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डिप्रेशन के रोगी सर्दियों में रहें सावधान, हो सकता है सीजनल एफेक्टिव डिसऑर्डर'-जानिए क्या है ये बीमारी

सीजनल एफेक्टिव डिसऑर्डर का महिलाओं में 3 गुना ज्यादा खतरा 18 से 25 वर्ष की आयु में होती है इसकी शुरुआत।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sat, 04 Jan 2020 04:44 PM (IST)Updated: Sun, 05 Jan 2020 08:58 AM (IST)
डिप्रेशन के रोगी सर्दियों में रहें सावधान, हो सकता है सीजनल एफेक्टिव डिसऑर्डर'-जानिए क्या है ये बीमारी
डिप्रेशन के रोगी सर्दियों में रहें सावधान, हो सकता है सीजनल एफेक्टिव डिसऑर्डर'-जानिए क्या है ये बीमारी

लखनऊ, जेएनएन। मौसम का प्रभाव जिस तरह शरीर पर पड़ता है, ठीक उसी तरह डिप्रेशन के मरीजों के मन को भी प्रभावित करता है। सर्दी के मौसम में डिप्रेशन के रोगियों की समस्या और भी बढ़ जाती है। ऐसे में उदासी, निराशा के भाव बढ़ जाते हैं, जिसे लोग अक्सर नजरअंदाज करते हैं। मगर, इसे सीजनल एफेक्टिव डिसऑर्डर (एसएडी) कहते हैं। यह एक मानसिक रोग है, जो मेलाटोनिन हार्मोंस के सीक्रेशन के कारण होता है। इस मौसम में विशेषज्ञ इस रोग के प्रति सावधानी बरतने की सलाह दे रहे हैं।

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ब्रेन की मास्टर क्लॉक करती है अंगों को रेगुलेट

केजीएमयू में मनोरोग चिकित्सक डॉ. आदर्श त्रिपाठी कहते हैं, इंसान के ब्रेन में एक मास्टर क्लॉक होती है, जो शरीर के दूसरे अंगों के फंक्शन को नियंत्रित करने का काम करती है। मास्टर क्लॉक का सबसे महत्वपूर्ण स्टीमुलस सूर्य की रोशनी होता है, जो मेलाटोनिन हार्मोंस के सीक्रेशन में मदद करता है।

मेलाटोनिन हार्मोंस का प्रवाह बढऩे से आती है उदासी 

सर्दियों में दिन छोटे और रातें बड़ी होने से सूर्य की रोशनी कम मिलती है। इसमें मेलाटोनिन हार्मोंस का प्रवाह बढ़ जाता है, जिससे व्यक्ति में शारीरिक व मानसिक सुस्ती, नीरसता, कमजोरी, उबाऊपन, ध्यान न लगना जैसे भाव महसूस होने लगते हैं। यही हार्मोन सिरोटोनिन पर भी असर डालता है, जिससे उदासी व निराशा जैसी भावनाएं भी पैदा होने लगती हैं। सीजनल एफेक्टिव डिसऑर्डर डिप्रेशन का एक प्रकार है।

ठंडे क्षेत्रों में ज्यादा दिखता है असर

शोध में पाया गया है कि अत्यधिक ठंडे क्षेत्र में इस रोग के होने की आशंका बढ़ जाती है। कनाडा के डेटा में पाया गया है कि सीजनल एफेक्टिव डिसऑर्डर सामान्य तौर पर दो फीसद और विंटर ब्लूज 20 फीसद तक होता है। हालांकि, यह समस्या सबको प्रभावित नहीं करती है। साथ ही यह कोई गंभीर या खतरनाक बीमारी नहीं है। इसका इलाज किया जा सकता है। लक्षण दिखने पर इसके प्रति सतर्क होना चाहिए। इसकी शुरुआत 18 से 25 वर्ष में होती है। पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में इसका खतरा दो से तीन गुना ज्यादा होता है। इस रोग के माइल्ड फॉर्म को विंटर ब्लूज कहते हैं।

बीमारी के लक्षण - सिरदर्द, सांस फूलना और कमजोरी महसूस होना

ऐसे करें बचाव

  • रोग यदि माइल्ड है तो विटामिन डी सप्लीमेंट या धूप में रहने से ठीक हो जाता है।
  • बीमारी मध्यम या गंभीर स्थिति में पहुंचने पर लाइट थेरेपी के जरिये इलाज होता है, जो महंगा होता है। साथ ही ताजी हरी सब्जियों, फल, अंकुरित अनाज आदि भी फायदेमंद होते हैं। 

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