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इन घासों में है फैक्‍ट्रि‍यों के दूषित जल को साफ करने की क्षमता, शोध में सामने आए रोचक तथ्य

बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ एनवायर्नमेंटल साइंस डिपार्टमेंट ऑफ माइक्रोबायोलॉजी की विज्ञानी पूजा शर्मा के शोध में रोचक तथ्य सामने आया है। इसके अनुसार सरपत बथुआ और जंगली धनिया में प्राकृतिक रूप से औद्योगिक इकाइयों के दूषित जल को साफ करने की क्षमता है।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sat, 26 Sep 2020 08:28 AM (IST)Updated: Sun, 27 Sep 2020 07:06 AM (IST)
सरपत, बथुआ और जंगली धनिया में दूषित जल को साफ करने की क्षमता है।

लखनऊ, (पुलक त्रिपाठी)। फैक्टियों के अपशिष्ट जल से तेजी से दूषित हो रही नदियों को बचाने में कुछ खास घास बेहद कारगर हैं। बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ एनवायर्नमेंटल साइंस डिपार्टमेंट ऑफ माइक्रोबायोलॉजी की विज्ञानी पूजा शर्मा के शोध में यह रोचक तथ्य सामने आया है। उन्होंने पाया कि सरपत, बथुआ और जंगली धनिया में प्राकृतिक रूप से औद्योगिक इकाइयों के दूषित जल को साफ करने की क्षमता है।  डॉ. पूजा शर्मा का यह शोधपत्र हाल ही में एक अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इसके मुताबिक, पेपर इंडस्ट्री से निकलने वाले अपशिष्ट जल को कुछ घास के जरिए शुद्ध जल में बदला जा सकता है। 

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सरपत, बथुआ और जंगली धनिया में फैक्टियों के दूषित पानी में मौजूद क्रोमियम, कैडमियम, निकिल, हेक्साडेकोनॉइक एसिड, पेंटाडेकोनॉइक एसिड, टेट्राडेकोनॉइक एसिड आदि रसायनों को अवशोषित करने का गुण होता है। ये वैसे तो स्वत: ही फैक्टियों के दूषित जल के आसपास उग जाते हैं, मगर इनकी कम संख्या के चलते दूषित जल का पूरा शोधन नहीं हो पाता। ऐसे में थोड़ा प्रयास से इनकी संख्या बढ़ाकर सहज ही फैक्टियों के दूषित पानी को साफ किया जा सकता है। इसके बाद यह पानी नदियों में जाकर उन्हें दूषित नहीं करेगा, बल्कि उपयोगी साबित होगा।

नदी और समुद्र के किनारों पर बहुत सी फैक्टियां 

औद्योगिक इकाइयों को समुद्र और नदियों के किनारे इस मकसद से विकसित किया जाता रहा है, ताकि इसे परिवहन मार्ग के रूप में इस्तेमाल कर उत्पाद को आसानी से दूसरे स्थान तक पहुंचाया जा सके। उद्योगों को इसका लाभ मिला, लेकिन नदियों को इनके अपशिष्ट जल से प्रदूषण की मार सहनी पड़ी। ऐसे में बहुत सी नदियों की हालत बदतर हो गई है।

घट रही मछलियों की प्रजनन क्षमता

शोध में यह बात भी सामने आई है कि औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले अपशिष्ट जल में मौजूद हानिकारक तत्व नदियों में जाकर मछलियों पर गहरा दुष्प्रभाव छोड़ते हैं। इससे मादा मछलियों की प्रजनन क्षमता पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। खाद्य श्रृंखला के माध्यम से ये हानिकारक तत्व मनुष्य तक पहुंचते हैं तो दिल और गुर्दे से जुड़े रोग का कारण बनते हैं। 


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