्रतिदिन होने वाली करोड़ों रुपये की अवैध वसूली चर्चा में थी और खनन सिंडीकेट का प्रभाव राजनीति को भी प्रभावित करने लगा था। इसी दौरान यह मामला उच्च न्यायालय पहुंचा और सरकार की लाख कोशिशों के बाद मामले की सीबीआइ जांच शुरू हो गई। नौ सितंबर को गायत्री के सीबीआइ की गिरफ्त में आने के साथ इस मामले से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जुड़े सभी लोग अपने गिरेबान बचाने में लग गए। शुरू हुआ आरोप-प्रत्यारोप का दौर और फिर कुनबे में कलह होनी ही थी।

जब शिवपाल बोले- झूठा है आपका मुख्यमंत्री

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और चाचा शिवपाल के बीच की बढ़ी तल्खियों से हर कोई बखूबी वाकिफ है। तल्खियां काफी पुरानी हैं और वक्त वक्त पर एक-दूसरे के लिए की गई बयानबाजी व लड़ाई ने दोनों के बीच की दूरियों को बढ़ाने की ही काम किया है। शिवपाल यादव की हमेशा से यह शिकायत रही थी कि समाजवादी पार्टी में उनका सम्मान नहीं रह गया है, फिर वह चाहे सीट बंटवारा रहा हो या फिर पार्टी में किसी को पद देने की बात, उनकी सुनी नहीं जाती। यही शिकायत अभी दो दिन पहले मुलायम सिंह ने भी की थी। उन्होंने कहा था कि उनका अभी कोई सम्मान नहीं करता, मरने के बाद करेंगे। खैर, कयासों पर विराम लगाते हुए बड़े भाई मुलायम से गुफ्तगू के बाद शिवपाल ने खुद की पार्टी का गठन कर दिया है, जिसका नाम उन्होंने समाजवादी सेक्युलर मोर्चा रखा है। पार्टी बनाने के बाद एक बार फिर तेजी से चर्चा में आए शिवपाल के बारे में हम वो किस्सा बताएंगे जिसने अंदरूनी कलह को मंच पर सामने ला दिया था और चाचा भतीजे एकदूसरे से मंच पर ही भिड़ गए थे।

बात अक्तूबर 2016 की है जब समाजवादी पार्टी के भीतर मचे कोहराम के बीच मुलायम सिंह यादव ने चाचा-भतीजे के बीच विवाद को सुलझाने के लिए बैठक बुलाई थी। इस बैठक में शिवपाल, अखिलेश समेत सपा के कई कद्दवार नेता विधायक मौजूद थे। लेकिन मुलायम सिंह की कवायद उस वक्त बेकार गई जब सुलह के लिए बुलाई गई बैठक में शिवापल यादव व अखिलेश यादव में जमकर कहा सुनी हो गई। चाचा भतीजे में बात इस हद तक बढ़ी कि दोनों की बीच बात हाथापाई तक पहुंच गई, जिसके बाद सुरक्षाकर्मियों ने बीच बचाव किया। जिसके बाद दोनों पार्टी कार्यालय से बाहर चले गए।

अखिलेश यादव अंग्रेजी अखबार में एक लेख को लेकर नाराज थे, जिसमें उन्हें औरंगजेब बताया गया था। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की दलील थी कि इस लेख को छपवाने का काम अमर सिंह ने किया था। अखिलेश के इतना बोलत ही शिवपाल यादव ने अखिलेश यादव से माइक छिना लिया और कहा कि कहा कि क्यों झूठ बोलते हो। इसके बाद दोनों नेताओं में माइक छीनने को लेकर स्थिति हाथापाई तक आ पहुंची। बात उस समय बिगड़ गई जब अखिलेश यादव के हाथ से माइक छीनकर शिवपाल ने कहा कि आपका मुख्यमंत्री झूठा है। जिसके बाद दोनों के बीच आपस में जोर-जोर से बहस होने लगी। शिवपाल ने कहा कि अखिलेश क्यों झूठ बोलते हो, तो अखिलेश ने काफी तेज आवाज में कहा कि क्या अमर सिंह ने कुछ नहीं किया है।

बात उस समय बिगड़ गई जब अखिलेश यादव के हाथ से माइक छीनकर शिवपाल ने कहा कि आपका मुख्यमंत्री झूठा है। जिसके बाद दोनों के बीच आपस में जोर-जोर से बहस होने लगी। शिवपाल ने कहा कि अखिलेश क्यों झूठ बोलते हो, तो अखिलेश ने काफी तेज आवाज में कहा कि क्या अमर सिंह ने कुछ नहीं किया है। इसके बाद रोते हुए अखिलेश ने जमकर अपनी भड़ास निकाली। अखिलेश बोले- जो आप कहेंगे वो करूंगा। गौर करने वाली बात यह है कि इस पूरे वाकये के दौरान खुद सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव वहां मौजूद थे, बावजूद इसके जिस तरह चाचा भतीजे आपस में भिड़े जिसके बाद से साफ हो गया था कि दोनों के राहें अब जुदा हैं। हालात इतने बदतर होने से पहले मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव से कहा कि शिवपाल तुम्हारे चाचा हैं उनसे गले मिलो। हालांकि शिवपाल से गले मिलने के बाद अखिलेश ने उनके पैर भी छुए लेकिन ये मिलन सिर्फ गले का था दिल का नहीं जोकि खुलकर सामने आ गया था। 


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