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सूरज की गवाही में गूंजे टकराहटों व सहमति के स्वर

संवादी-2018 : समय के साथ संघ में बदलाव की थाह परखी गई, आठ सत्रों में नए लेखन से लेकर हुई साहित्य में रिश्तों की तलाश।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sat, 01 Dec 2018 10:29 PM (IST)Updated: Sun, 02 Dec 2018 09:25 AM (IST)
सूरज की गवाही में गूंजे टकराहटों व सहमति के स्वर
सूरज की गवाही में गूंजे टकराहटों व सहमति के स्वर

लखनऊ [अजय शुक्ला]। यह बंद कमरों और सेल्फी मोड में अंगुलियों की भाषा बतियाने का दौर है। आभासी पहचान के साथ स्क्रीन पर अवतरित होने का काल और शायद यही वजह है कि जब मुक्ताकाशीय मंचों पर सजे अभिव्यक्ति के उत्सवों में बात इंटरैक्टिव मोड पर आती है तो टकराहटों के साथ सहमति के स्वर भी पूरी शिद्दत से गूंजते हैं। जागरण संवादी के दूसरे दिन शनिवार को गुनगुनी धूप और शीतलता से सहलाती हवा के बीच ऐसी ही सहमति और टकराहटों भरी स्वर लहरियां संगीत नाटक अकादमी के लॉन में भी गूंजीं।

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मंच के ठीक ऊपर ऊर्जा के परम स्रोत भगवान भाष्कर की गवाही में संवादी के पहले सत्र में 'समय के साथ बदलता संघ' विषय पर चर्चा शुरू हुई। बदलाव की थाह लेने के लिए जागरण के स्थानीय संपादक सद्गुरु शरण अवस्थी मौजूद थे, तो इस यात्रा का ब्यौरा लेकर मौजूद थे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुषांगिक संगठन प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक जे नंद कुमार। उन्होंने ईमानदारी से स्वीकारा कि संघ के वाह्य स्वरूप में अवश्य कुछ अंतर आया है, लेकिन 1925 में जिन लक्ष्यों को लेकर संगठन की नींव पड़ी थी, उनसे भटकाव कहीं नहीं। बल्कि, संघ यात्रा के नए पड़ाव पार कर रहा है।

बात जब नए लेखन की आती है तो इन दिनों अभिव्यक्ति के उत्सवों में कुछ-कुछ वैसी ही गरमागरम बहस छिड़ जाती है, जैसी कभी दलित लेखन, स्त्री विमर्श और साहित्य के सौंदर्य शास्त्र पर। अब निशाने पर होती है नए लेखकों की भाषा और पुराने लेखकों के स्थापित मानदंड। किस तरह के शब्द गढ़े और बुने जाएं और किस तरह भावों को उनकी कुदरती सहजता और स्वरूप में व्यक्त किया जाए। नए लेखक कहते हैं, हम तो ऐसे ही लिखेंगे और पुराने आरोप लगाते हैं, यूं तो भाषा और संस्कृति भ्रष्ट हो जाएगी। संवादी के मंच पर मनोज राजन त्रिपाठी के संचालन में युवा लेखक प्रवीण कुमार, भगवंत अनमोल, क्षितिज राय और सिनीवाली शर्मा ने अपनी बात रखी तो चर्चा का दायरा इन्हीं बिंदुओं के गिर्द घूमता रहा। अगले सत्र 'क्या बिकता है, क्या छपता है' में चर्चा तो प्रकाशन क्षेत्र की बारीकियों और नए लेखकों की फैक्ट्री पर थी, लेकिन पिछले सत्र का जवाब यहां जरूर कुछ-कुछ स्पष्ट हुआ। यानी, भाषा हो या विषय, साहित्यिक आग्रहों और लेखकीय रुचि पर अंतिम मुहर बाजार की ही लगती है।

आइटी रिवोल्यूशन के बाद अभिव्यक्ति के इतने माध्यम उभरे हैं कि शायद अंगुलियों पर इनकी गिनती नामुमकिन नहीं तो मुश्किल जरूर है। हाल के दिनों में यूट्यूबर के रूप में एक नई जमात, नई पहचान के साथ खड़ी हुई है। शर्मा जी टेक्निकल उर्फ प्रवाल शर्मा और भरत नागपाल आइकन बनकर उभरे हैं। यूट्यूबर का क्रेज देखना हो तो किसी भी महानगर के सेल्फी प्वाइंट या आइकोनिक प्लेस पर खड़े हो जाएं। 18 से 25 वर्ष के युवा एक दीवानगी के साथ ट्राईपॉड और स्मार्ट फोन लिये खड़े दिख जाएंगे। 'वेब की दुनिया के बादशाह' सत्र में ऐसे युवाओं के पास काफी सवाल थे।

संवादी की शाम वरिष्ठ कथाकार मैत्रेयी पुष्पा, सूर्यबाला, यतीन्द्र मिश्र और अनुराधा गुप्ता ने साहित्य में रिश्तों की तलाश की तो बुद्धिनाथ मिश्र, आशुतोष दुबे, सर्वेश अस्थाना, एनपी सिंह और रश्मि भारद्वाज ने कविता के रंग पर चर्चा की। समापन विद्या शाह की बेगम अख्तर को समर्पित प्रस्तुति 'ऐ मोहब्बत' से हुई।


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