जीएसटी का एक साल: तकनीकी पेच बरकरार, मुश्किल में कारोबार
न तो पोर्टल ठीक ढंग से चल रहा और न समस्या का समाधान ही कर पा रहे अधिकारी, शिकायत दर शिकायत, फिर भी सुनने वाला कोई नहीं।
लखनऊ[नीरज मिश्र]। गुड्स एण्ड सर्विस टैक्स (जीएसटी) को लागू हुए एक साल पूरा हो चुका है। फिर भी न तो व्यापार अभी पूरी तरह से सुगम हो सका है और न ही उपभोक्ताओं को उसका पूरी तरह लाभ मिल पा रहा है। चाहे वह रेस्तरा में आमजन से वसूला जाने वाला सेवा कर हो या फिर 'चिट' पर चलता मिष्ठान और खानपान का कारोबार। 1सिनेमा हॉल और मॉल पर मनमानी जारी है। हा, खाद्य पदार्थो के दामों में कुछ कमी आई है। व्यापारियों ने बताया कि पोर्टल अक्सर दगा दे जाता है। कभी ओवरलोड का रोना तो कभी पोर्टल लिंक न मिलने की दिक्कतें आम हैं। दिलचस्प यह है कि अधिकारी नई समस्याओं की जानकारी अभी भी तलाश रहे हैं। कब आमजन को जीएसटी का सीधा लाभ मिलेगा? कब व्यापार पूरी तरह सुगम हो पाएगा और पोर्टल ठीक ढंग से कब तक काम करेगा।
क्या कहते हैं अफसर?
- एडीशनल कमिश्नर ग्रेड-एक बीडी द्विवेदी का कहना है कि धीरे-धीरे दिक्कतें कम हो रही हैं। सुधार भी तेजी से हो रहा है। पोर्टल को लेकर सरकार गंभीर है। पहले जहा एक्साइज और वैट लगता था अब सिर्फ एक ही कर है। व्यवस्था पारदर्शी हो रही है। रही बात तकनीकी दिक्कतों की तो उसे जल्द से जल्द दूर कराने के प्रयास जारी हैं। - लखनऊ व्यापार मंडल वरिष्ठ महामंत्री अमरनाथ मिश्र कहते हैं कि पोर्टल की दिक्कतें सालभर बाद भी वहीं की वहीं हैं। रिटर्न भरना हो या फिर स्टॉक अपडेट करना हो, तकनीकी समस्याएं दूर नहीं की जा सकी हैं। अफसर भी पूरी जानकारी नहीं दे पा रहे हैं। अब जब सबकुछ ऑनलाइन है तो ऑटो रिफंड की व्यवस्था क्यों नहीं हो पा रही है। ट्रासपोर्टर की खामियों पर भी व्यापारी को पेनाल्टी देनी पड़ रही है। इस ओर गंभीर पहल उठाया जाना जरूरी है।
तीन मेगा शिविर और 40 वर्कशाप भी नहीं दे पाए राहत :
जागरूकता के लिए विभागीय अधिकारियों ने 40 कार्यशालाओं का आयोजन किया। अफसरों ने तीन मेगा शिविर भी लगाए, लेकिन समस्याएं ज्यों की त्यों बनी हुई हैं।
खाद्यान्न :
आमजन के लिए सबसे जरूरी चीज खाद्यान्न सामग्री है। आटा, चावल, और विभिन्न तरह की दालें सस्ती हैं। फिर भी ब्राडेड नॉन ब्राडेड के पेच में व्यापारी उलझा हुआ है। आढ़ती राजेंद्र अग्रवाल बताते हैं कि तकनीकी समस्याएं बरकरार हैं। उदाहरण देते हुए बताया कि पाडेयगंज में सत्य नारायण संतोष कुमार के नाम से फर्म है। अप्रैल माह में पोर्टल ब्लॉक हो गया था। तीन माह बाद भी वह चालू नहीं हो सका है। बेंगलुरु तक शिकायत की जा चुकी है। फिर भी कोई सुनने वाला नहीं। इससे कारोबार ठप पड़ गया है। भवन सामग्री:
बालू, मौरंग, र्इंट व गिट्टी की दरों पर जीएसटी का असर नहीं है। व्यवसायी श्याम मूर्ति गुप्ता की मानें तो जहा पहले चार प्रतिशत वैट और एक प्रतिशत सरचार्ज मिलाकर पाच फीसद ही कर देय होता था। अब भी इतना ही है। हा सीमेंट में भी जीएसटी की दर पाच प्रतिशत की जानी चाहिए जिससे उपभोक्ताओं को राहत मिले। यही नहीं जीएसटी की तकनीकी दिक्कतों को दूर कर और सुधार किया जाए। दवा व्यवसाय:
लखनऊ केमिस्ट एसोसिएशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुरेश कुमार एवं कोषाध्यक्ष सुदीप दुबे की मानें तो अभी व्यापार पूरी तरह से पटरी पर नहीं आ पाया है। रही बात दवा की दरों में कमी की तो इसके पीछे सिर्फ जीएसटी नहीं जीवनरक्षक दवाओं पर सरकार का नियंत्रण मुख्य तौर पर है। हा यह सही है कि काम धीरे-धीरे सुगम हो रहा है या यूं कहें कि सुगम बनाया जा रहा है तो ज्यादा बेहतर होगा। कॉस्मेटिक्स:
कॉस्मेटिक्स आइटम पर दाम घटाए गए पर उपभोक्ताओं को लाभ नहीं मिला। कंपनिया पुराने र्ढे पर लौट आई हैं। विनोद अग्रवाल कहते हैं कि चाहे वह पेस्ट हो या फिर साबुन आदि दैनिक उपभोग की चीजें। कंपनी उनकी कीमतें बढ़ाती नहीं। ग्राहकों को दी जाने वाली मात्र में कमी कर दी जाती है। आमतौर पर उपभोक्ता उसे समझ नहीं पाता है। यही खेल चलता है। शैंपू में तो पहले की गई कमी को अब फिर से कंपनिया वसूलने लगी हैं। इलेक्ट्रानिक्स:
व्यापारी राजेश सडाना इलेक्ट्रानिक्स आइटम में सबसे ज्यादा 28 फीसद जीएसटी है। जो लाभ बाजार में एक्साइज अथवा वैट के हटने के बाद आया भी उसे बाजार में पूरी तरह से फ्लोट नहीं किया गया। यह ठीक है कि व्यवस्था पारदर्शी हो रही है। आगे उपभोक्ताओं को लाभ मिलेगा। सालभर तकनीकी दावपेच दुरस्त करते हुए बीता। समस्याएं अनेक:
- सर्वर धीमा, पोर्टल पर डिस्प्ले होने तक में दिक्कत।
- ई-वे बिल व्यवस्था से परेशानी, ट्रासपोर्टर के बजाय बी पार्ट न भरने पर व्यापारी भर रहा जुर्माना।
- जीएसटी पोर्टल पर स्टॉक डिटेल भरे जाने को लेकर दिक्कतें।
- सबकुछ ऑनलाइन पर ऑटो रिफंड की व्यवस्था नहीं।
- सर्वर धीमा चलने की समस्या आम। व्यापारियों को रिटर्न भरने में दिक्कतें बरकरार।
- व्यापारियों में जानकारी का अभाव आज भी बना हुआ है।
- जिन व्यापारियों ने समाधान योजना के लिए आवेदन किया। अगर वह इस योजना से बाहर आना चाहते हैं तो उन्हें फार्म भरना होगा।