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KGMU : डिप्रेशन के रोगियों के दिमाग की गतिविधियों की होगी रिकॉर्डिंग

केजीएमयू के वृद्धावस्था मानसिक स्वास्थ विभाग की पहल। विभाग के चिकित्सक और शोधकर्ता डिप्रेशन के मरीजों की करेंगे पड़ताल।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Tue, 16 Apr 2019 07:52 PM (IST)Updated: Wed, 17 Apr 2019 08:29 AM (IST)
KGMU : डिप्रेशन के रोगियों के दिमाग की गतिविधियों की होगी रिकॉर्डिंग
KGMU : डिप्रेशन के रोगियों के दिमाग की गतिविधियों की होगी रिकॉर्डिंग

लखनऊ, जेएनएन। केजीएमयू के वृद्धावस्था मानसिक स्वास्थ विभाग के चिकित्सक एवं शोधकर्ता डिप्रेशन के मरीजों के दिमाग में होने वाली गतिविधियों की रिकॉर्डिंग करेंगे। शोध का उद्देश्य ऐसे मरीजों में लंबे इलाज से मस्तिष्क में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन करना है।   

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विभागाध्यक्ष डॉ. श्रीकांत श्रीवास्तव बताते हैं कि डिप्रेशन केबुजुर्ग मरीजों के दिमाग में होने वाले परिवर्तनों को समझने के लिए वर्तमान में इलेक्ट्रोइंफेलोग्राफी (इइजी) द्वारा अध्ययन किया जाता है। देश में यह इस प्रकार का पहला अध्ययन है, हालांकि इइजी का प्रयोग विगत तीस वर्षों से मुख्य रूप से मिर्गी की पहचान के लिए किया जा रहा है। 

उन्होंने बताया कि वर्तमान में डिप्रेशन के मरीजों केमस्तिष्कीय तरंगों के पैटर्न से संबंधित दो अध्ययन चल रहे हैं। पहला अध्ययन डिप्रेशन के मरीजों में उपचार से पहले एवं बाद में मस्तिष्क की तरंगों, स्वाद को पहचानने की क्षमता संबंधी क्रियाओं में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन करना है। यह शोध इस विषय से जुड़े विभिन्न अनुसंधानों के परिणामों को देखते हुए किया जा रहा है।

दरअसल, डिप्रेशन के बुजुर्ग मरीजों में लगातार उपचार से कुछ समय बाद मीठे, नमकीन एवं कड़वे स्वाद को पहचानने की क्षमता समाप्त हो जाती है। इस अध्ययन में उपचार से पहले एवं बाद की अवस्था से संबंधित कोई दिमागी परिवर्तनों की भी पड़ताल की जाएगी। 

दूसरे अध्ययन में 30 से 70 वर्ष तक की उम्र के डिप्रेशन के रोगियों एवं इसी उम्र के स्वस्थ लोगों में मस्तिष्कीय तरंगों के पैटर्न एवं दिमागी क्रियाओं का स्तर इत्यादि का पता लगाना है। डॉ. श्रीवास्तव कहते हैं कि इस बात के साक्ष्य मौजूद हैं कि डिप्रेशन के रोगियों में दिमागी क्रियाएं धीमी और एक तरफा हो जाती हैं। अत: ऐसे में इस अध्ययन कि महत्ता और बढ़ जाती है। अत: इस दशा में मस्तिष्क के नेटवर्क की गतिशीलता का पता लगाना मुश्किल हो जाता है। शोध टीम में अनामिका श्रीवास्तव एवं डॉ. सौम्यजीत सान्याल शमिल हैं।


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