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Sharad Purnima 2022: माता लक्ष्मी का जगराता करने से भक्तों को मिलेगी विशेष कृपा, धन-धान्य से भर जाएगी झोली

Sharad Purnima 2022 शरद पूर्णिमा पर अमृत की वर्षा होती है। इस दिन भक्तों को मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस दिन मनकामेश्वर उपवन घाट पर आदि गंगा गोमती की आरती होगी। वहीं दुर्गा पूजा पंडालों में कोजागरी पूजा की जाएगी।

By Vrinda SrivastavaEdited By: Published: Fri, 07 Oct 2022 01:51 PM (IST)Updated: Sat, 08 Oct 2022 07:58 AM (IST)
शरद पूर्णिमा पर रातभर जागकर करें माता लक्ष्मी का जगराता।

लखनऊ, [जितेंद्र उपाध्याय]। Sharad Purnima 2022: आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा कहा जाता है और कई जगहों पर इसे कोजागर पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी का पूजन किया जाता है और इससे मां लक्ष्मी प्रसन्न होकर जातकों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। खास बात है कि शरद पूर्णिमा के दिन सुबह नहीं, बल्कि रात के समय पूजा की जाती है और रात के समय जागरण किया जाता है। लेकिन ध्यान रखें कि रात को पूजा करने से पहले घर में साफ-सफाई अवश्य होनी चाहिए क्योंकि इस दिन मां लक्ष्मी घर में प्रवेश करती हैं। 

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इस बार शरद पूर्णिमा नौ अक्टूबर को है। शरद पूर्णिमा को चंद्रमा पूर्ण 16 कलाओं से युक्त होता है, इसीलिए श्रीकृष्ण ने महारास लीला के लिए इस रात्रि को चुना था। इस रात चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है और मां लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं। आचार्य शक्तिधर त्रिपाठी ने बताया कि इस दिन दुर्गा पूजा पंडालाें में कोजागरी पूजा होती है। लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए हाेने वाली पूजा देर शाम होगी।

पूर्णिमा तिथि रविवार को सूर्योदय के पहले से शुरू होकर देर रात्रि 2:24 बजे तक रहेगी। उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र और स्थिर योग की युति से यह पूर्णिमा अति महत्व पूर्ण हो रही है। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग भी है। शरद पूर्णिमा को अन्य कई नामों से भी जाना जाता है। रास पूर्णिमा, कुमार पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा व कौमुदी पूर्णिमा आदि भी कहते हैं।

मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा से रातभर अमृत की वर्षा होती है। इस रात्रि को गाय के दूध में खीर पका कर चंद्रमा की किरणों के नीचे रखने से उसमें अमरत्व के गुण आ जाते हैं। शरद पूर्णिमा को रात्रि जागरण करने और माता लक्ष्मी के पूजन का विशेष महत्व है। कलश स्थापन करके श्री विष्णु एवं माता लक्ष्मी का शोडषोपचार या पंचोपचार पूजन करें।

दूर्वा, कमल पुष्प, सिंदूर और नारियल के लड्डू पूजा करते समय जरूर चढ़ाएं। वहीं पूजा के दौरान श्री सूक्त का पाठ अवश्य करें। सम्भव हो तो पुरुष सूक्त का भी पाठ करें या श्री विष्णु सहस्त्र नाम का जप करें। मनकामेश्वर मंदिर की महंत देव्या गिरि ने बताया कि रविवार की शाम को मनकामेश्वर उपवन घाट पर आदि गंगा गोमती की आरती होगी और खीर का वितरण किया जाएगा।

वैज्ञानिक और आध्यात्मिक रूप से मान्य है पूर्णिमा

केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य डा. अश्विनी पांडेय ने बताया कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह रात्रि स्वास्थ्य व सकारात्मकता प्रदान करने वाली मानी जाती है। हिन्दू धर्मशास्त्र में वर्णित कथाओं के अनुसार, देवी-देवताओं के अत्यंत प्रिय पुष्प ब्रह्मकमल भी इसी दिन खिलता है। शरद पूर्णिमा पर दूध और चावल मिश्रित खीर पर चन्द्रमा की किरणों को गिरने के लिए रख देते हैं।

चंद्रमा तत्व एवं दूध पदार्थ समान ऊर्जा धर्म होने के कारण दूध अपने में चंद्रमा की किरणों को अवशोषित कर लेता है। मान्यता के अनुसार, उसमें अमृत वर्षा हो जाती है और खीर को खाकर अमृतपान का संस्कार पूर्ण करते हैं। आयुर्वेद में भी शरद ऋतु का वर्णन किया गया है। इसके अनुसार, शरद पूर्णिमा में दिन बहुत गर्म और रात बहुत ठंडी होती है।

इस ऋतु में पित्त या एसिडिटी का प्रकोप ज्यादा होता है। जिसके लिए ठंडे दूध और चावल को खाना अच्छा माना जाता है। आयुर्वेद की परंपरा में शीत ऋतु में गर्म दूध का सेवन अच्छा माना जाता है। ऐसा कह सकते हैं कि इसी दिन से रात में गर्म दूध पीने की शुरुआत की जानी चाहिए। वर्षा ऋतु में दूध का सेवन वर्जित माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, धवल चांदनी में मां लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण के लिए आती हैं।

शास्त्रों के अनुसार, शरद पूर्णिमा की मध्य रात्रि के बाद मां लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर बैठकर धरती के मनोहर दृश्य का आनंद लेती हैं। साथ ही माता यह भी देखती हैं कि कौन भक्त रात में जागकर उनकी भक्ति कर रहा है। इसलिए शरद पूर्णिमा की रात को कोजागरा भी कहा जाता है। कोजागरा का शाब्दिक अर्थ है कौन जाग रहा है। मान्यता है कि जो इस रात में जगकर मां लक्ष्मी की उपासना करते हैं मां लक्ष्मी की उन पर कृपा होती है।

शरद पूर्णिमा के विषय में ज्योतिषीय मत है कि जो भी इस रात जगकर माता लक्ष्मी की उपासना करता है उनकी कुण्डली में धन योग नहीं भी होने पर माता उन्हें धन-धान्य से संपन्न कर देती हैं। कार्तिक मास का व्रत भी शरद पूर्णिमा से ही प्रारंभ होता है। पूरे माह पूजा-पाठ और स्नान-परिक्रमा का दौर चलता है। शरद पूर्णिमा को दिन में 10 बजे पीपल के सात परिक्रमा करनी चाहिए इससे मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।


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