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RSS के सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा, धर्मनिरपेक्षता के मायाजाल में सांप्रदायिक ठहराए गए भारत के हिंदू

आरएसएस के सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि राष्ट्रधर्म पत्रिका के पहले संपादक अटल बिहारी वाजपेयी ने पत्रिका के परिचय में हिंदू तन-मन हिंदू जीवन रग-रग हिंदू मेरा परिचय कविता का प्रकाशन कर अपनी मंशा साफ कर दी थी। उन्होंने इसे ही अपना राष्ट्रधर्म माना था।

By Jagran NewsEdited By: Umesh TiwariWed, 30 Nov 2022 10:33 PM (IST)
RSS के सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा, धर्मनिरपेक्षता के मायाजाल में सांप्रदायिक ठहराए गए भारत के हिंदू
आरएसएस के सर कार्यवाह बोले हमें मानसिक गुलामी से भी बाहर निकलना होगा।

लखनऊ, राज्य ब्यूरो। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा है कि 15 अगस्त 1947 को हमें राजनीतिक स्वतंत्रता तो मिली लेकिन बौद्धिक गुलामी से आज तक मुक्त नहीं हो पाए। हमें इस गुलामी की मानसिकता से बाहर निकलना होगा। अंग्रेजों ने अपने स्वार्थ के लिए भारत में फूट डालने का काम किया। देश की विभिन्नता, जो कि यहां का सौंदर्य है, इस पर अंग्रेजों ने तो चोट करने का प्रयास किया ही, स्वतंत्र भारत में भी इस तरह के प्रयास हो रहे हैं। हमारे इतिहास को गलत तरीके से रखा गया। हमें गलत इतिहास पढ़ाया जा रहा है। धर्मनिरपेक्षता के मायाजाल में भारत के हिंदू सांप्रदायिक ठहरा दिए गए। नई शिक्षा नीति में इस गलती को सुधारने का काम हो रहा है।

दत्तात्रेय होसबाले ने बुधवार को गन्ना संस्थान में राष्ट्रधर्म पत्रिका के हीरक जयंती वर्ष के मौके पर 'राष्ट्रीय विचार साधना अंक' के विमोचन कार्यक्रम में कहा कि राष्ट्रधर्म एक वैचारिक पत्रिका है। 31 अगस्त 1947 को राष्ट्रधर्म के पहले संपादक अटल बिहारी वाजपेयी ने पत्रिका के परिचय में 'हिंदू तन-मन, हिंदू जीवन, रग-रग हिंदू मेरा परिचय' कविता का प्रकाशन कर अपनी मंशा साफ कर दी थी। उन्होंने इसे ही अपना राष्ट्रधर्म माना था। देश व राष्ट्र को जगाने के लिए ही इस पत्रिका को शुरू किया गया। उन्होंने कहा कि हम सारे विश्व के कल्याण की बात करते हैं। हम राष्ट्रधर्म को नजरअंदाज कर नहीं चल सकते हैं।

उन्होंने कहा कि गुलामी की मानसिकता से बाहर निकालने के लिए ही इस पत्रिका की शुरुआत की गई है। हम भाषा के विरोधी नहीं है लेकिन अंग्रेजी के गुलाम हम क्यों बनें। मैं अंग्रेजी साहित्य का विद्यार्थी हूं और कन्नड़ भाषी हूं फिर भी हिंदी बोल रहे हैं। भारत की भाषा को सीखने के लिए घर-घर प्रयत्न क्यों नहीं हो सकते हैं। संघ अपने कार्यकर्ताओं को हर शिक्षा वर्ग में भारतीय भाषाओं के गीतों को सिखाने का प्रयास करता है। अभी नागपुर में जो शिक्षा वर्ग चल रहा है वहां एक गीत हिंदी में तो एक गीत तेलुगू में सिखाया जा रहा है।

इससे पहले अवकाश प्राप्त न्यायाधीश दिनेश कुमार त्रिवेदी ने कहा कि लोगों में चेतना व संस्कार जगाने के लिए इस पत्रिका की स्थापना की गई। राष्ट्रधर्म हर धर्म के साथ है। सभी के लिए यह सबसे बड़ा धर्म राष्ट्रधर्म है। इस मौके पर राष्ट्रधर्म की वेबसाइट का भी शुभारंभ व पुराने संपादकों का सम्मान किया गया। कार्यक्रम में राष्ट्रधर्म के संपादक प्रो. ओमप्रकाश पाण्डेय भी मुख्य रूप से उपस्थित थे।