Vat Savitri Vrat: वट सावित्री व्रत पर दुलर्भ संयोग आज, जानें क्या हैंं मान्यताएं
आयुर्वेद में दैवीय उपहार माना गया है बरगद। सुहागिनें आज इस वृक्ष की पूजा और परिक्रमा कर रही हैं।
लखनऊ [जितेंद्र उपाध्याय और दुर्गा शर्मा]। मान्यता है कि वट (बरगद का पेड़) की जड़ ब्रह्मा, छाल विष्णु और शाखा शिव है। लक्ष्मी जी भी इस वृक्ष पर आती हैं। अपने आप में आस्था का असीम संसार समेटे यह वृक्ष वृहद औषधीय गुणों वाला भी है। आयुर्वेद में इसे दैवीय उपहार के रूप में माना गया है। इसकी जड़, पत्ता, छाल और रस सभी गुणकारी है। कमर, जोड़ों के दर्द, मधुमेह और मुंह संबंधी तमाम रोगों में रामबाण औषधि है। बरगद की जड़ें मिट्टी को पकड़कर रखती हैं। पत्तियां हवा को शुद्ध करती हैं। इसकी तासीर ठंडी होती है, जो कफ और पित्त की समस्या को दूर करती है। वट सावित्री व्रत पर आज सुहागिनें बरगद के पेड़ की पूजा और परिक्रमा करेंगी। इस मौके पर वट के औषधीय महत्व पर नजर डालते हैं, ताकि सिर्फ एक दिन नहीं हम हर दिन वट वृक्ष के करीब रहें।
वट सावित्री पूजन आज
पं.राधेश्याम शास्त्री ने बताया कि रविवार को शाम 4:40 बजे से पर्व का मान शुरू हुआ जो सोमवार को दोपहर 3:30 बजे तक रहेगा। ऐसे में उदया तिथि पर आधारित इस व्रत को सोमवार को करना श्रेयस्कर होगा। इसी दिन सोमवती अमावस्या भी है। महिलाएं वट को रक्षासूत्र बांध कर पति की दीर्घायु की मंगलकामना करेंगी। सुबह से ही निर्जल व्रत रख कर महिलाएं और नव विवाहिताएं वट को रक्षासूत्र बांधकर 108 बार फेरे करेंगी। आचार्य पं.शक्तिधर त्रिपाठी ने बताया कि पूजन में मौसमी फल खरबूजा, आटे के बरगद, चना, दाल चढ़ाने के बाद सावित्री की कथा सुन कर विश्वास के प्रतीक वट से पति की दीर्घायु की मंगलकामना करना चाहिए। सोमवती अमावस्या के चलते दान पुण्य का विशेष फल मिलेगा। वट वृक्ष न होने की दशा में गमले में वट की डाली को लगाकर पूजन किया जा सकता है।
इसलिए रखते हैं वट सावित्री व्रत
आचार्य जितेंद्र शास्त्री ने बताया कि लोक मान्यता और पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन सावित्री ने पति सत्यवान के जीवन को वापस लाया था। इसके लिए उन्होंने वट वृक्ष के नीचे बैठकर व्रत रखकर पूजन किया था। वृक्ष के नीचे पति को गोद में लेकर बैठी सावित्री ने जब देखा कि यमराज पति के जीवन को लेकर दक्षिण दिशा की ओर जा रहे हैं तो सावित्री ने यमराज का पीछा किया। पति के जीवन को वापस लाने में कामयाब रहीं। उस दिन अमावस्या थी। इस दिन व्रत रखने से सुहागिनों की हर मनोकामना पूरी होती हैं।
शनि जयंती भी मनेगी
आज सोमवती अमावस्या भी है। साथ ही शनि जयंती भी मनायी जाएगी। आचार्य एसएस नागपाल ने बताया कि इस बार एक दिन में चार संयोग बन रहे हैं। इस दिन सोमवती अमावस्या, स्वार्थ सिद्ध योग, अमृत सिद्ध योग और त्रिगही योग है। इस दिन शनि देव के 10 नामों का जाप करने से विशेष फल मिलता है।
ये है मान्यता
- अग्निपुराण के अनुसार संतान की इच्छा रखने वालों के लिए पूजा शुभदायक होती है।
- अपनी विशेषताओं और लंबे जीवन के कारण इसे ‘अनश्वर’ व ‘अक्षयवट’ भी कहते हैं। इसे काटना वर्जित बताया गया है।
- वामन पुराण के अनुसार भगवान विष्णु की नाभि से जब कमल प्रकट हुआ, तब यक्षों के राजा मणिभद्र से वट उत्पन्न हुआ था। इसे यक्षवास, यक्षतरु भी कहा जाता है।
- रामायण में इसे सुभद्रवट भी कहा गया है, जिसकी डाली गरुड़ ने तोड़ दी थी। शीतलता के कारण इसे वाल्मीकि रामायण में श्यामन्य ग्रोध केनाम से पुकारा गया है।
- भगवान श्रीकृष्ण गाय चराते समय जिस वृक्ष के नीचे बैठ कर बांसुरी बजाते थे, वह कृष्ण वट वृक्ष था। यह आम बरगद से कुछ अलग था जो कुछ स्थानों पर ही पाया जाता है।
- यह पूजा महिलाओं को अपने पत्नी धर्म एवं कर्तव्य का बोध कराती है।
- यह पूजा महिलाओं को हरे भरे वृक्ष के पूजन से भी जोड़ती है।
- पुराणों में माना गया है कि वट में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है। इसके नीचे बैठकर शुद्ध मन से पूजन करना लाभकारी होता है।
छाल में चिकित्सकीय गुण
- बरगद की छाल में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले गुण होते हैं। इसका काढ़ा बनाकर पीने से इम्यूनिटी बढ़ती है।
- कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने में भी कारगर है।
- इसकी छाल का काढ़ा मधुमेह के इलाज के लिए सहायक है।
रामबाण औषधि
लोकबंधु राजनारायण संयुक्त अस्पताल के पूर्व नोडल ऑफीसर (आयुर्वेद एवं पंचकर्म विभाग) डॉ. राकेश शर्मा के मुताबिक, यह सर्वाधिक ऑक्सीजन देने वाला पेड़ है। इसमें मोटापे और पेट संबंधी तमाम बीमारियों से निजात दिलाने वाले गुण भी हैं। त्वचा संबंधी रोगों से राहत में यह अच्छा काम करता है। मधुमेह की रोकथाम संबंधी तमाम दवाएं इससे बनाई जाती हैं। जले स्थान पर इसके कोमल पत्ताें को गाय के दूध से बनी दही में पीस कर लगाने से जलन फौरन कम हो जाती है। वहीं, केजीएमयू के डिपार्टमेंट ऑफ फिजिकल मेडिसिन एंड रिहैबिलिटेशन के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. गणोश यादव का कहना है कि बरगद का रस और फल चोट, घाव और अल्सर के लिए बाहरी रूप से लागू दवाओं के रूप में उपयोगी होते हैं। इससे जोड़ें के दर्द के रोगियों में सुधार होता है। सूजन में भी राहत मिलती है। गठिया के दर्द से राहत के लिए इसके लेटेक्स (दूध) को बाहरी रूप से प्रयोग कर सकते हैं।
दूधिया रस के फायदे
- बरगद के पेड़ का दूधिया रस फटी एड़ियों को मुलायम बनाने के साथ ही दरारें भरने में भी कारगर है।
- दांत में कीड़ा लगने पर प्रयोग करते हैं।
- नेत्र संबंधी विकारों में भी राहत पहुंचाता है।
जड़ों में छिपी औषधि
- बरगद की जड़ों में सबसे अधिक मात्र में एंटी ऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं। चेहरे की झुर्रियों को दूर करने के लिए भी बरगद की जड़ों का प्रयोग होता है।
- इसके एंटी बैक्टीरियल और एस्टिजेंट गुण दातों और मसूड़ों संबंधी परेशानियों से राहत दिलाती है।
- बरगद की कोमल जड़ों को चबाने से मुंह की सफाई होती है। सांसों की बदबू से भी निजात मिलती है। पायरिया से भी बचा जा सकता है।
- बरगद की जड़, जटामासी, गिलोय और तिल का तेल मिलाकर धूप में रखें। जब ये सूख जाए तब बचे हुए तेल को छान लें। इस तेल की मालिश बाल झड़ने की समस्या में राहत के लिए कारगर है।
बहुत लाभकारी हैं पत्ते
- तिल के तेल के साथ ताजा बरगद के पत्तों का लेप फोड़े आदि संक्रमण से निजात में फायदा करता है।
- पत्तों का दूधिया रस एक एंटी इंफ्लेमेटरी (जलन में राहत) है।
- गठिया, जोड़ों का दर्द और सूजन में राहत पहुंचाता है।
- पत्तों को गर्म कर घावों पर लेप करने से घाव जल्दी सूख जाते हैं।
- पत्तियों का पेस्ट चेहरे पर होने वाले लाल चकत्तों से छुटकारा दिलाता है।
- पत्तियों को पीसकर तैयार लेप से मालिश करने पर खुजली आदि की समस्या दूर होती है।
- राजेन्द्र नगर के बिरहाना में लगा औषधीय गुणों वाला बरगद है आस्था का केंद्र
- बुद्धेश्वर मंदिर परिसर में लगे बरगद की है पौराणिक मान्यता
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