समाजवादी पार्टी को नश्तर की तरह चुभेगा शिवपाल का सेक्युलर मोर्चा दांव
कुनबे की कलह में कई बार उपेक्षित होने के बावजूद शिवपाल सिंह यादव की खामोशी बड़े ज्वालामुखी की तरह सेक्युलर मोर्चा का धमाका बनकर फूटी।
लखनऊ (हरिशंकर मिश्र)। कुनबे की कलह में कई बार अपमानित और उपेक्षित होने के बावजूद शिवपाल सिंह यादव ने राजनीतिक खामोशी बनाये रखी थी तो इससे यह साफ था कि वह वक्त के इंतजार में हैं और एन वक्त पर अपने पत्तों का राजफाश करेंगे। अब लोकसभा चुनाव से पहले अपने पत्ते खोल यह भी साबित कर दिया है कि राजनीति के दंगल में वह हार मानने वाले योद्धाओं में नहीं और यदि सपा ने उन्हें खेल में नहीं शामिल किया है तो वह खेल बिगाडऩे का आनंद जरूर लेंगे।
गठजोड़ की राह में लेकिन-किंतु-परंतु और असमंजस
शिवपाल समाजवादी पार्टी के धुरंधर और माहिर नेताओं में रहे हैं और उन्होंने अपने सेक्युलर मोर्चा का बम ऐसे वक्त पर फोड़ा है जबकि महागठबंधन की जाजिम अभी बिछ तक नहीं पाई है। सपा और बसपा के गठजोड़ की संभावनाएं भले ही प्रबल हैं लेकिन, उसमें भी किंतु, परंतु और असमंजस जैसे शब्द शामिल हैं। शिवपाल ने सेक्युलर मोर्चा के जरिये समाजवादी पार्टी में हाशिये पर चल रहे कई नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए एक विकल्प तैयार कर दिया है। इससे सपा को प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों ही रूप में नुकसान पहुंचना तय है। उन्होंने अन्य छोटे दलों के लिए दरवाजे खोलकर उन्हें भी राजनीतिक सौदेबाजी के लिए ताकत दे दी है जो प्रस्तावित महाठबंधन को किसी न किसी रूप में प्रभावित करेगा और समाजवादी पार्टी को नश्तर जैसा चुभेगा।
सपा के प्रभाववाले क्षेत्रों में लग सकती सेंध
मुलायम सिंह यादव के समय से ही शिवपाल सिंह यादव की संगठन पर मजबूत पकड़ मानी जाती है। उस समय तो वह कई बड़े फैसले बदलवाने में भी सक्षम माने जाते थे और टिकट बंटवारे से लेकर मंत्रिमंडल के गठन तक में उनकी सुनी जाती थी। बड़े विभागों का मंत्री रहने के दौरान भी उन्होंने अपने लोगों का पूरा ध्यान रखा था। ऐसे में शिवपाल से लाभान्वित होने वाले लोगों की बड़ी संख्या सपा में है और वह कुनबे की कलह शुरू होने के बाद से अलग पार्टी के गठन का दबाव बनाए हुए थे। सपा के प्रभाववाले क्षेत्रों इटावा, मैनपुरी, कन्नौज, एटा, फर्रुखाबाद जैसे जिलों में तो शिवपाल की गहरी पैठ है ही अन्य जिलों में भी उनके समर्थकों की बड़ी संख्या है। शिवपाल फैंस एसोसिएशन के जरिये उन्होंने युवाओं की बड़ी संख्या भी खुद से जोड़ रखी है। मोर्चा ने अपने पदाधिकारी खड़े किए तो सपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
पहले ही रखी जा चुकी थी मोर्चा की बुनियाद
शिवपाल ने मोर्चा के गठन के लिए लगभग दो साल का इंतजार जरूर किया है लेकिन, इसकी बुनियाद पहले ही रखी जा चुकी थी। हर बार मुलायम ही इसमें दीवार बनते रहे हैं। उपेक्षा से त्रस्त शिवपाल ने पांच मई 2017 को समाजवादी सेक्युलर मोर्चा बनाने का एलान किया था लेकिन, बाद में यह ठंडे बस्ते में चला गया। लगभग साल भर पहले भी मोर्चा के गठन की पूरी तैयारी कर ली गई थी लेकिन, मुलायम ने एलान नहीं होने दिया था। इसका पूरा खाका तैयार करने के बाद गत 25 दिसंबर को लोहिया ट्रस्ट में बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस तक बुला ली गई थी। शिवपाल बड़े भाई मुलायम के मुंह से ही इसकी घोषणा कराना चाहते थे लेकिन, उन्होंने पलटी मार ली थी। शिवपाल इससे नाराज भी हुए थे लेकिन, सार्वजनिक इजहार नहीं किया था। इसके बाद इसी वर्ष 10 जून को समर्थकों ने शिवपाल यादव सेक्युलर मोर्चा का गठन कर शिवपाल को संरक्षक बनाया था।