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संजय गांधी पीजीआइ के डॉक्टर्स ने बचाई कोरोना संक्रमित मायस्थेनिया ग्रेविस की जान

Myasthenia Gravis दुर्गेश नंदिनी को 29 जुलाई को पीजीआइ में भर्ती कराया गया था। स्थिति बिगड़ने पर उन्हें आइसीयू में भर्ती किया गया। परेशानी के कारण ऑक्सीजन थेरेपी पर रखा गया।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Sun, 06 Sep 2020 12:57 PM (IST)Updated: Sun, 06 Sep 2020 12:57 PM (IST)
संजय गांधी पीजीआइ के डॉक्टर्स ने बचाई कोरोना संक्रमित मायस्थेनिया ग्रेविस की जान
संजय गांधी पीजीआइ के डॉक्टर्स ने बचाई कोरोना संक्रमित मायस्थेनिया ग्रेविस की जान

लखनऊ [कुमार संजय]। मायस्थेनिया ग्रेविस से पीड़ित कोरोना संक्रमित दुर्गेश नंदिनी की जान संजय गांधी पीजीआइ के चिकित्सकों ने बचा ली। यह प्रदेश में अपनी तरह का पहला मामला था। छह विभागों के विशेषज्ञों ने यह कारनामा किया।

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दुर्गेश नंदिनी को 29 जुलाई को पीजीआइ में भर्ती कराया गया था। स्थिति बिगड़ने पर उन्हें आइसीयू में भर्ती किया गया। सांस लेने में परेशानी के कारण ऑक्सीजन थेरेपी पर रखा गया। उसके बाद भी उसका श्वसन तंत्र कमजोर होता जा रहा था। इसके बाद उन्हेंं वेंटिलेटर पर रखना पड़ा और ऑक्सीजन की हाईडोज देनी पड़ी।

इस दौरान मरीज को बचाने के लिए इंट्रावेनस इम्युनोग्लोबिन प्लाज्मा थेरेपी रेमडेसिविर के अलावा मोनोक्लोनल एंटीबॉडी दवाएं दी गईं। इस केस में न्यूरोलॉजिस्ट प्रो.विमल पालीवाल, एनेस्थेसिया विभाग के एक्सपर्ट प्रो.पुनीत गोयल, डॉ.प्रतीक, हेमेटोलॉजी विभाग के प्रो.अंशुल गुप्ता, इम्यूनोलॉजी विभाग के प्रो.एविल लारेंस व ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन के प्रो.अनुपम वर्मा ने इलाज की दिशा तय की। इमरजेंसी मेडिसिन के डॉ.तन्मय घटक ने बताया कि कोरोना निगेटिव होने के बाद मरीज को 30 अगस्त को न्यूरो वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया है। वे अभी भर्ती हैं और उपचार चल रहा है।

मायस्थेनिया ग्रेविस क्या है

मायस्थेनिया ग्रेविस एक तरह की कमजोरी है, जो मांसपेशियों की थकान दर्शाती है। नसों और मांसपेशियों के बीच तालमेल में आई बाधा इसका कारण है। इसका वैसे तो कोई स्थाई इलाज नहीं है, लेकिन उपचार से राहत पा सकते हैं। जैसे कि हाथ या पैर की मांसपेशियों की कमजोरी, दोहरी दृष्टि और पलकों के खुलने और बंद होने में नियंत्रण न होना, बोलने, चबाने, निगलने व सांस लेने में होने वाली कठिनाई। यह बीमारी किसी भी आयु वर्ग के व्यक्ति को हो सकती है, लेकिन 40 से कम उम्र की महिलाओं व 60 वर्ष से अधिक उम्र के पुरुषों को यह ज्यादा प्रभावित करती है। 


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