Move to Jagran APP

विरासत दिवस: संवरती इमारतों से निखर रहा इतिहास, लौटी खूबसूरती

राजधानी की एतिहासिक इमारतों का किया जा रहा है रिनोवेशन।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Thu, 18 Apr 2019 05:28 PM (IST)Updated: Fri, 19 Apr 2019 08:31 AM (IST)
विरासत दिवस: संवरती इमारतों से निखर रहा इतिहास, लौटी खूबसूरती

लखनऊ, जेएनएन। किसी भी राष्ट्र का इतिहास, उसके वर्तमान और भविष्य की नींव होता है। देश का इतिहास जितना गौरवमयी होगा, वैश्विक स्तर पर उसका स्थान उतना ही ऊंचा माना जाएगा। लखनऊ की ऐतिहासिक इमारतों की न केवल विश्व पटल पर पहचान है, बल्कि सात समंदर पार से आने वाले पयर्टकों को अपने इतिहास से रूबरू करा रहीं हैं। एक ओर जहां कई ऐतिहासिक इमारतें बदहाल होती जा रही हैं, तो वहीं कुछ इमारतों को संवारने की पहल हुई है और कुछ की हालत सुधर भी गई है। ऐतिहासिक इमारतों की दशा को दर्शाती रिपोर्ट...  

loksabha election banner

 

कोठी फरहत बक्श
वर्ष 1781 में कोठी फरहत बक्श का निर्माण कराया गया था। यह फ्रांसीसी जनरल क्लाउड मार्टिन का आवास हुआ करता था। इंडो फ्रेंच शैली पर बनी इस मार्टिन विला को बाद में नवाब आसिफुद्दौला ने खरीदा लिया था। बीमारी के दौरान नवाब साहब इसी कोठी में रहे और यहां रहने से उनका स्वास्थ्य ठीक होने लगा। इसी के बाद नवाब ने इस कोठी का नाम बदलकर फरहत बक्श कर दिया। गर्मी में इमारत को ठंडा रखने के लिए इमारत को गोमती तट से जोड़ा गया। हवाएं पानी से गुजरकर इमारत तक पहुंचती और इसको ठंडा रखतीं। वर्तमान समय में इमारत को संवारने का काम करीब पूरा हो चुका है। 

कोठी दर्शन विलास
बादशाह नसीरुद्दीन हैदर ने वर्ष 1832 में कोठी दर्शन विलास का निर्माण कराया था। बादशाह ने यह कोठी कुदसिया महल के लिए बनवाई थी। फ्रांसीसी वास्तुकला पर बनी यह खूबसूरत इमारत चारो ओर से नजर आती थी, इसलिए कोठी को चौरुखी कोठी के नाम से भी जाना जाता है। फरहत बक्श कोठी की तरह यहां दो ऊंचे-ऊंचे ताजदार बुर्ज खड़े थे। पिछले कई दिनों से कोठी को संवारने का काम चल रहा है। बाहरी हिस्सा अपने वास्तविक स्वरूप में लौट चुका है, जबकि इमारत के अंदर दीवार व छत को मजबूती देने का काम चल रहा है। 

 कोठी गुलिस्ताने इरम
19वीं सदी के चौथे दशक में बादशाह नसीरुद्दीन हैदर ने कोठी गुलिस्ताने इरम का निर्माण कराया था। लाल बारादरी और छोटी छतर मंजिल के बीच बनवाये गए इस महल का केवल कुछ ही भाग बाकी रह गया था। इस अंग्रेजी तर्ज की सादी कोठी का रखरखाव और सजावट भी बिलकुल यूरोपियन ढंग से किया गया था। गुलिस्ताने इरम के सामने पैन बाग हुआ करता था, इस तरह यह चमन बागे इरम से कम नहीं था। इसके तहखाने में सात जुलाई 1837 की रात बादशाह ने आखिरी सांस ली थी। इसी सैक्यूलर ऑर्डर की बिल्डिंग में ब्रिटिश काल में रेजीडेंट ऑफिस था, फिर लैंड रिकॉर्ड, एग्रीकल्चर, मेडिकल और पीडब्लूडी का दफ्तर भी था। इस समय यह इमारत फिर से संवर चुकी है।

कोठी रोशनुद्दौला
बादशाह नसीरुद्दीन हैदर के वजीर रोशनुद्दौला ने वर्ष 1827 से 1837 के बीच कैसरबाग में बनी कोठी रोशनुद्दौला का निर्माण कराया था। लखौरी ईटों, चूना व सुर्खी से कोठी का निर्माण कराया गया था, जो मुगल व यूरोपियन स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। अवध के नवाब वाजिद अली शाह ने इस भवन को अपने अधिकार में लेकर इसका नाम बदलकर कैसर पसंद रखा था। इमारत में एक ओर गुंबदों से युक्त एक मस्जिद है, जबकि पश्चिम की ओर से इसी तरह की अनुकृति बनी है। इस दो मंजिला इमारत में नीचे छोटे-बड़े कई कक्ष बने हैं। पहले इसी इमारत में जिला कचहरी थी, बाद में यहां निर्वाचन कार्यालय बना।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.